जो कभी दोस्त थे वो इस बार आमने-सामने हैं. शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी के साथ अपने 26 साल पुरानी दोस्ती तोड़ दी. वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दिल्ली में तो मिलकर चुनाव लड़ रही हैं लेकिन पंजाब में दोनों एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं. पंजाब में इस बार ऐसा चुनाव हो रहा है जहां कोई भी एक पार्टी फेवरिट नहीं दिख रही है. 13 लोकसभा सीट पर चार सबसे बड़े दलों के बीच कांटे की टक्कर है. कम से कम पांच सीट पर बहुजन समाज पार्टी का भी अच्छा प्रभाव है. हालांकि वह जीतने की स्थिति में तो नहीं है. दूसरों की जीत-हार में वह भी अहम भूमिका अदा कर सकती है. इस बार के बदले हुए राजनीतिक समीकरण की बात करने से पहले एक नजर लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे पर डाल लेते हैं.
2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस – 08 (41%) शिअद -02 (28%) बीजेपी -02 (9%) आप -01 (7%)
आप की मुश्किलें
2022 में भारी बहुमत से विधानसभा चुनाव जीतने वाली आम आदमी पार्टी के लिए ये लोकसभा चुनाव बड़ी चुनौती बन गई है. आप के इकलौते सांसद सुशील कुमार रिंकू पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और वो जालंधर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. जालंधर लोकसभा के उपचुनाव में सुशील कुमार रिंकू आप के टिकट पर चुनाव जीते थे. वैसे तो आम आदमी पार्टी पंजाब में अपने डेढ़ साल के शासन के नाम पर वोट मांग रही है, मगर दिल्ली शराब घोटाले में फंसे पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल समेत कई बड़े नेताओं की गिरफ्तारी का असर पंजाब के चुनाव पर भी पड़ना तय है. 2019 के लोकसभा चुनाव में आप को सिर्फ एक सीट मिली थी. तब भगवंत मान संगरूर से लगातार दूसरी बार जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. लेकिन, उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद संगरूर लोकसभा उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत सिंह मान ने आप से ये सीट छीन ली. अब सुशील कुमार रिंकू के बीजेपी में जाने से आप की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. भगवंत सिंह मान भी जानते हैं कि इस चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा तो डेढ़ साल पुरानी उनकी सरकार के ऊपर भी दबाव बढ़ जाएगा.
कांग्रेस के लिए आर-पार की लड़ाई
विधानसभा चुनाव में आप के हाथ करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस की हालत दिन ब दिन खराब ही होती रही है. पार्टी के कई बड़े नेता दूसरे दलों में चले गए. खासकर बीजेपी ने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर पंजाब की राजनीति को दिलचस्प बना दिया है. कांग्रेस के दो लोकसभा सांसद बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. लुधियाना से तीन बार के सांसद रवनीत बिट्टू और पटियाला से चार बार की सांसद परनीत कौर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. पू्र्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तो बीजेपी के साथ हैं ही वहीं पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ तो अब पंजाब बीजेपी की कमान संभाल रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना तो दूर उसके आसपास पहुंचना भी मुश्किल दिख रहा है.
बीजेपी का बड़ा दांव
अब तक शिरोमणि अकाली दल के जूनियर पार्टनर बनकर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी पहली बार 2022 के विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ी. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पंजाब से कभी भी तीन से ज्यादा सीट नहीं मिली वो भी अकाली दल के पार्टनर के तौर पर. लोकसभा 2019 में भी बीजेपी तीन सीट पर अकाली दल के गठबंधन में चुनाव लड़ी और दो पर उसे जीत मिली थी. लेकिन इस बार बीजेपी ने पंजाब की राजनीति में बहुत बड़ा दांव खेला है. शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूटने से बीजेपी के पास अपनी ताकत बढ़ाने का मौका है. और इस मौके को वो पूरी तरह से भुनाने में जुट गई है. बीजेपी ने ना सिर्फ दूसरी पार्टी के बड़े नेताओं को अपने साथ लिया है बल्कि हिन्दू वोटर को भी अपनी ओर खींचने की पूरी कोशिश में लगी है.
दरअसल, शिरोमणि अकाली दल के साथ रहने की वजह से हिन्दू वोट हमेशा कांग्रेस को मिलते रहे हैं. चूंकि शिअद अब बीजेपी के साथ नहीं है तो बीजेपी की नजर राज्य की 39 फीसदी हिन्दू वोट पर है. इतना ही नहीं सिख मतदाताओं को भी अपने पाले में करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिख समुदाय से लगातार कनेक्ट बढ़ाते रहे हैं. बीजेपी ने बठिंडा से पूर्व आईएएस अधिकारी परमपाल कौर सिद्धू को मैदान में उतारा है तो पटियाला से कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी और मौजूदा सांसद परनीत कौर को मौका दिया. पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू लुधियाना से बीजेपी के प्रत्याशी हैं. चुनावों से ठीक पहले बीजेपी ने अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत तरनजीत सिंह संधू को पार्टी में शामिल करके उन्हें अमृतसर से उम्मीदवार बनाया है. तरनजीत सिंह संधू के दादा तेजा सिंह समुंदरी का सिखों के बीच बड़ा प्रभाव था.
पंजाब में बीजेपी का मुख्य आधार शहरों में ही रहा है लेकिन इस बार मजबूत सिख उम्मीदवारों के दम पर बीजेपी ग्रामीण इलाकों में भी अपना पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी का ये दांव कितना सफल रहेगा इसका पता तो चार जून को आने वाले नतीजों से ही पता चलेगा लेकिन एक बात तो तय है कि बीजेपी पंजाब में अब बड़ा खिलाड़ी बनने की आक्रामक रणनीति पर काम कर रही है.
अकाली दल के लिए करो या मरो
पंजाब की राजनीति में खासकर सिखों के बीच बड़ा दखल रखने वाली शिरोमणि अकाली दल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की वजह से शिअद का ग्राफ लगातार गिर रहा है और इस बार के चुनाव में पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल का भविष्य भी दांव पर लगा है. 2022 के विधानसभा के चुनाव में शिअद को सिर्फ तीन सीट मिली थीं और खुद सुखबीर बादल भी चुनाव हार गए थे. शिअद का वोट प्रतिशत भी सिर्फ 18.38% था. इससे पहले कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन होने के बाद अकाली दल ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था और 26 साल बाद बीजेपी के बिना अकेले विधानसभा चुनाव लड़ी. लेकिन इसका फायदा होने की बजाय शिअद को बड़ा नुकसान हो गया. इसके बाद से ही अकाली दल के लिए कुछ भी अच्छा होता नहीं दिख रहा है.
पंजाब की बदलती राजनीति के बीच सुखबीर बादल अपनी पार्टी के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वो खुद तो चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं लेकिन उनकी पत्नी और मौजूदा सांसद हरसिमरत कौर बादल बठिंडा में फिर से भाग्य आजमा रही हैं. हालांकि इस बार सीट बचाना हरसिमरत कौर के आसान नहीं दिख रहा है. जाहिर है पंजाब में इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों मे अलग है और इस चुनाव की नतीजे यहां के प्रमुख दलों की दशा और दिशा तय करेगा.
Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 29, 2024, 18:48 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed