बेटा आरोपी तो पिता खामियाजा क्यों भुगते बुलडोजर एक्शन पर 8 सुप्रीम टिप्पणी

Supreme Court on Bulldozer Action: संपत्तियों को बुलडोजर से ढहाए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाएं और बच्चे रातभर सड़क पर रहें, यह अच्छी बात नहीं है. बुलडोजर एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई और कई अहम टिप्पणी की.

बेटा आरोपी तो पिता खामियाजा क्यों भुगते बुलडोजर एक्शन पर 8 सुप्रीम टिप्पणी
नई दिल्ली: देश में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि बेटी अगर आरोपी है तो पिता उसका खामियाजा नहीं भुगत सकता. घर एक दिन मे नहीं बनता, घर सालों की मेहनत से बनते हैं. परिवार में अगर बेटा आरोपी है तो पिता खामियाजा कैसे भुगत सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका का मूल काम नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें राज्‍य सरकारों के ‘बुलडोजर एक्‍शन’ के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहीं. इन याचिकाओं में अपराध के आरोपी व्यक्तियों की संपत्तियों को गिराए जाने यानी बुलडोजर एक्शन के खिलाफ निर्देश देने की मांग की गई थी. तो चलिए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर क्या-क्या टिप्पणी की? सुप्रीम कोर्ट की बुलडोजर एक्शन पर अहम टिप्पणियां… 1. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर अवैध तरीके से घर तोड़ा गया तो तो मुआवजा मिलना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 का जिक्र किया और कहा कि सिर पर छत होना भी जीवन का मौलिक अधिकार है. आरोपी हो या दोषी, किसी का भी घर गिराना गलत है. 2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर एक दिन मे नहीं बनता, घर सालों की मेहनत से बनते हैं. परिवार में अगर बेटा आरोपी है तो पिता खामियाजा कैसे भुगत सकता है. मनमाने ढंग से बुलडोजर चलवाने वाले अधिकारी जवाबदेह हैं. अवैध कार्यवाही कराने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाए. 3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोप लगाने से वो दोषी करार नहीं होता. बिना मुकदमे के मकान गिराकर किसी को सजा नहीं दी जा सकती. अगर प्रशासन अवैध तरीके से मकान गिराता है तो कार्यवाही में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिये. 4. जस्टिस गवई ने कहा कि एक घर होना एक ऐसी लालसा है, जो कभी खत्म नहीं होती. हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो. एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है. 5. जस्टिस गवई ने आगे कहा कि कानून का शासन लोकतांत्रिक सरकार की नींव है. मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है, जो यह अनिवार्य करता है कि कानूनी प्रक्रिया आरोपी के अपराध के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो. किसी परिवार का घर अचानक तोड़ दिया जाता है. ऐसे मामले में आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं. ऐसे तमाम सवालों पर हम फैसला देंगे, क्योंकि यह अधिकार से जुड़ा मसला है. 6. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण समेत तीन फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अगर कानून के खिलाफ जाकर कोई कार्रवाई की जाती है तो उसके खिलाफ व्यवस्था स्पष्ट है कि सिविल राइट्स को संरक्षण मुहैया कराना अदालत की जिम्मेदारी है. क्या अपराध करने के आरोपी या यहां तक ​​कि दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की संपत्तियों को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ध्वस्त किया जा सकता है? हमने आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता के मुद्दों पर विचार किया है और आरोपियों के मामले पर पूर्वाग्रह नहीं किया जा सकता है. हमने शक्तियों के सेपरेशन के सिद्धांत पर भी विचार किया है . 7. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना कारण बताओ नोटिस के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए. इसका जवाब स्थानीय नगरपालिका कानूनों में दिए गए समय के अनुसार या नोटिस की तारीख से 15 दिनों के भीतर, जो भी बाद में हो, दिया जाना चाहिए. 8. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मकान सिर्फ एक संपत्ति नहीं है, बल्कि पूरे परिवार के लिए आश्रय है और इसे ध्वस्त करने से पहले राज्य को यह विचार करना चाहिए कि क्या पूरे परिवार को आश्रय से वंचित करने के लिए यह अतिवादी कदम आवश्यक था? Tags: Chief Justice of India, Supreme Court, UP bulldozer actionFIRST PUBLISHED : November 13, 2024, 11:52 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed