दुल्‍हन को म‍िले सोने के ग‍िफ्ट क‍िसके SC ने स्‍त्रीधन को लेकर सुनाया जजमेंट

Woman Sole Streedhan Owner: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कर दिया कि महिला की स्त्रीधन की एकमात्र मालिक है. यहां तक कि उसे देने वाला उसका पिता भी उससे उसे वापस नहीं मांग सकता है.

दुल्‍हन को म‍िले सोने के ग‍िफ्ट क‍िसके SC ने स्‍त्रीधन को लेकर सुनाया जजमेंट
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक फैसला सुनाया कि एक महिला अपने स्त्रीधन की एकमात्र मालकिन है. इसमें विवाह के समय उसके माता-पिता द्वारा दिए गए सोने के आभूषण और अन्य सामान शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक के बाद महिला के पिता को उसके पूर्व ससुराल वालों से उन उपहारों को वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है. पी वीरभद्र राव की बेटी की शादी दिसंबर 1999 में हुई थी और शादी के बाद पति और पत्नी दोनों अमेरिका चले गए थे. शादी के 16 साल बाद बेटी ने तलाक के लिए अर्जी दी. मिसौरी में लुइस काउंटी सर्किट कोर्ट ने फरवरी 2016 में आपसी सहमति से तलाक को मंजूरी दे दी. संपत्ति और वित्तीय मामले एक अलगाव समझौते के जरिये दोनों पक्षों के बीच सुलझाए गए थे. इसके बाद महिला ने मई 2018 में दोबारा शादी कर ली. तीन साल बाद पी वीरभद्र राव ने हैदराबाद में अपनी बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ उसका स्त्रीधन वापस करने के लिए एफआईआर दर्ज कराई. महिला के ससुराल वालों ने एफआईआर को रद्द करने के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वे असफल रहे. फिर उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने ससुराल वालों के खिलाफ मामला खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट कहा कि पिता के पास अपनी बेटी के स्त्रीधन को वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वह पूरी तरह से उसका था. पिता को भी अधिकार नहीं जस्टिस करोल ने फैसला लिखते हुए कहा कि ‘आम तौर पर मंजूर नियम, जिसे न्यायिक रूप से मान्यता हासिल है, यह है कि महिला को स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है. अदालत महिला (पत्नी या पूर्व पत्नी, जैसा भी मामला हो) के स्त्रीधन की एकमात्र मालिक होने के एकमात्र अधिकार के संबंध में साफ है. पति के पास कोई अधिकार नहीं है, और तब यह आवश्यक रूप से निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि जब बेटी जीवित है, स्वस्थ है और अपने स्त्रीधन की वसूली जैसे निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम है, तो पिता के पास भी कोई अधिकार नहीं है.’ ‘काश चीजें उतनी ही सरल होतीं जितनी वह दिखती हैं’, फिर जस्टिस अमानुल्‍लाह ने लगा दिया ₹1.20 लाख का जुर्माना कानून बदला लेने का साधन नहीं सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ‘आपराधिक कार्यवाही का उद्देश्य गलत काम करने वाले को न्याय के कटघरे में लाना है. यह उन लोगों के खिलाफ बदला लेने या प्रतिशोध लेने का साधन नहीं है, जिनके साथ शिकायतकर्ता की दुश्मनी हो सकती है.’ पिता के खिलाफ एक और पहलू यह था कि उन्होंने शादी के दो दशक से अधिक समय बाद, तलास होने के पांच साल बाद और अपनी बेटी के फिर से शादी के तीन साल बाद ‘स्त्रीधन’ की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू की. जस्टिस करोल ने कहा कि पिता के दावे के खिलाफ एक और महत्वपूर्ण तत्व यह था कि उन्हें अपनी बेटी द्वारा अपने ‘स्त्रीधन’ की वसूली के लिए कार्रवाई शुरू करने के लिए अधिकृत नहीं किया गया था. Tags: Married woman, Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : August 30, 2024, 08:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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