साइकिल वाले गुरु जीः सालों से साइकिल चलाकर शिक्षा की अलख जगा रहे आदित्य की कहानी
साइकिल वाले गुरु जीः सालों से साइकिल चलाकर शिक्षा की अलख जगा रहे आदित्य की कहानी
आदित्य ‘साइकिल वाले गुरूजी’ के नाम से मशहूर हैं आदित्य कुमार. वंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने 29 सालों में अब तक 5 लाख किमी से ज्यादा साइकिल चला चुके हैं. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड से लेकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा चुके हैं.
शिक्षा. वह भी फ्री में. आज के समय में इस तरह के प्रयास हमेशा आश्चर्य में डालते हैं. जिस तरह से पढ़ाई महंगी होती जा रही है, एक बड़ा वर्ग सिर्फ इसका खर्च वहन नहीं कर पाने की वजह से इससे वंचित रह रहा है. लेकिन, ऐसे समय में भी आदित्य कुमार जैसे लोग मिसाल के तौर पर सामने आते हैं.
साइकिल से गांव-गांव घूमकर, बच्चों को पढ़ाने वाले आदित्य कुमार जिन्हें बच्चे साइकिल वाले गुरुजी कहकर पुकारते हैं. उनका सफर काफी लंबा और संघर्ष भरा रहा है. उन्होंने किन परिस्थितियों से जूझकर अपने इस सफर की शुरूआत की. कैसे ये कारवां सालों से चला रहे हैं. यह सब जानने के लिए न्यूज़ 18 ने आदित्य से बातचीत की…
29 सालों से बच्चों को पढ़ाने के लिए साइकिल से सफर जारी है.
गरीबी में बीता बचपन
आदित्य फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए. माता-पिता मजदूरी करते थे. एक स्लम एरिया में रहते थे. कई बार आर्थिक तंगी के चलते भूखे भी सोना पड़ा है. मां ने यहां-वहां से मांग कर पाला और पढ़ाया.
पिता कहते थे, “मैंने पूरी जिंदगी मजदूरी की है. अपने लिए तो सभी जीते हैं. लेकिन तुम पढ़-लिखकर समाज के लिए कुछ अच्छा करना.” इस तरह हालातों का सामना करते हुए उन्होंने बीएससी किया. अंग्रेजी की ट्यूशन पढ़ाकर गुजारा करते थे.
उद्देश्य के चलते छोड़ दिया परिवार
आदित्य कहते हैं, साल 1995 में बीएससी कर लेने के बाद नौकरी करने का विकल्प था. लेकिन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर ही गुजारा कर रहे थे. उसी दौरान कुछ गरीब बच्चे जो फीस नहीं भर पाते थे, उन्हें ट्यूशन पढ़ाने से मना कर दिया, जिसका बाद में बहुत बुरा लगा. जिसके बाद कुछ बच्चों को मुफ्त में कोचिंग पढ़ाई. उन बच्चों को पढ़ाकर बहुत अच्छा लगा और सम्मान भी मिला. उसके बाद गरीब बच्चों को मुफ्त में ही कोचिंग पढ़ाने लगे.
गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए परिवार का भी त्याग कर दिया.
जैसा कि एक परिवार की अपने बच्चों से अपेक्षाएं रहती हैं, वैसे ही आदित्य के परिवार वाले भी उन्हें सरकारी नौकरी कराना चाहते थे. जिससे की शादी करके आदित्य घर बसाएं. लेकिन आदित्य चाहते थे कि जिस परिवेश और परिस्थितियों से वे पढ़कर निकले हैं. ऐसे कई बच्चे हैं जो इन परिस्थितियों में पढ़ नहीं पाते हैं. इसलिए उन्होंने ऐसे बच्चों को पढ़ाने का मन बना लिया था. उनकी बात परिवार ने नहीं मानी जिसके चलते उन्हें अपना परिवार छोड़ना पड़ा. और वह लखनऊ रेलवे स्टेशन पर आकर रहने लगे.
स्टेशन से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया
स्टेशन पर रहने के दौरान आस-पास रहने वाले झुग्गी, बस्ती और भिखारियों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. पढ़ाते-पढ़ाते लगभग 200 बच्चे हो गए. उसके बाद लोगों ने उनके काम को देख उनका साथ दिया. फिर उन 200 बच्चों को दूसरे लोग पढ़ाने लगे और आदित्य और बच्चों को पढ़ाने के लिए दूसरे गांवों तक जाने लगे. इस तरह उन्होंने लखनऊ, कानपुर में लगभग 350 क्लासेस चलाए.
29 सालों में 5 लाख किमी साइकिल चलाकर कायम किया रिकॉर्ड
50 साल के आदित्य बताते हैं कि आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होने के कारण क्लासेस चलाने के लिए लोगों से मदद की गुहार भी लगाई. इसमें साइकिल में एक बोर्ड लगाया था. जिसमें लिखा था “गरीब, बेसहारा बच्चों को पढ़ाने के लिए मदद करें.” साइकिल पर लगी तख्ती को देखकर लोगों ने काफी मदद की जिससे देश भर में क्लासेस चलाने में मदद मिली. कई लोगों ने साथ दिया और पढ़ाने में मदद करने के लिए आगे भी आए. इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए लगभग 5 लाख किमी साइकिल चलाई. वह 29 सालों से अपनी इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं. साइकिल पर लगी तख्ती को देखकर वह लोगों के लिए और बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं. जिससे सड़क पर आने जाने वाले लोग भी रुककर उनकी बात सुनते हैं और उनकी मदद भी करते हैं. इससे अब तक 4.50 लाख क्लासेस शुरू कर चुके हैं. वे कहते हैं कि “साइकिल हमारे लिए हमारा चलता फिरता घर है. रास्ते में कहीं थक जाने पर जब साइकिल लगाकर सो जाते हैं तो साइकिल पर लगी तख्ती को पढ़कर लोग या पुलिस डांट फटकार नहीं लगाते हैं बल्कि मदद करते हैं. साइकिल धीरे-धीरे हमारी पहचान बन गई और मुझे देख कर अब लोग कहते हैं साइकिल वाले गुरुजी आ गए.”
रेल्वे स्टेशन पर रहकर स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ाते थे.
अब तक कई पुरस्कार मिल चुके हैं
आदित्य बताते हैं कि शिक्षा के लिए किए गए इस काम के चलते अब तक कई पुरस्कार मिल चुके हैं. उन्हें ‘हीरो ऑफ द नेशन’ अवॉर्ड मिल चुका है. साल 2018 में गूगल की तरफ से भारत का नंबर 1 शिक्षक होने का अवॉर्ड दिया गया है. इसके साथ ही बीबीसी ने भी श्रेष्ठ शिक्षक के खिताब से नवाज़ा है. पूरे भारत में क्लासेस चलाने के चलते अब तक 15 मुख्यमंत्रियों द्वारा सम्मानित किया गया है. इसके साथ ही 8 गवर्नर भी उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित कर चुके हैं. उन्होंने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दो बार नाम दर्ज करवाया है.
लोगों को देना चाहते हैं यह संदेश
आदित्य कहते हैं कि मानव जाति के लिए शिक्षा सबसे बड़ी ताकत है. समाज में आज तक सारे सकारात्मक बदलाव शिक्षा की वजह से ही आए हैं. समाज की उन्नति आगे भी शिक्षा के जरिए ही की जा सकती है. व्यक्ति उम्र, वर्ग या पैसे से बड़ा नहीं होता है. बल्कि शिक्षा से बड़ा होता है. क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को संसार के अलग-अलग क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं और व्यवस्थाओं को समझने की शक्ति देती है. हमारी दुनिया शिक्षा की वजह से ही एक छोटे से ग्राम या कस्बे में तब्दील हो गई है. यदि हम शिक्षित नहीं होंगे तो हमारा छोटा सा मोहल्ला, गांव, कस्बा ही हमारे लिए हमारा संसार हो जाएगा. इसलिए शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए साथ ही हर व्यक्ति की शिक्षा में भागीदारी होनी चाहिए. लोगों को शिक्षा के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए. वह शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए आजीवन प्रयास करते रहेंगे.
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