महिलाएं ध्यान दें: वसीयत में हुआ था झोल जबरदस्ती या धोखे का शक! क्या उपाय अब
महिलाएं ध्यान दें: वसीयत में हुआ था झोल जबरदस्ती या धोखे का शक! क्या उपाय अब
Women financial rights in india: दिवंगत पति की वसीयत में झोल दिखे या पिता की वसीयत में किसी प्रकार की गड़बड़ की झलक दिखे तो आपको सतर्क होकर अपने शक को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए. यह भी हो सकता है कि आपकी माता जी ने वसीयत की हो और आपको अंदेशा हो कि किसी प्रकार का दवाब डालाल गया है! क्या विकल्प हैं आपके सामने मौजूद... आइए समझें...
Will and women’s rights in india: महिलाओं के मामले में जब वसीयत की बात आती है तो आम भारतीय परिवारों में यह केवल घर और संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा मामला अधिक दिखाई पड़ता है. वसीयत के बॉलीवुडीयकरण के चलते कई बार आप सही समय पर सही सवाल या दावे नहीं कर पातीं जिसके चलते बाद में आपको दिक्कत व परेशानी का सामना करना पड़ता है. तब आपको क्या करना चाहिए, ऐसी कुछ परिस्थितियों की चर्चा के बीच आइए जरूरी सवाल समझें ताकि उनके हल भी निकाले जा सकें. महिलाओं को खासतौर से विपरीत परिस्थतियों के अचानक आ जाने के अंदेशे को हल्के में नहीं लेना चाहिए. आइए समझें वसीयत और उससे जुड़ी उन पेचिदगियों को जो आपके सामने कभी भी आ सकती हैं- यदि दिवंगत पति की वसीयत में झोल दिखे या पिता की वसीयत में किसी प्रकार की गड़बड़ की झलक दिखे तो आपको सतर्क होकर अपने शक को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए. यह भी हो सकता है कि आपनी माता जी ने वसीयत की हो और आपको अंदेशा हो कि किसी प्रकार का दवाब डालाल गया है! जान लें कि पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वसीयत को सिर्फ इसलिए वैध नहीं माना जा सकता क्योंकि यह पंजीकृत है. ऐसे में आपको इस पर सवाल उठाने और कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार है. रजिस्टर्ड वसीयत क्या होती है- दरअसल एक बार वसीयत पंजीकृत हो जाने के बाद इसे रजिस्ट्रार की सुरक्षा मिल जाती है. इसलिए इसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती और न ही इसे नष्ट, खराब या चोरी किया जा सकता है. केवल वसीयतकर्ता को या उसकी मृत्यु के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र पेश करने वाले अधिकृत व्यक्ति को ही यह जारी की जाती है. क्या होती है अनरजिस्टर्ड विल यानी जिसका पंजीकरण नहीं किया गया हो, उसे कैसे समझेंगे- अपंजीकृत वसीयत बस कागज के एक टुकड़े पर लिखी जाती थी और लिखने वाली की मृत्यु के बाद तक सुरक्षित रूप से रख ली जाती थीं. कानून के अनुसार, जो पंजीकृत नहीं है, उसे आसानी से चुनौती दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिसरत वकील चारू वलीखन्ना कहती हैं, ‘आप चैलेंस तो कर सकती हैं और इसके लिए कोई ‘बार’ (प्रतिबंध) नहीं है. लेकिन यह ध्यान रखिए कि एक बार विल रजिस्टर हो जाए तो उसे चैलेंज करने के लिए यह साबित करना कि यह फर्जी है, मुश्किल होगा.’ आप जब यह दलील देती हैं कि उसे लिखने वाले को अनड्यू इंफ्लूएंस में लिया गया था. यानी, वसीयतकर्ता को किसी निश्चित तरीके से वह लिखने के लिए प्रेरित किया गया जो उसने लिखा, या फिर उसकी खुद की इच्छा के खिलाफ उससे लिखवाया गया, इसे भी कोर्ट में साबित करना पड़ेगा. ऐसे में बिना सबूतों के इस बाबत कोशिश करना खुद आपके लिए भी दिक्कत भरा हो सकता है. धोखाधड़ी से लेकर मारपीट-धमकाकर या किसी और तरीके से जबरदस्ती की गई हो तो भी इस वसीयत को चुनौती दी जा सकती है. यह वसीयत चाहे पंजीकृत हो या फिर गैर पंजीकृत. यदि कोर्ट चुनौती के लिए पेश किए सबूतों व दलीलों से सहमत होती है तो ही अदालत इसे रद्द कर सकती है. वसीयतकर्ता के साइन होना वसीयत पर बहुत जरूरी बताया जाता है. साथ ही यह वसीयत 18 साल से अधिक उम्र में और मानसिक रूप से स्वस्थ्य कंडिशन में लिखी होनी चाहिए. वैसे यदि वसीयतकर्ता चाहे तो खुद भी अपनी वसीयत को बदल सकता है, रद्द कर सकता है.
Tags: Women rights, Women's FinanceFIRST PUBLISHED : May 28, 2024, 10:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed