रिपोर्ट- रोहित भट्ट
अल्मोड़ा. उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को ‘ताम्र नगरी’ (Tamra Nagri Almora) भी कहा जाता है. ताम्र नगरी का इतिहास 400 साल पुराना है. एक समय था जब यहां बने तांबे के बर्तन देश-विदेश तक में मशहूर थे. कई राज्यों और देशों में तांबे के बर्तन यहां से भेजे जाते थे. आधुनिक दौर में तांबे के बर्तनों को लोग भुलाते चले गए और ताम्र नगरी की पहचान भी कहीं खोती चली गई. पिछले कुछ वर्षों में युवा पीढ़ी तांबे के बर्तनों का महत्व समझी, तो शहर के कारीगरों में फिर से उम्मीद जगी है. अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ले में करीब 400 साल से तांबे के बर्तन बनाए जा रहे हैं, जिसमें परात, गागर, कलश, फौले, गगरी और जलकुंडी के अलावा अन्य चीजें बनाई जा रही हैं.
यही नहीं, धीरे-धीरे युवा वर्ग भी इसकी ओर अग्रसर हो रहा है. तांबे के कारीगर ने ‘न्यूज़ 18 लोकल’ से बातचीत में कहा कि अब युवा कारीगरों में तांबे के उत्पाद बनाने को लेकर रुचि बढ़ रही है. भारत सरकार की ओर से तांबे के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए मई महीने में प्रदर्शनी लगाई गई थी. शहर के कई कारीगरों ने इसमें हिस्सा लिया था.
तांबे के बर्तन अब नए डिजाइन में
युवाओं द्वारा अब नए डिजाइन के तांबे के बर्तन बनाए जा रहे हैं. तांबे से बनी घड़ी, शीशे में कारीगरी, गमला, लाइट लैंप, भगवान गोलू देवता की प्रतिमा समेत कई तरह का साजोसामान इन कारीगरों द्वारा बनाया जा रहा है.
कारीगर नवीन कुमार टम्टा ने बताया कि वह कई सालों से तांबे के बर्तन बना रहे हैं. अगर सरकार उनकी मदद करे या फिर उनके काम की कदर करे, तो वह और भी बेहतर कर सकते हैं. आजकल के युवा काम तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसको लेकर पैसा नहीं मिलेगा, तो वह इस काम को छोड़ भी सकते हैं. सरकार अगर इस ओर ध्यान दे, तो ताम्र नगरी फिर से पटरी पर लौट आएगी. तांबे के बर्तनों की डिमांड बड़े-बड़े होटल रेस्टोरेंट से आती है. इसके अलावा बाहर से आने वाले पर्यटक भी तांबे के बर्तनों आदि उत्पादों को यहां से खरीदकर ले जाते हैं.
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Tags: Almora NewsFIRST PUBLISHED : August 15, 2022, 12:38 IST