राष्ट्रपत्नी विवाद: राष्ट्रपति को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए जानिए इस पद के नामकरण का इतिहास
राष्ट्रपत्नी विवाद: राष्ट्रपति को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए जानिए इस पद के नामकरण का इतिहास
जब यूपीए ने 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में राजस्थान की पूर्व राज्यपाल प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को मैदान में उतारने का फैसला किया, तो इस मुद्दे पर कुछ चर्चा और अटकलें थीं. यह पहली बार था कि भारत में एक महिला राष्ट्रपति होगी और इस बारे में उत्सुकता थी कि राष्ट्र उनके पद के नामकरण पर कैसे बातचीत करेगा.
नई दिल्लीः भाजपा ने कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘राष्ट्रपत्नी’ के रूप में संबोधित करने पर कड़ी आपत्ति जताई. इस मुद्दे को लेकर गुरुवार (28 जुलाई) को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ. हालांकि, अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल करने में गलती की है, उनकी जुबान फिसल गई. लोकसभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और राज्यसभा में निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में भाजपा ने जोरदार विरोध किया. सत्ताधारी दल ने चौधरी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, दोनों से इस मुद्दे पर माफी मांगने की अपील की है.
ईरानी ने कथित अपमानजनक संदर्भ के लिए कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी और महिला विरोधी होने का आरोप लगाया. उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर को अपमानित करने का आरोप लगाया. भारत में पहले भी एक महिला राष्ट्रपति रह चुकी हैं. पहली बार ऐसा हुआ है, जब देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद को संबोधित करने के उचित तरीके पर विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई है. वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक महिला हैं, जो आदिवासी समाज से आती हैं. कुछ लोगों के अनुसार, ‘राष्ट्रपति’ एक पुलिंग संबोधन है. हालांकि, इस बहस का कोई औचित्य नहीं बनता, क्योंकि भारत की संवैधानिक योजना में राष्ट्रपति और सभापति जैसे शब्दों को लिंग-तटस्थ माना गया है.
जब प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति थीं
द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब यूपीए ने 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में राजस्थान की पूर्व राज्यपाल प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को मैदान में उतारने का फैसला किया, तो इस मुद्दे पर कुछ चर्चा और अटकलें थीं. यह पहली बार था कि भारत में एक महिला राष्ट्रपति होगी और इस बारे में उत्सुकता थी कि राष्ट्र, उनके पद के नामकरण पर कैसे बातचीत करेगा. दिए गए सुझावों में ‘राष्ट्रपत्नी’ भी शामिल था, हालांकि इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया गया. सामाजिक कार्यकर्ताओं और नारीवादियों ने ‘राष्ट्रमाता’ जैसी अभिव्यक्तियों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि संवैधानिक पद के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल ‘पितृसत्ता’ और ‘लिंग-भेद’ को बढ़ावा देता है.
संवैधानिक विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति शब्द, जिसे संविधान सभा में चर्चा के बाद अंतिम रूप दिया गया था, को केवल इसलिए नहीं बदला जाना चाहिए क्योंकि भारत में एक महिला राष्ट्रपति है. क्योंकि इस शब्द का कोई लिंग अर्थ नहीं है, यह सिर्फ इतना है कि ‘प्रेसिडेंट’ का हिंदी तर्जुमा ‘राष्ट्रपति’ के रूप में होता है. संवैधानिक विशेषज्ञों ने तब बताया कि संविधान में अन्य पुलिंग शब्दों वाले नामकरण हैं, लेकिन इसे पितृसत्तात्मक या लिंग असंवेदनशीलता के रूप में नहीं देखा जा सकता है.
संवैधानिक विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने उस समय बताया था कि तत्कालीन राज्यसभा चेयरमैन नजमा हेपतुल्ला को हमेशा ‘उपसभापति’ के रूप में संबोधित किया जाता था, और इस प्रकार राष्ट्रपति पाटिल को ‘राष्ट्रपति महोदया’ कहा जा सकता है. तब से भारत में 2 महिलाएं लोकसभा अध्यक्ष पद पर आसीन हुईं, मीरा कुमार और सुमित्रा महाजन और दोनों को ‘सभापति’ कहा गया.
शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे, जिन्होंने प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाले विपक्ष से नाता तोड़ लिया था, ने जून 2007 में अपनी पार्टी के मुखपत्र सामना में छपे एक बयान में बहस को सुलझाने की कोशिश की थी. उन्होंने लिखा था, ‘जब से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में प्रतिभाताई के नाम की घोषणा की गई है, इस बारे में एक बहस चल रही है कि राष्ट्रपति भवन में कार्यभार संभालने के बाद उन्हें क्या संदर्भित किया जाना चाहिए. मुझे लगता है कि राष्ट्रपति या राष्ट्रपत्नी की कोई जरूरत नहीं है, प्रतिभाताई को राष्ट्राध्यक्ष कहा जाना चाहिए.’ हालांकि, यह चर्चा जल्द ही समाप्त हो गई . पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर उनके पूरे कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति के रूप में ही संदर्भित किया गया, जो जुलाई 2012 में समाप्त हुआ.
संविधान सभा में क्या हुआ था?
संविधान सभा ने चर्चा की थी कि राष्ट्रपति को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए. दिसंबर 1948 में संविधान सभा में बहस के दौरान, एच.वी. कामथ ने मूल मसौदे में संशोधन पर आपत्ति जताई थी, जिसे जवाहरलाल नेहरू ने 4 जुलाई, 1947 को पेश किया था. उन्होंने तब पूछा था कि क्यों, अनुच्छेद 41 ‘संघ का प्रमुख राष्ट्रपति होगा’ को ‘भारत का एक राष्ट्रपति होगा’ में बदल दिया गया.
कामत ने पूछा था, ‘मैं डॉ बी.आर अम्बेडकर से जानना चाहता हूं कि आज संविधान के मसौदे में जो लेख आया है, उसमें से राष्ट्रपति शब्द को क्यों हटा दिया गया है? क्या इसलिए कि हमने अब कुछ भारतीय या हिंदी शब्दों के प्रति एक नई नापसंदगी विकसित कर ली है…और संविधान के अंग्रेजी मसौदे में जहां तक संभव हो उनसे बचने की कोशिश कर रहे हैं.’ उन्होंने तब बताया था कि राष्ट्रपति शब्द ने सामान्य स्वीकार्यता प्राप्त की थी, क्योंकि इस शब्द का इस्तेमाल स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस संगठन के प्रमुख का वर्णन करने के लिए किया जाता था.
अम्बेडकर ने कामत को समझाया कि इसमें कोई पूर्वाग्रह शामिल नहीं है. परिवर्तन केवल इसलिए हुआ, क्योंकि जो समिति अंग्रेजी में संविधान का मसौदा तैयार कर रही है, उसने शब्दों के चयन की जिम्मेदारी उन लोगों पर छोड़ दिया था, जो हिंदी और हिंदुस्तानी में संविधान का मसौदा तैयार कर रहे थे. अम्बेडकर ने तब संविधान सभा को बताया था, ‘संविधान के हिंदुस्तानी मसौदे में प्रेसिडेंट शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जबकि हिंदी में प्रधान शब्द का इस्तेमाल किया गया है. और मुझे अभी-अभी बताया गया है कि संविधान के उर्दू मसौदे में सरदार शब्द का इस्तेमाल किया गया है.’
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Tags: Draupadi murmu, President, President of IndiaFIRST PUBLISHED : July 29, 2022, 07:58 IST