लिटमस टेस्ट में बुरी तरह फेल हुए प्रशांत किशोर! दागी कैंडिडेट्स से पिटी भद्द

Prashant Kishore Failed in Litmus Test: चुनावी रणनीतिकार अक्सर कहते हैं कि वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में या तो अर्श पर होंगे या फर्श पर. उपचुनाव के नतीजों को देखते हुए ऐसा लगता है कि प्रशांत किशोर लिटमस टेस्ट में बुरी तरह फेल हुए हैं. इस नतीजों से बिहार में उनके आगे की राह मुश्किल लग रही है. प्रशांत किशोर की रणनीति के फेल होने के कई कारण हो सकते हैं. आइए इनपर बारीकी से विचार करते हैं.

लिटमस टेस्ट में बुरी तरह फेल हुए प्रशांत किशोर! दागी कैंडिडेट्स से पिटी भद्द
Prashant Kishore Failed in Litmus Test: देश-दुनिया में चुनावी रणनीतिकार के रूप में अपना परचम लहराने वाले प्रशांत किशोर अपने ही राज्य में बुरी तरह पिछड़ गए हैं. वे बिहार में हुए उपचुनाव में अपने 4 कैंडिडेट को उतारकर आगामी चुनाव में अपनी पार्टी की भविष्य की टोह लेना चाह रहे थे लेकिन इस लिटमस टेस्ट में वे बुरी तरह पिट गए हैं. विहार में चार सीटों पर उपचुनाव हुआ था. प्रशांत किशोर इसे फाइनल चुनाव की तरह ले रहे थे. उन्होंने जनता से खुलमखुल्ला कहा था कि अगर बिहार में अगली सरकार जन सुराज की देखना चाहते हैं तो चारों सीटों पर जन सुराज के कैंडिडेट्स को जिताएं. लेकिन बिहार की जनता फिलहाल उन्हें मौका देने के मूड में नहीं दिख रही हैं. इस करारी हार के बाद प्रशांत किशोर का बिहार में राजनीतिक भविष्य हिचकोले खाने लगा है. उनकी पार्टी की ओर फिलहार बिहार की जनता का ध्यान जाना मुश्किल लग रहा है. इसके कई कारण स्पष्ट हो चुके हैं. भ्रष्टाचार और अपराध पर कोई रुख नहीं प्रशांत किशोर का चुनावी रणनीतिकार के रूप में कैरियर देखें तो उन्होंने लगभग हर विचारधारा वाली पार्टियों को चुनाव में जीतवाया है. अब तक उनका ऐसा कोई बयान नहीं है जिसमें राजनीतिक शुचिता को लेकर उनका कोई रुख सामने आया हो. कभी भी उन्होंने भ्रष्टाचारियों या अपराधियों को राजनीति से दूर रखने की वकालत नहीं की है. उन्होंने हमेशा आंकड़ों की जादूगरी से राज्य के यूटोपियन भविष्य का सब्जबाग दिखाया है. बिहार में लालू प्रसाद यादव और उनके कुनबे भ्रष्टाचार का पर्याय रहा है लेकिन कभी भी उन्होंने इस पर चोट नहीं किया है. वे हमेशा तेजस्वी यादव के कम पढ़े-लिखे को मुद्दा बनाया है. प्रशांत किशोर तीन साल से बिहार में पद यात्रा कर रहे हैं. उनके सामने जनता हमेशा गांव के कर्मचारियों से लेकर आला अधिकारियों तक के भ्रष्टाचार की शिकायत की है लेकिन कभी भी उन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा है.बिहार का एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार से त्रस्त हो चुका है. लोगों को सामान्य काम काज के लिए घुस देना पड़ता है और इसमें महीनों का समय भी लग जाता है. बिहार की अधिकांश जनता इस कुव्यवस्था के त्रस्त है और इससे निजात पाना चाहता है लेकिन प्रशांत किशोर की नीति में इसका कोई उल्लेख नहीं है. जातिवादी राजनीति को पसंद नहीं करते यंग जेनरेशन बिहार जातिवाद राजनीति का गढ़ रहा है. बिहार से बाहर के लोगों को लगेगा कि बिहार आज भी जातिवादी राजनीति की कुचक्र में फंसा हुआ है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि बिहार में अब भी कुछ हद तक जातिवादी राजनीति का आंशिक असर है लेकिन वास्तविकता यह है कि बिहार का यंग जेनरेशन जातिवादी के चंगुल से खुद को मुक्त कर लिया है. उन्हें अब जातिवादी राजनीति से घिन आने लगी है. प्रशांत किशोर खुद कहते हैं कि बिहार में अगर जातिवादी राजनीति होती तो पीएम मोदी की जाति का यहां कोई नहीं है, इसके बावजूद सबसे ज्यादा लोग पीएम मोदी की पार्टी को वोट करते हैं. प्रशांत किशोर अपनी ही बात को अपनी नीति से अलग कर दिया और जातिवादी राजनीति को कबूल कर लिया. उन्होंने कई मौके पर स्पष्ट कहा है कि जो जाति पिछड़ी है हम उसे पहले मौका देंगे. उपचुनाव में भी उन्होंने जातिवाद का सामंजस्य बिठाते हुए अपने उम्मीदवार उतारे. चार में से तीन दागी कैंडिडेट्स प्रशांत किशोर की अंतरराष्ट्रीय छवि है. ऐसे में बिहार की जनता को उम्मीद थी कि वे चुनाव में प्रतिष्ठित और बेदाग छवि वाले लोगों को उतारेंगे लेकिन प्रशांत किशोर ने जनता की इस भावनाओं पर पानी फेर दिया. उन्होंने चार सीटों में से तीन सीटों पर दागी उम्मीदवार उतारे जिनपर हत्या और हत्या के प्रयास जैसे दुर्दांत अपराध के मुकदमे दर्ज हैं. तरारी, बेलागंज, इमामगंज और रामगढ़ में से सिर्फ तरारी की उम्मीदवार किरण सिंह ही बेदाग उम्मीदवार थीं. तीन सीटों से प्रशांत किशोर ने बेहद अपराधिक पृष्ठभूमिक के लोगों को मैदान में उतारा था. इनमें से बेलागंज से तो उन्होंने मोहम्मद अमजद नाम के ऐसे व्यक्ति को उतारा था जिनके नाम पर हत्या, फिरौती, जबरन वसूली जैसे कई मामले दर्ज हैं और इनमें से किसी में भी उसे कोर्ट से राहत नहीं मिली है. वहीं इमामगंज स जन सुराज पार्टी से खड़े जीतेंद्र पासवासन पर तो सबसे ज्यादा अपराधिक केस दर्ज हैं. जीतेंद्र पासवान के खिलाफ किडनेप, धोखाधड़ी, चोरी और हमले का मामला दर्ज है. हालांकि एफिडेफिट में उन्होंने कहा कि इनमें से ज्यादातर केस झूठे हैं. प्रशांत किशोर के तीसरे कैंडिडेट रामगढ़ से सुशील कुमार सिंह हैं. उनके खिलाफ भी हत्या के प्रयास, चेक बाउंस, हमले जैसे मामले दर्ज हैं. सिर्फ तरारी से जन सुराज की किरण सिंह के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं है. मूल समस्या की जड़ से अलग बिहार में भ्रष्टाचार और सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा जनता को परेशान करना मूल समस्या है. यहां के लोगों को एक छोटा सा सरकारी काम कराने में महीनों कर्मचारियों का चक्कर लगाना पड़ता है. चपरासी स्तर के कर्मचारी भी छोटे से प्रमाण पत्र के लिए घूस ले लेते हैं. इससे भी ज्यादा परेशानी तब होती है जब उसे इस मामूली काम के लिए कई महीनों कर्मचारियों के पास चक्कर लगाना पड़ता है. कर्मचारी आम जनता को मूली-गाजर समझते हैं, अफसरों की तो बात ही कुछ और है. अगर किसी की मौत हो जाती है तो मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने में भी कई महीने चक्कर काटने होते हैं. प्रशांत किशोर ने कभी भी इन बातों को खुले तौर पर नहीं उठाया जबकि उनकी सभाओं में ज्यादातर ग्रामीणों की यही शिकायत थी.बिहार की जनता की सबसे बड़ी शिकायत यही है. बड़ी फैक्ट्रियों पर चुप्पी प्रशांत किशोर पलायन को मुद्दा तो बनाते हैं लेकिन इससे निपटने के लिए उन्होंने बिहार के लोगों को सिर्फ बिजनेस मॉडल अपनाते की सलाह देते हैं. हकीकत यह है कि बिहार का यंग जेनरेशन अब राज्य में ही बड़ी फैक्ट्रियां चाहते हैं. इस मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने अब तक कुछ नहीं कहा है. बिहार के लोग जब बाहर जाते हैं तो उन्हें सबसे ज्यादा यही महसूस होता है कि काश हमारे यहां भी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां होती तो हम भी अपने परिवार के साथ-साथ रहते. आगे की राह मुश्किल… प्रशांत किशोर ने खुद ही कहा कि आगामी चुनाव या तो मेरे लिए अर्श का होगा या फर्श का होगा. उपचुनाव से लगता यही है कि बिहार का आगामी चुनाव उनके लिए फर्श का ही साबित होगा. उनकी छवि का निश्चित रूप से उन्हें फायदा होगा. चुनाव की कुशल प्रबंधन नीति जन सुराज को कुछ वोट अवश्य दिला दें लेकिन बिहार बहुत बड़ा राज्य है. यहां दिल्ली जैसा प्रयोग होना मुश्किल लग रहा है. यदि प्रशांत किशोर वास्तव में अपनी जन्म भूमि को आगे ले जाना चाहते हैं तो उन्हें अभी काफी मेहनत करने की जरूरत होगी. सबसे पहले लोगों की मूल समस्याओं को समझने होगा. सिर्फ सपने दिखाकर आम जनता में पैठ नहीं बनाई जा सकती है. Tags: Bihar election, Bihar News, Prashant KishorFIRST PUBLISHED : November 23, 2024, 13:54 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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