300 प्रकार के रसगुल्ले मिलिए उनसे जो रसगुल्ले को और बेहतरीन बनाती हैं
300 प्रकार के रसगुल्ले मिलिए उनसे जो रसगुल्ले को और बेहतरीन बनाती हैं
2016 में 50 प्रकार के रसगुल्लों से की थी शुरुआत और आज 300 का आंकड़ा भी कर चुकी हैं पार. सबसे अधिक बिकने वाले रसगुल्लों में शामिल हैं मिर्ची रसगुल्ले और गुंडी पान शॉट रसगुल्ले. जल्द ही बनायेंगी पोड़ी रसगुल्ले.
रसगुल्ले का नाम सुनते ही हर खाने के शौकीन के मुंह में पानी तो आ ही गया होगा. कोलकाता शहर की पहचान और मिठाइयों की जान, माने जाने वाले रसगुल्ले का नाम सुनते ही दिमाग में एक सफ़ेद, स्पंजी और रसदार चीज़ की छवि आती है. लेकिन क्या आपने कभी हरे, लाल या नीले रंग के रसगुल्लों के बारे में सुना है या फिर इसके बारे में कभी सोचा है? अगर नहीं और यह सुनकर आप चौंक गए तो आगे की बात जानकर तो आप हैरत में पड़ जाएंगे. जी हां, लाल, हरे और नीले रसगुल्लों के अलावा यहां मिलते हैं मिर्ची और करेले के भी रसगुल्ले.
तो आज आपको मिलाते हैं इन रसगुल्लों को बनाने वाली स्वाती सराफ़ से. कोलकाता की रहने वाली स्वाती को अगर हम ‘क्वीन ऑफ रसगुल्ला’ कहें तो गलत नहीं होगा. क्योंकि उन्होंने अब तक ना जाने कितने प्रकार के रसगुल्ले बनाए हैं. तरबूज से लेकर मिर्ची तक और करेले से लेकर लीची तक, वह हर प्रकार के रसगुल्ले बना चुकी हैं.
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान स्वाती विस्तार से बताती हैं अपने रसगुल्लों के साथ प्रयोग के सफ़र के बारे में. स्वाती सराफ़ कहती हैं कि रसगुल्लों के साथ प्रयोग करने की प्रेरणा उन्हें अपनी मां से मिली. दरअसल, उनकी मां मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त थीं. वह कहती हैं कि उनकी मां को मिठाई बहुत पसंद थी पर मधुमेह से ग्रस्त होने के कारण वह इसका अधिक सेवन नहीं कर पाती थीं. फिर एक दिन उन्होंने यू ही सोचा कि क्यों ना रसगुल्लों को एक अलग और अनोखा ट्विस्ट दिया जाए जिससे उनकी मां भी बेहिचक रसगुल्लों का सेवन कर पाएं. स्वाती ने तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि रसगुल्लों को अनोखा ट्विस्ट देने का यह विचार उनके जीवन को ही एक नया ट्विस्ट दे देगा. मां के लिए कुछ करने के विचार से प्रेरित होकर उठाया गया एक कदम आज दुनिया भर में ना सिर्फ उनके बल्कि कोलकाता और रसगुल्लों के नाम की भी ख्याति बिखेर रहा है.
50 प्रकार से की थी शुरुआत और आज 300 से अधिक प्रकार के रसगुल्ले किए हैं तैयार
वह बताती हैं कि 2016 में शुरू किए गए रसगुल्लों के साथ प्रयोग के इस सफ़र में आज वह काफ़ी आगे तक आ चुकी हैं. उन्होंने अपने सफ़र की शुरुआत पचास प्रकार के रसगुल्लों से की थी और आज वह तीन सौ से भी अधिक प्रकार के रसगुल्ले बना चुकी हैं. लगभग हर प्रकार के फलों का प्रयोग करके वह रसगुल्ले बना चुकी हैं. आपको बता दें कि फल तो फल उन्होंने सब्जियों को भी नहीं छोड़ा है. कई प्रकार की सब्जियों से भी वह रसगुल्ला बना चुकी हैं. स्वाती सराफ़ की दुकान में आपको टमाटर, शिमला मिर्च और यहां तक कड़ी पत्ते के रसगुल्ले भी मिल जाएंगे. और सिर्फ यही नहीं मीठे से दूर-दूर तक नाता ना रखने वाले करेले और मिर्ची के भी उन्होंने रसगुल्ले बनाए हैं.
जानिए रसगुल्लों से प्रयोग के पीछे का कारण
हम से बातचीत के दौरान स्वाती बताती हैं कि पश्चिमी मिठाइयों के बढ़ते चलन के कारण आजकल लोग पारंपरिक भारतीय मिठाइयों को भूलते जा रहे हैं. पहले कोलकाता के हर उत्सव, समारोह में रसगुल्ला बनता था लेकिन आजकल केक ने रसगुल्ले की जगह ले ली है. इसका एक कारण लोग बताते हैं कि पारंपरिक मिठाइयों में चीनी की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है. इसलिए उन्होंने शुरुआत की स्वनिर्धारित (customised) रसगुल्लों की.
वह बताती हैं कि वह लोगों की पसंद के हिसाब से रसगुल्ले बनाती हैं. वह अपने बेटे का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि उनके बेटे को मीठा बिल्कुल भी पसंद नहीं है, इसलिए उन्होंने सबसे पहले उसे ही मिर्ची के रसगुल्ले चखाए थे और आज मंज़र यह है कि वह उनके हाथ के रसगुल्लों को छोड़कर और कोई मीठा नहीं खाता है.
काफ़ी लंबी है सिग्नेचर रसगुल्लों की कतार
उनके मुताबिक उनके यहां सबसे ज़्यादा बिकने वाले रसगुल्लों में मिर्ची रसगुल्ले, गुंडी पान शॉट, अलफांसों, लीची और मल्बेरी रसगुल्ले हैं. इसके अलावा उनके यहां ऑर्गैनिक फूल की पंखुड़ियों से बने रसगुल्ले भी बिकते हैं.
परिवार को था हमेशा से उन पर पूरा यकीन
वह कहती हैं कि जब उन्होंने पचास रसगुल्लों के साथ शुरुआत की थी तो उन्हें नहीं मालूम था कि इन रसगुल्लों के भविष्य में क्या है. पर उनके मुताबिक उनके परिवार को हमेशा से उन पर पूरा यकीन था और पहले दिन से ही उनके परिवार को यह विश्वास था कि उनका यह प्रयोग ज़रूर कामयाब होगा.
विदेशों में भी जाते हैं उनके रसगुल्ले
वह कहती हैं कि उनकी कोलकाता में दुकानें हैं. इसके साथ ही देश और विदेश में भी उनके रसगुल्ले जाते हैं. थोक ऑर्डर होने पर शादी-ब्याह और समारोह में जाकर वह खुद रसगुल्ले बनाती हैं.
अब बड़ी हो गई है टीम
वह बताती हैं कि अब उनके पास 15 लोगों की टीम है, लेकिन फिर भी रसगुल्ले वह खुद ही बनाती हैं. उनका कहना है कि उनके रसगुल्लों की USP केवल उनके पास है जो वह किसी के साथ साझा नहीं करती हैं. आज भी सारे रसगुल्ले उनके घर पर ही बनाए जाते हैं जिसके बाद उन रसगुल्लों को उनकी दुकानों में भेजा जाता है.
फूड फेस्टिवल से मिली बिजनेस को पहचान
उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा आयोजित फूड फेस्टिवल से उनके रसगुल्लों को पहचान मिली है. इससे पहले सोशल मीडिया के माध्यम से चलता था बिजनेस, लेकिन जब से वह फूड फेस्टिवल में स्टॉल लगा रही हैं उनके ग्राहकों में काफ़ी वृद्धि हुई है.
भविष्य की नीति
वह कहती हैं कि उनका लक्ष्य पांच सौ प्रकार के रसगुल्ले बनाना है. वह तीन सौ प्रकार के रसगुल्ले बना चुकी हैं और आने वाले कुछ वक़्त में ही वह पांच सौ का आंकड़ा भी पार कर लेंगी. उनके मुताबिक उनका असल मकसद है अपने ग्राहकों तक प्राकृतिक चीज़ों से बने हुए प्रोडक्ट पहुंचाना.
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