कंडुआ रोग की कैसे करें पहचान एक्सपर्ट से जानें सरल तरीका

कृषि वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने बताया कि कंडुआ रोग के लक्षण को पहचानना जरूरी है. उसके बाद अगर फसल में कहीं भी कंडुआ रोग का लक्षण दिखे तो तुरंत उस पौधे को उखाड़कर जमीन में गाड़ देना चाहिए. नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत की 100-200 मिली दवा को 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. 

कंडुआ रोग की कैसे करें पहचान एक्सपर्ट से जानें सरल तरीका
सुल्तानपुर. खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल धान की खेती है. धान की खेती करने वाले किसानों के लिए यह खबर महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. धान की फसल में अब कल्ले निकलने शुरू हो गए हैं. ऐसे में कंडुवा रोग के बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है. धान की फसल को इस रोग से बचाने कस उपाय भी जान लेना किसानों के लिए बेहद जरूरी है. इस खबर के जरिए किसानों को बताएंगे कि धान में लगने वाले कंडुआ रोग की पहचान कैसे करें और रोकथाम के लिए क्या उपाय करें. उत्पादन को प्रभावित करता है कंडुआ रोग कंडुआ रोग की वजह से फसल उत्पादन पर असर पड़ता है. अनाज का वजन कम हो जाता है और अंकुरण में भी गहरी समस्या आती है. यह रोग उस जगह पर ज्यादा फैलता है जहां उच्च आर्द्रता और 25-35 सेंटीग्रेड तापमान होता है. कंडुआ हवा के साथ एक खेत से दूसरे खेत में उड़कर जाता है और फसल को संक्रमित कर देता है. तापमान में उतार-चढ़ाव और हवा इस रोग को बढ़ाने में मदद करता है. धान की इन किस्मों पर होता है ज्यादा असर कंडुआ रोग का असर धान की उन किस्मों पर अधिक होता है, जो हाइब्रिड बीज की होती है. वहीं देसी किस्म के धान पर कंडुआ रोग का असर हाइब्रिड की अपेक्षा कम होता है. इस रोग के फैलने में कई कारक जिम्मेदार होते हैं. जिसमें खेत की नमी भी शामिल है. अगर खेत में नमी अधिक है तो कंडुआ रोग के बढ़ने की संभावना अधिक हो जाती है. कंडुआ रोग के लक्षण को पहचानना है जरूरी कृषि विज्ञान केन्द्र सुल्तानपुर में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने लोकल 18 को बताया कि कंडुआ रोग को दूर करने के लिए सबसे पहले इसके लक्षण को पहचानना जरूरी है. उसके बाद अगर फसल में कहीं भी कंडुआ रोग का लक्षण दिखे तो तुरंत उस पौधे को उखाड़कर जमीन में गाड़ देना चाहिए. इससे एक पौधे से दूसरे पौधे में संक्रमण नहीं हो पाएगा. यह रोग पीले पाउडर की तरह होता है और हवा के साथ एक खेत से दूसरे खेत में फैलता है. नाईट्रोजन की मात्रा धान के खेत में अधिक होने पर भी यह रोग बढ़ता है, इसलिए संक्रमण के दौरान यूरिया का प्रयोग कतई ना करें. आपको बता दें कि ये रोग फफूंदजनित है, इसलिए इसके नियंत्रण के लिए किसान प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत की 100-200 मिली दवा को 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. Tags: Agriculture, Local18, Paddy crop, Sultanpur news, UP newsFIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 11:21 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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