इस तरीके से खेती कर किसान बन गया मालामाल सिर्फ 60 दिनों कमा रहा रहा लाखों

बाराबंकी जिले के नवाबगंज क्षेत्र के बड़ेल गांव के रहने वाले किसान कुलदीप सिंह कई तरह की सब्जियां  उगा रहे हैं, जिसमें उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है. आज वह करीब एक एकड़ में तोरई, भिंडी, लौकी की खेती कर रहे हैं. इस खेती से उन्हें प्रतिवर्ष लाखों रुपए का मुनाफा हो रहा है.

इस तरीके से खेती कर किसान बन गया मालामाल सिर्फ 60 दिनों कमा रहा रहा लाखों
संजय यादव/ बाराबंकी : किसान अब पारंपरिक खेती के साथ- साथ सब्जियों की खेती भी बड़े स्तर पर कर रहे हैं. वहीं जिले के कई किसान एक साथ कई फसलों की खेती कर रहे हैं, जिसमें कम लागत और कम समय लगता है और मुनाफा भी अच्छा मिलता है. दरअसल हम बात कर रहे हैं तोरई, लौकी, भिंडी आदि सब्जियों की. जिससे किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. क्योंकि इन सब्जियों की मांग बाजारों में हमेशा बनी रहती है. जिसके चलते किसानों के लिए सहफसली खेती बेहद फायदेमंद है. इससे एक ही खर्च में कई फसलों का मुनाफा मिलता है. जिले के किसान सब्जियों की खेती कई सालो से कर रहे हैं, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है. बाराबंकी जिले के नवाबगंज क्षेत्र के बड़ेल गांव के रहने वाले किसान कुलदीप सिंह कई तरह की सब्जियां  उगा रहे हैं, जिसमें उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है. आज वह करीब एक एकड़ में तोरई, भिंडी, लौकी की खेती कर रहे हैं. इस खेती से उन्हें प्रतिवर्ष लाखों रुपए का मुनाफा हो रहा है. सब्जियों की खेती करने वाले किसान कुलदीप सिंह ने बताया कि  वैसे तो वह ऑर्गेनिक विधि से सब्जियों की खेती कई सालों से कर रहे हैं, जिसमें तोरई, लौकी, भिंडी आदि फसलें हैं. इस समय करीब एक एकड़ में तोरई, लौकी, भिंडी लगी है, जिसमें लागत एक बीघे में 10 हजार रूपए के आस पास आती है. वहीं मुनाफे की बात करें तो एक फसल पर हमें डेढ़ से दो लाख रुपये तक हो जाता है. क्योंकि हमारी जो सब्जियां होती हैं ऑर्गेनिक वह केमिकल मुक्त  होती हैं, जिससे ये सब्जियों नुकसान नहीं करती. इसकी खेती हम मचान विधि वह मल्च विधि से करते हैं. जिससे फसलों में रोग लगने का खतरा कम रहता है और सब्जियों की पैदावार भी अच्छी होती है. इसकी खेती करना बहुत ही आसान है. पहले खेत की जुताई की जाती है, उसके बाद खेत समतल करके बेड बनाये जाते हैं. फिर उस पर हम पन्नी बिछा करके तोरई, लौकी के बीज की बुवाई करते हैं. जब पेड़ थोड़ा बड़ा जाता है, तब इसकी सिंचाई करते हैं. फिर पूरे खेत में बांस तार व डोरी का स्टेचर तैयार करते हैं. स्टेचर पर पौधे को चढ़ा दिया जाता है, इससे तोराई लौकी की पैदावार अच्छी होती है और रोग लगने का खतरा भी कम रहता है. वहीं पौधा लगाने के महज 60 से 70 दिनों में फसल निकलनी शुरू हो जाती है, जिसको हम तोड़ कर बाजारों में बेच सकते हैं. Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : September 10, 2024, 15:54 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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