Lok Sabha Chunav 2024: राष्ट्रीय जनता दल को आत्ममंथन की जरूरत है

लोकसभा चुनाव 2024 में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल- आरजेडी ने 4 सीटें हासिल की हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने 250 से ज्यादा रैलियां और सभाएं कीं. हर सभा और रैली में लोगों की भीड़ भी देखने को मिली. लेकिन ये भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो पाई.

Lok Sabha Chunav 2024: राष्ट्रीय जनता दल को आत्ममंथन की जरूरत है
बिहार में पार्टी कार्यकर्ता इस बात से खुश होकर जश्न मना सकते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार में लोकसभा की 4 सीटों पर जीत दर्ज की है. 2019 में लोकसभा की एक सीट भी नहीं जीत पाने वाले दल के लिए ये उपलब्धि से कम होनी भी नहीं चाहिए. हर्ष इस बात का भी होना चाहिए कि राष्ट्रीय जनता दल वोट प्रतिशत के मामले में बिहार में नंबर वन दल बनकर उभरा. उसे 22.14 फीसदी वोट मिले. जबकि 12-12 सीटें जीतने वाली बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड- जेडीयू को क्रमश: 20.52 और 18.52 फीसदी वोट मिले हैं. वहीं 9.20 फीसदी वोट पाकर कांग्रेस सिर्फ 3 सीट ही जीत सकी. वोट प्रतिशत का आधार राजद कार्यकर्ताओं को खुश होने का भरपूर मौका उपलब्ध कराता है. जब इसे गठबंधन के आधार पर देखेंगे तो एनडीए भारी पड़ता दिखाई देता है. बीजेपी, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और मांझी की ‘हम’ को मिलाकर 46 फीसदी से ज्यादा वोट मिले. सीटों की संख्या 30 हो गई. वहीं इंडिया गठबंधन के खाते में 34.33 फीसदी वोट आए, लेकिन सीटों की संख्या 9 पर ही सिमट गई. विकासशील इंसाफ पार्टी तीन सीटों पर लड़कर भी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई. 6.47 फीसदी वोट पाकर 5 सीटें जीतने वाली एलजेपी (रामविलास) ने चौंकाया है. भले ही वो एनडीए का हिस्सा हो, लेकिन स्ट्राइक रेट के मामले में उसका रिजल्ट 100 फीसदी रहा है. वोट के आंकड़ें बताते हैं कि पूरे राज्य में भले ही राष्ट्रीय जनता दल को अकेले दम पर सबसे ज्यादा वोट मिले हों, लेकिन इंडिया गठबंधन के तौर पर वे बिखरे-बिखरे से रहे. एकजुट नहीं हो पाए. तेजस्वी यादव ने 250 से ज्यादा रैलियां और सभाएं कीं. हर सभा और रैली में बड़ी संख्या में भीड़ भी देखने को मिली. लेकिन क्या ये भीड़ वोट में कनवर्ट नहीं हो पाई? या कांग्रेस के वोटरों ने राष्ट्रीय जनता दल का साथ नहीं दिया? क्या राष्ट्रीय जनता दल ने विकासशील इंसाफ पार्टी को सिर्फ सीटें दीं, ग्राउंड पर समर्थन नहीं दिया? इन सवालों को बल मिलता है जब आप पूर्णियां और सीवान सीट का विश्लेषण अलग से करते हैं. पूर्व सांसद पप्पू यादव पूर्णियां से निर्दलीय सांसद चुने जा चुके हैं. चुनाव से पहले ही उन्होंने अपने दल का कांग्रेस में विलय कर दिया था. गठबंधन के हिसाब-किताब की वजह से ये सीट राष्ट्रीय जनता दल के खाते में थी. पप्पू यादव गठबंधन के उम्मीदवार बनना चाहते थे, लेकिन तेजस्वी यादव ने इनकार कर दिया. और जदयू से राजद में आई बीमा भारती को उम्मीदवार बना दिया. पूर्णियां सीट पप्पू यादव की पसंदीदा सीट है. कभी निर्दलीय तो कभी समाजवादी पार्टी की टिकट पर वे संसद पहुंचते रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर तेजस्वी ने पप्पू यादव को उम्मीदवार मानने से इनकार क्यों किया? पप्पू यादव ने लालू यादव के दरबार में हाजिरी भी लगाई. लालू प्रसाद यादव ने आश्वासन भी दिया. लेकिन टिकट नहीं दे पाए. इसके पीछे भी एक कहानी है. सियासत की विरासत की कहानी. दरअसल, 2014 में मोदी लहर के बाद भी पप्पू यादव राजद के टिकट पर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे. इसी चुनाव में लालू यादव की बेटी मीसा भारती को चाचा रामकृपाल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. 2015 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी और तेजप्रताप भी मैदान में हाथ आजमाने के लिए तैयार थे. ऐसे में लालू यादव के लिए भी कठिन समय था. परिवार को आगे बढ़ाना था, जबकि पप्पू यादव खुद को लालू का उत्तराधिकारी मान बैठे थे. ऐसे में 2015 में लालू यादव ने पप्पू यादव को पार्टी से निकाल दिया और अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ा. लालू यादव और पप्पू यादव से जुड़ी एक से बढ़कर एक कहानियां पढ़ने को मिल जाएंगी, लेकिन बात जब परिवार और सहयोगी के बीच चुनने की आती है तब परिवार को ही प्राथमिकता दी जाती है. ऐसा ही पप्पू यादव के साथ भी हुआ. यादव परिवार बिहार में दूसरा यादव नेता उभरता हुआ नहीं देखना चाहता था, ऐसे में तेजस्वी यादव ने भी पूरा जोर लगा दिया. बीमा भारती के नामांकन में ना केवल शामिल हुए, बल्कि कैंप भी किया और पार्टी के 40 विधायक भी पूर्णियां पहुंच गये. यहां तक जोर लगा दिया कि बीमा भारती जीते या ना जीते, पप्पू यादव नहीं जीतने चाहिए. असर क्या हुआ? इसका असर ये हुआ कि पूर्णियां और आसपास की कुछ सीटों पर यादवों का एक हिस्सा राजद से ही छिटक गया. पप्पू यादव ने 5 लाख, 67 हजार, 556 वोट हासिल किये और जेडीयू उम्मीदवार संतोष कुमार को 23,847 वोटों से हरा दिया. बीमा भारती को इस चुनाव में सिर्फ 27,120 वोट ही मिले जबकि 23 हजार, 824 वोटों के साथ NOTA चौथे स्थान पर रहा. ऐसी ही एक और सीट है सीवान 1996, 98, 99 और 2004 में मोहम्मद शहाबुद्दीन ने लोकसभा चुनाव जीता था. कोविड के दौरान तिहाड़ में रहते हुए ही निधन हो गया. उसके बाद शहाबुद्दीन के समर्थकों को उम्मीद थी कि राजद हीना साहब (मो. शहाबुद्दीन की पत्नी) को राज्यसभा भेज देगी, लेकिन राज्यसभा भेजना तो दूर राजद ने परिवार से ही किनारा कर लिया. किसी दौर में खास रहे शख्स के जनाजे में शामिल होने भी कोई बड़ा लीडर नहीं पहुंचा. यहीं से दोनों परिवारों के बीच खटपट हो गई. हालांकि पति के जीवित रहते भी हीना साहब लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. इस चुनाव में भी उम्मीद की जा रही थी कि हीना साहब को राजद अपना प्रत्याशी बना सकती है लेकिन जब कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई दी तब हीना निर्दलीय ही मैदान में उतर गई और 2 लाख, 29 हजार, 651 वोट लेकर दूसरे स्थान पर आईं. सीवान सीट से जेडीयू की विजयालक्ष्मी ने 3 लाख, 86 हजार, 508 वोट हासिल करके जीत दर्ज की. राष्ट्रीय जनता दल के अवध बिहारी चौधरी एक लाख, 98 हजार, 823 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे. अगर हीना राजद की प्रत्याशी होतीं या चुनाव मैदान में राजद प्रत्याशी का समर्थन करतीं तो जाहिर है कि ये सीट भी राजद के खाते में आ सकती थीं. पप्पू यादव और मोहम्मद शहाबुद्दीन परिवार की अनदेखी का नुकसान राष्ट्रीय जनता दल को कुछ और सीटों पर भी उठाना पड़ा है. सारण में भी नुकसान सारण सीट पर लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य की हार राष्ट्रीय जनता दल की सबसे छोटी हार है. यहां से बीजेपी के राजीव प्रताप रूड़ी 4 लाख, 71 हजार, 752 वोट लेकर जीतने में कामयाब रहे, जबकि रोहिणी को सिर्फ 13,661 वोट कम मिले. रोहिणी को 4 लाख, 58 हजार, 91 वोट मिले. ये सबसे रोमांचक फाइट में से एक थी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रोहिणी आचार्य की हार सही मायने में यादव-मुस्लिम वोटरों की नाराजगी की वजह से हुई है जो हीना साहब की अनदेखी की वजह से पनपी थी. ऐसे 3 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनको मिले वोटों को देखकर लगता है कि जैसे वे रोहिणी आचार्य के वोट काटने के लिए ही चुनाव मैदान में थे. इन तीन उम्मीदवारों को रोहिणी की हार के अंतर से ज्यादा-ज्यादा वोट मिले हैं. निर्दलीय लक्ष्मण यादव को 22 हजार 43 वोट, निर्दलीय शक नौशाद को 16,103 वोट मिले और बसपा उम्मीदवार अविनाश कुमार को 14,770 वोट मिले. जबकि रोहिणी सिर्फ 13,661 वोटों से हारी हैं. 10 से ज्यादा सीटों पर नंबर-2, जीतते-जीतते भी हारे अररिया में भी राजद प्रत्याशी शहनवाज को सिर्फ 20 हजार 94 वोट से हार का सामना करना पड़ा. वहां भी यही कहा गया कि तेजस्वी की जिद की वजह से यादवों ने राजद का पूरा साथ नहीं दिया. शिवहर में ऋतु जयसवाल की 29 हजार 143 वोटों की हार को भी स्थानीय लोग इसी चश्मे से देख रहे हैं. यानी ये कहा जा सकता है कि किसी जमाने में MY (मुस्लिम यादव) समीकरण साधने वाली पार्टी को हर सीट पर मुस्लिम, यादवों का साथ नहीं मिल पाया. कुछ दूसरी सीटों पर भी नुकसान ही उठाना पड़ा. हालांकि 10 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां राष्ट्रीय जनता दल दूसरे नंबर पर रहने के बाद भी मार्जिन घटाने में कामयाब रही है. खुश होने के लिए ये वजह ही काफी है. लेकिन, अगर पुराना समीकरण सध जाता तो इनमें से कुछ सीटें निकल भी सकती थीं. तेजस्वी को और ज्यादा दिलदार बनना होगा उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने उम्मीदवार उतारने में कहीं कड़ा रूख अपनाया तो जरूरत वाली जगहों पर लचीला भी. आजम खान के चाहने पर भी एक ही सीट मुरादाबाद पर बात मानी, जबकि रामपुर में अड़ गये. तेजस्वी यादव की मेहनत और मुद्दों में कोई कमी नहीं है. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जिद से बात नहीं बनती. और जब सामने प्रतिद्वंद्वी ज्यादा मजबूत हो तो दो कदम पीछे खींचने में भी कोई बुराई नहीं. बड़ी लड़ाई में बड़े लोगों को ज्यादा बड़प्पन दिखाना चाहिए. Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, PATNA NEWS, RJD leader Tejaswi Yadav, RJD newsFIRST PUBLISHED : June 9, 2024, 13:23 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed