कोरोना में हुए थे बेरोजगार 50 हजार इन्वेस्ट कर मोती की खेती से 9 लाख रु महीना कमा रहे

उन्होंने मोती की खेती की शुरुआत 1000 सीपों से की थी और एक सीप की औसतन कीमत 10-12 रुपये होती है. ज़्यादातर सीप केरल, मुंबई और सूरत से लाए जाते हैं. एक बैच सीप की मोती बनने में 15-20 महीने लगते हैं. रज़ा बताते हैं कि मोती की खेती से उनकी सालाना 2 से 3 लाख रुपये की आय होती है.

कोरोना में हुए थे बेरोजगार 50 हजार इन्वेस्ट कर मोती की खेती से 9 लाख रु महीना कमा रहे
अजमेर के रसूलपुर के रहने वाले रज़ा मोहम्मद ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि मजबूरी में लिया गया निर्णय एक दिन उनकी किस्मत चमका देगा. दरअसल 41 वर्षीय रज़ा इससे पहले अपने ही खोले प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे. लेकिन, परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें स्कूल बंद करना पड़ा. इसके बाद उनके सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया. लेकिन, इसके बाद उन्होंने जो रोज़गार का विकल्प ढूंढा, उसने उनकी किस्मत बदल दी. न्यूज 18 से बातचीत के दौरान रज़ा बताते हैं कि किस प्रकार उन्होंने अपनी छोटी सी ज़मीन पर मोती की खेती की. वह कहते हैं कि बेरोज़गार होने के बाद रोज़गार की तलाश और कुछ नायाब करने की चाह में घंटों भटकता रहता था. फिर एक दिन किसी परिचित से मोती की खेती के बारे में पता चला. वह कहते हैं, “हमारे पास केवल डेढ़ बीघा ज़मीन है इसलिए पारंपरिक खेती तो कर नहीं सकते थे और फिर जब मोती की खेती के बारे में पता चल तो फिर जुट गए इसकी तैयारी में.” नहीं थी कोई जानकारी, लिया प्रशिक्षण वह बताते हैं कि उन्हें इस विषय की कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने जयपुर के नरेंद्र गरवा से प्रशिक्षण प्राप्त करने का निर्णय लिया. वह कहते हैं कि जिस दौरान उन्होंने ये निर्णय लिया था उस वक़्त लॉकडाउन के चलते सरकारी प्रशिक्षण केंद्र सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) बंद था. उन्होंने नरेंद्र गरवा से दो दिन प्रशिक्षण लेने के बाद अपनी डेढ़ बीघा ज़मीन पर 10/25 का छोटा सा तालाब बनाया और 15-20 टैंकर पानी उसमें भरवा दिया. पूरा सेटअप और प्रशिक्षण मिलाकर उनका कुल निवेश 50 हजार रुपये का था. वह कहते हैं कि इस खेती में ज़्यादा निवेश नहीं है, और बहुत ही कम देख रेख के साथ कई गुना ज़्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. वह आगे बताते हैं कि केवल समय- समय पर पानी का ph लेवल और ammonia लेवल जांचते रहना चाहिए और इसकी मशीन आसानी से मार्केट में उपलब्ध होती है. 1000 सीपों से की शुरुआत उन्होंने मोती की खेती की शुरुआत 1000 सीपों से की थी और एक सीप की औसतन कीमत 10-12 रुपये होती है. ज़्यादातर सीप केरल, मुंबई और सूरत से लाए जाते हैं. एक बैच सीप की मोती बनने में 15-20 महीने लगते हैं. रज़ा बताते हैं कि मोती की खेती से उनकी सालाना 2 से 3 लाख रुपये की आय होती है. इसके साथ ही वह बच्चों को ट्यूशन भी देते हैं क्योंकि इस खेती में ज़्यादा वक़्त और मेहनत नहीं लगती है. खराब हो जाती हैं 50 प्रतिशत सीपें हालांकि वो बताते हैं कि प्रारंभिक स्टेज में 20-25 प्रतिशत सीपें खराब हो जाती हैं और अंतिम स्टेज तक आते आते 50 प्रतिशत सीपें खराब हो जाती हैं. इस प्रक्रिया में नुकसान भी होता है पर बाकी बचे सीपों से जो मोती बनते हैं उनसे नुकसान की भरपाई हो जाती है. इस खेती में ज़्यादा नुकसान तभी होगा जब 50 प्रतिशत से ज़्यादा सीपें खराब हो जाएं. अगर समय-समय पर सीपों की जांच ना की जाए तो अधिक नुकसान होता है. हालांकि वह ये भी कहते हैं कि इस खेती में कभी भी 100 प्रतिशत सफ़लता हासिल नहीं होती है. उनके मुताबिक हर सीप का मोती गुणवत्ता में दूसरे सीप के मोती से अलग होता है. गोल मोती का मूल्य मार्केट में डिजाइन वाले मोती से कई गुना ज़्यादा है. पर गोल मोती की मॉर्टलिटी रेट भी काफ़ी ज़्यादा होती है और साथ ही एक सीप में केवल एक ही गोल मोती होता है जबकि एक सीप में दो डिजाइन वाले मोती होते हैं. भविष्य में लाएंगे 5000 मोती वह बताते हैं कि अभी 2000 सीप लाते हैं लेकिन आने वाले दिनों में वो खेती के विस्तार का विचार कर रहे हैं. जनवरी से 5000 सीपों की खेती करने का प्लान कर रहे हैं. रज़ा के मुताबिक उनकी इस सफ़लता का श्रेय उनके मार्गदर्शक नरेंद्र गरवा को जाता है. वह बताते हैं कि नरेंद्र ने किस तरह उनका पूरी खेती के दौरान मार्गदर्शन किया. वह कहते कि जब भी उन्हें कोई समस्या हुई नरेंद्र गरवा ने तुरंत उन्हें समाधान बताया. कौन हैं नरेंद्र गरवा राजस्थान के जयपुर के रहने वाले नरेंद्र गरवा ने न्यूज 18 से बात करते हुए बताया कि वह 2015 से पर्ल फ़ार्मिंग कर रहे हैं. इससे पहले वह किताबें बेचते थे पर जब किताबें बिकनी कम हो गईं और दुकान से सिर्फ नाम मात्र आय होती थी तो उन्होंने कुछ और काम करने का सोचा. कुछ अलग करने की चाह में इंटरनेट पर तरीके और सुझाव खोजने लग गए. उन्हें इंटरनेट के माध्यम से टेरेस फ़ार्मिंग के बारे में पता चला और जब वो इसमें सफल रहे तो उनमें आत्मविश्वास आया कि वो कुछ और भी कर सकते हैं. वह बताते हैं, “मैंने यू ट्यूब देख कर ही मोती की खेती शुरू की. जब शुरुआत की थी तब मुझे इस विषय में ज़्यादा ज्ञान नहीं था. 2015 तक मैंने खुद ही मोती की खेती की पर मेरी मॉर्टलिटी रेट बहुत ज़्यादा हो रही थी. क्योंकि मुझे उतना ज्ञान नहीं था. इसलिए फिर मैंने सरकारी संस्थान CIFA में 5 दिन की ट्रेनिंग ली. 2017 में मैं ओडिशा गया और प्रशिक्षण प्राप्त किया. इसके बाद मैंने 3000 सीपों से शुरू किया और आज मेरा खुद का एक संस्थान है जहां मैं लोगों को प्रशिक्षण देता हूं. मैं युवाओं और महिलाओं को सिखाता हूं ताकि उनको भी रोज़गार का अवसर प्राप्त हो. 8-9 लाख रुपये कमा लेते हैं गरवा वह कहते हैं, “जब परिवार वालों को बताया था तो वो बहुत नाराज़ हो गए थे कि अच्छी खासी दुकान छोड़ कर ये क्या शुरू कर दिया. राजस्थान में मोती उगने की संभावना काफ़ी कम थी. यहां पीने के लिए पानी नहीं था तो लोगों ने सोचा की मोती कहां से उगेगा.” इस पर नरेंद्र ने कम पानी में मोती उगाने का निश्चय किया. उन्होंने 17 लीटर पानी में 35 मोती उगाने का रिकॉर्ड भी दर्ज किया है. वह बताते हैं, “मेरे एनजीओ में 2 दिन का ट्रेनिंग प्रोग्राम है, एक दिन की थ्योरी और एक दिन का प्रैक्टिकल. मैंने जिस सेंटर में प्रशिक्षण लिया है वहां मोती के साथ मछली पालन भी सिखाते थे, लेकिन हम सिर्फ मोती की खेती ही सिखाते हैं. मैं साल में 8-9 लाख रुपये कमा लेता हूं और इसमें ज़्यादा देख-रेख की जरूरत भी नहीं पड़ती है.” ब्रेकिंग 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