कनाडा दुनिया का इतना बड़ा देश वहीं खालिस्तान क्यों नहीं बना देते पीएम ट्रूडो
कनाडा दुनिया का इतना बड़ा देश वहीं खालिस्तान क्यों नहीं बना देते पीएम ट्रूडो
क्या वाकई प्रधानमंत्री ट्रूडो कनाडा के हितैषी हैं भी या नहीं? विश्व बिरादरी में भारत की हैसियत लगातार बढ़ते जाने के दौर में भी वे उसकी आंख में किरकिसी बनने पर आमादा हैं, तो उनकी राजनैतिक समझ को ले कर सवाल उठने लाजिमी हैं।
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के रवैये की वजह से भारत के साथ कना के राजनयिक संबंध अभी तक के सबसे निचले स्तर तक जा पहुंचे हैं। भारत ने दो टूक कह दिया है कि उसकी शान में बट्टा लगाने की किसी की भी कोई भी कोशिश किसी भी स्तर पर कभी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। भारत की संप्रभुता पर सवालिया निशान लगाने वालों को हर हाल में मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। लेकिन अगले साल अक्टूबर में होने जा रहे चुनाव में कनाडा के नागरिक अलगाववादी सिख नेताओं के सहारे जीत हासिल करने के ख्वाब देख रहे जस्टिन ट्रूडो तेवर बदलने को तैयान नजर नहीं आ रहे हैं।
छह अक्टूबर, 2024 को कनाडा का बयान आया था कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए। ओटावा में विदेशी हस्तक्षेप आयोग के सामने पेशी में कनाडा के उप-विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने यह बात साफ-साफ बिना किसी लाग-लपेट के कही। तब लगा था कि कनाडा भारत के साथ संबंध बेहतर करने की राह पर चलने लगा है, लेकिन कुछ दिन बाद ही कनाडा सरकार ने बिना कोई ठोस सुबूत दिए भारतीय राजनयिकों पर निशाना साध कर साफ कर दिया कि उसका रवैया बदलने वाला नहीं है। यह जानते हुए भी कनाडा के कई बुद्धिजीवियों का मानना है कि भारत के साथ कूटनैतिक संबंध बिगाड़ कर सिख वोट बैंक की राजनीति ट्रूडो को भारी पड़ सकती है, वे अपने रुख पर अड़े हैं।
ऐसे माहौल में सवाल उठता है कि क्या वाकई प्रधानमंत्री ट्रूडो कनाडा के हितैषी हैं भी या नहीं? विश्व बिरादरी में भारत की हैसियत लगातार बढ़ते जाने के दौर में भी वे उसकी आंख में किरकिसी बनने पर आमादा हैं, तो उनकी राजनैतिक समझ को ले कर सवाल उठने लाजिमी हैं। सवाल यह भी है कि कनाडा अगर अभिव्यक्ति की आजादी का पक्षधर होने का दावा करते हुए खालिस्तान समर्थक भारत विरोधी स्वरों को पाल-पोस रहा है, तो क्या उसे अपने दूरगामी हितों की कोई परवाह है भी या नहीं? जाहिर है कि वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की निर्णायक भूमिका की वजह से कनाडा की मौजूदा सरकार उसके हितों पर खरोंच भी नहीं डाल पाएगी, यह तो तय है, लेकिन अगर ट्रूडो की पार्टी अलगे साल के चुनाव में हार गई, तो ट्रूडो की बड़ी फजीहत अपने ही देश में तय है।
लेकिन अगर हम यह मान भी लें कि जस्टिन ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी खालिस्तान की आजादी की सच्ची पक्षधर है, तो कनाडा में ही क्यों नहीं खालिस्तान बना दिया जाता? तत्काल नहीं बना सकते, तो चुनाव में जाते हुए क्या वे कम से कम ऐसा करने का वादा कर सकते हैं? कनाडा के किसी सीमावर्ती राज्य को स्वतंत्र खालिस्तान देश घोषित किया जा सकता है। लेकिन अगर तुरंत अगर ऐसा कर दिया गया, तो ट्रूडो को सिख वोट नहीं मिल पाएंगे। ऐसे में किसी प्रांत को कनाडा के अधीन स्वायत्त राज्य घोषित कर दिया जाए, तो अगले चुनाव में ट्रूडो खासा समर्थन हासिल कर सकते हैं। कनाडा में सिख बहुल आबादी वाले इलाकों का पुनर्गठन खालिस्तान बनाने के लिए किया जा सकता है।
कनाडा के पास जमीन की कमी नहीं है। कनाडा का क्षेत्रफल 99 लाख, 84 हजार, 670 वर्ग किलोमीटर है यानी भारत के मुकाबले कनाडा के पास तीन गुना ज्यादा जमीन है। क्षेत्रफल के हिसाब से कनाडा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जबकि दुनिया का सबसे ताकतवर कहा जाने वाला अमेरिका दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है। साल 2023 में 19 सितंबर को बिजनेस स्टेंडर्ड में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में हुई जनगणना में कनाडा की आबादी तीन करोड़, 63 लाख थी।
इसमें भारतीय मूल के 18 लाख लोग शामिल थे। तब से पांच लाख भारतीय और वहां पहुंचे हैं। साल 2024 के अनुमान के हिसाब से कनाडा की आबादी चार करोड़, 20 लाख, 69 हजार है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक केरल की आबादी तीन करोड़, 34 लाख, छह हजार, 61 थी। कहने का अर्थ यह है कि पूरे कनाडा की आबादी भारत के सिर्फ एक राज्य केरल के बराबर है। कहा जा सकता है कि आबादी के घनत्व के मामले में कनाडा में प्रति व्यक्ति बहुत सारी जमीन उपलब्ध है। सिखों के लिए अगल देश के लिए वहां कनाडा के भूगोल को बिना बदले भी जगह का इंतजाम संभव है।
जस्टिन ट्रूडो ने साल 2015 में पहली बार सरकार बनाई थी। तब उन्होंने चार सिख सांसदों को मंत्री बनाया था और भारत की मोदी सरकार को ले कर चुटकी भी ली थी कि उनने मंत्रिमंडल में ज्यादा सिख मंत्री हैं। इस वक्त ट्रूडो सरकार में हरदीप एस. सज्जन इकलौते सिख मंत्री हैं। हरदीप को भारत विरोधी माना जाता है। जब कनाडा ने भारतीय राजनयिकों को वतन वापसी का आदेश दिया, तो हरदीप ने इसे सही कदम करार दिया था। उन्होंने एक्स पर पोस्ट की, ‘कनाडा की धरती पर यहां के लोगों की सुरक्षा को खतरे में डालने के गंभीर आरोप की वजह से भारतीय राजनयिकों को निकाल दिया गया।’
यह जानना भी जरूरी है कि कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार इस वक्त पूर्ण बहुमत की नहीं है। ट्रूडो की पार्टी को साल 2019 के चुनाव में भी बहुमत नहीं मिला था। वक्त से पहले हुए वर्ष 2021 के चुनाव में भी उनकी लिबरल पार्टी बहुमत में नहीं आई। वे दूसरी पार्टियों के समर्थन से ही सरकार बना सके। कनाडा की संसद में कुल 338 सीटें हैं। इस लिहाज से सरकार बनाने के लिए 169 सीटों की जरूरत होती है। लिबरल पार्टी के पास अभी सिर्फ 154 सीटें हैं।
वर्ष 2021 में हुई जनणना के मुताबिक कनाडा में सिखों की आबादी सात लाख, 70 हजार से ज्यादा है। ओंटारियो राज्य में तीन लाख और ब्रिटिश कोलंबिया में दो लाख, 90 हजार से ज्यादा सिख रहते हैं। देश की कुल आबादी में सिखों की संख्या 2.1 प्रतिशत है। चुनावी सर्वे से जुड़ी कनाडा की एक संस्था के मई में किए गए सर्वे के मुताबिक देश के सभी धार्मिक समूहों का भरोसा ट्रूडो की लिबरल पार्टी को ले कर टूट रहा है। सर्वे में पता चला कि 54 प्रतिशत सिख कंजर्वेटिव पार्टी को वोट देने का मन बनाए हुए हैं। लिबरल पार्टी को सिर्फ 21 फीसदी सिखों का ही साथ मिलता दिख रहा था।
सत्ता के मोह या फिर पूर्ण सहानुभूति की वजह से कनाडा के या दुनिया भर के खालिस्तान समर्थकों की मांग अगर ट्रूडो कनाडा को काट कर मान लेते हैं, तो वे आतंक के कम से कम एक आयाम की धार भी कुंद करने का काम कर सकते हैं। जाहिर है कि कनाडा में रह रहे सभी सिख खालिस्तान के समर्थक नहीं हैं। इधर, भारत के पंजाब में रह रहे सिखों का भी बहुत छोटा सा हिस्सा अलगाव का पक्षधर है। पंजाब में रहने वाले सभी भारतीय नागरिक अलग देश की मांग नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोग मुट्ठी भर हैं। वे भी कनाडा के पड़ोस में बने या बसे खालिस्तान में जा सकते हैं। ऐसा होने पर पंजाब में बहाल हो चुका 100 फीसदी अमन-चैन हमेशा के लिए कायम हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं होगा। इसके लिए ट्रूडो सपने में भी नहीं सोचेंगे। साफ है कि ट्रूडो आतंकवाद के खात्मे के वैश्विक संकल्प के खिलाफ जाते हुए भारत विरोध की आंच पर राजनैतिक रोटियां सेंकने का नकारात्मक प्रयास कर रहे हैं।
अंत में यह भी जानते चलें कि दुनिया का सबसे युवा देश दक्षिण सूडान है। नौ जुलाई, 2011 को जमतम संग्रह के नतीजों के आधार पर दक्षिण सूडान को सूडान से आजादी मिली और यह संयुक्त राष्ट्र के नए सदस्य के तौर पर जुड़ गया। साल 2024 की 15 अक्टूबर तारीख तक दक्षिण सूडान की आबादी एक करोड़, 20 लाख, 13 हजार, 949 हो गई है। इससे पहले इंडोनेशिया से 20 मई, 2002 में आजाद हो कर ईस्ट तिमोर (तिमोर लेस्ते) देश का जन्म हुआ था। साल 2022 की जनगणना के मुताबिक ईस्ट तिमोर की आबादी 13 लाख, 40 हजार तक पहुंच चुकी थी। साल 2024 में 16 अक्टूबर तक आबादी बढ़ कर 14 लाख, 5846 तक जा पहुंची है।
यह भी जान लें कि दुनिया का सबसे कम जनसंख्या वाले देश का नाम है वेटिकन सिटी। साल 2023-24 में यहां की आबादी 764 थी। वेटिकन सिटी इटली की राजधानी रोम में बसा है। इसका क्षेत्रफल महज 49 हेक्टेयर है। यानी किसी देश के किसी शहर में आजाद देश बसे होने का भी उदाहरण दुनिया के सामने है। खास बात यह है कि वेटिकन सिटी संयुक्त राष्ट्र का सदस्य देश नहीं है। इसे संयुक्त राष्ट्र के स्थाई पर्यवेक्षक देश का दर्जा मिला हुआ है। यानी जरूरी नहीं है कि कनाडा के किसी सीमावर्ती प्रदेश को ही खालिस्तान घोषित किया जाए। वहां के भूगोल के बीच भी ऐसा किया जा सकता है।
Tags: Canada, Canada News, PM ModiFIRST PUBLISHED : October 17, 2024, 17:24 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed