लंबे समय तक कैद नहीं रख सकतेED को SC ने फिर फटकारा बेल पर की सख्त टिप्पणी
लंबे समय तक कैद नहीं रख सकतेED को SC ने फिर फटकारा बेल पर की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से ईडी को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने फिर से दोहराया जमानत नियम है और जेल अपवाद. अदालत ने कहा कि कठोर जमानत प्रावधानों का इस्तेमाल लंबी कैद के लिए उपकरण के रूप में नहीं किया जा सकता.
नई दिल्ली: पीएमएलए प्रावधानों और ईडी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सख्त जमानत शर्तें लोगों को जेल में रखने का टूल नहीं हो सकतीं. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि संवैधानिक अदालतें पीएमएलए यानी प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के प्रावधानों को ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय के लिए ऐसा माध्यम बनाने की अनुमति नहीं दे सकतीं, जिससे लोगों को लंबे समय तक कैद में रखा जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब पीएमएलए के तहत दर्ज शिकायत की सुनवाई समुचित समय से अधिक लंबी चलने की संभावना है, तो संवैधानिक अदालतों को जमानत देने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने पर विचार करना होगा. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘इसका कारण यह है कि पीएमएलए की धारा 45(1)(2) सरकार को किसी आरोपी को अनुचित रूप से लंबे समय तक हिरासत में रखने की शक्ति नहीं देती है, खासकर तब जब समुचित समय के भीतर मुकदमे के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं होती है.’
बेंच ने कहा, ‘समुचित समय क्या होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आरोपी पर किस प्रावधान के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है और अन्य कारक क्या हैं. सबसे प्रासंगिक कारकों में से एक अपराध के लिए न्यूनतम और अधिकतम सजा की अवधि है.’ उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी तमिलनाडु के पूर्व मंत्री एवं द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) नेता सेंथिल बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में जमानत देते हुए की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के आपराधिक न्यायशास्त्र का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है.’
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ‘जमानत देने के संबंध में ये कड़े प्रावधान, जैसे कि पीएमएलए की धारा 45(1)(3), ऐसा माध्यम नहीं बन सकते जिसका इस्तेमाल आरोपी को बिना सुनवाई के अनुचित रूप से लंबे समय तक कैद में रखने के लिए किया जा सके.’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जमानत देने के लिए कानून में उच्च सीमा या कठोर शर्तें निर्धारित की गई हैं.
केए नजीब मामले में अपने फैसले का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल केवल संवैधानिक अदालतें ही कर सकती हैं. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक अदालतें किसी भी मामले में हमेशा अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल कर सकती हैं. पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को पीएमएलए के तहत मामलों से निपटते समय यह ध्यान में रखना होगा कि कुछ अपवाद मामलों को छोड़कर अधिकतम सजा सात साल की हो सकती है.
Tags: Money Laundering, Money Laundering Case, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : September 27, 2024, 06:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed