कभी खुद टूटे गिटार से सीखा था संगीत आज अपने बनाए बोंग गिटार के लिए हैं विश्व प्रसिद्ध
कभी खुद टूटे गिटार से सीखा था संगीत आज अपने बनाए बोंग गिटार के लिए हैं विश्व प्रसिद्ध
बेनी प्रसाद 10वीं में फेल हुए. परिवार वाले ताने मारते थे. इसका असर उनके मेंटल हेल्थ पर पड़ा. इस दौरान वह बीमार भी पड़े और फेफड़ा 60% तक काम करना बंद कर दिया था. लेकिन, उन्होंने जिस तरह कमबैक किया, वह मिसाल बन गया.
यह कहानी है एक ऐसे शख्स की है जिसे बचपन में नालायक, नाकारा और ना जाने क्या- क्या कहा गया. लेकिन आज उसकी गिनती होती है दुनिया के बेहतरीन संगीतकारों में. आज अपने हुनर और कला की बदौलत न सिर्फ वह अपना, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन कर रहे हैं. हम जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं वह हैं विश्व प्रसिद्ध म्यूजिशियन बेनी प्रसाद.
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान वह बताते हैं अपनी ज़िंदगी और पूरी दुनिया के सफ़र के बारे में विस्तार से. बेनी प्रसाद कहते हैं, बचपन से वह अपने परिवार के लिए एक अभिशाप थे. ‘नालायक, ‘निकम्मा’ और ‘नाकारा’ जैसे शब्द तो मानो उनके नाम के पर्यावाची बन गए थे.
बेनी एक हाईस्कूल ड्रॉप आउट हैं. लेकिन अपने जिज्ञासु स्वभाव के चलते स्कूली दिनों में बहुत सवाल पूछते थे जिससे उनके टीचर उनसे चिढ़ जाते थे और गुस्सा करते थे. इस कारण उनकी पढ़ाई में रुचि समाप्त हो गई और फिर वह क्लास 10 में फ़ेल हो गए. फ़ेल होने के बाद उनके स्कूल ने उनका तबादला अन्य जगह कर दिया. नए स्कूल जाकर वह फिर से ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में फ़ेल हो गए. बार- बार विफलता से निराश हो कर उन्होंने पढ़ाई ही छोड़ देने का निर्णय किया.
बार- बार फ़ेल होने और पढ़ाई छोड़ देने के निर्णय से उनके परिवार वाले गुस्सा करते. वह कहते हैं कि बचपन में अक्सर उन्हें पढ़ाई ना करने की वजह से बहुत मार पड़ती थी. उनके पिता जी प्रसाद राव ‘नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरी’ में काम करने वाले एक ‘एयर क्राफ्ट’ वैज्ञानिक हैं. एक वैज्ञानिक का बेटा क्लास 10 फ़ेल हो यह उनके परिवार की प्रतिष्ठा के खिलाफ था. हर कोई उन्हें परिवार को शर्मसार करने की सज़ा देता. यही नहीं वह जहां जाते, जिससे मिलते हर कोई उन्हें सिर्फ एक नाकामयाब व्यक्ति के तौर पर देखता था.
इन सब कारणों के चलते एक तरफ़ वह डिप्रेशन से जूझ रहे तो दूसरी ओर शारीरिक तौर पर वह बचपन से दमा ग्रस्थ हैं. वह कहते हैं कि दो साल की उम्र से दमा की गलत दवा दे दी गई थी और ये गलत दवाओं का सिलसिला 16 साल की उम्र तक चला. गलत दवाओं की बदौलत केवल 16 वर्ष की आयु में ही उनके फेफड़े 60 प्रतिशत खराब हो चुके थे और डॉक्टर ने तो यहां तक कह दिया था कि उनके पास उनके जीवन के बस कुछ अंतिम महीने बचे हैं.
16 साल की बाल आयु में दिमागी और शारीरिक तौर पर इतनी कठिन परिस्थितियों का सामना करने के बाद वह इस जीवन से मुक्ति पाने के बारे में सोचने लगे. उनका दिमागी स्वास्थ्य इतना खराब हो चुका था की वह अपने जीवन के कुछ आखिरी महीने भी नहीं जीना चाहते थे.
बेनी की मां से अपने बेटे की यह हालत देखी नहीं गई और उन्होंने बेनी से एक चर्च द्वारा आयोजित कैम्प में तीन दिन गुज़ारने का आवेदन किया. वह कहते हैं कि मां के आवेदन को वह ठुकरा ना सके और ना चाहते हुए भी वह तीन दिनों के लिए उस कैम्प में रहने चले गए. कैम्प में गुज़ारे गए वह तीन दिन बेनी के जीवन को हमेशा के लिए बदलने वाले थे. इस बात से पूरी तरह अनजान बेनी ने वापस आकर अपना जीवन समाप्त करने का निर्णय ले लिया था.
अपने इस नए जीवन को वह जीजस का वरदान मानते हैं. हम से बात करते हुए वह बताते हैं कि कैम्प से वापस आकार उन्हें यह यकीन हो गया कि जीजस के पास उनके जीवन के लिए भी कोई योजना अवश्य है और यहीं से शुरू होता है उनके जीवन का एक नया अध्याय.
जीवन के प्रति भले ही उनका नज़रिया बदल गया हो पर स्कूली शिक्षा के प्रति अभी भी उनकी वही धारणा थी. इसलिए उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने का प्रयास नहीं किया और जुड़ गए एक शिल्प और बाइबिल की शिक्षा देने वाली संस्था से.
पहली बार इसी संस्था में उठाया गिटार –
उनके मुताबिक जब वह इस संस्था में शिल्प और बाइबिल की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें एक टूटा हुआ गिटार मिला था. उस टूटे हुए गिटार को ठीक करके उन्होंने स्वयं ही गिटार बजाना सीखा. इस प्रकार उनका परिचय हुआ संगीत से.
आज दुनिया भर में जाने जाते हैं अपने बोंग निर्मित गिटार के लिए-
कभी खुद टूटे हुए गिटार से संगीत सीखने वाले बेनी आज दुनिया भर में अपने बनाए बोंग गिटार के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने 2004 में ग्रीस की राजधानी एथेंस में आयोजित ओलिंपिक में प्रस्तुति के लिए यह खास गिटार बनाया था. आपको बतादें कि पूरे विश्व में सिर्फ एक ही बोंग गिटार है जो बेनी द्वारा निर्मित है.
क्यों है बोंग गिटार इतना खास?
इस गिटार की खासियत है कि पूरे विश्व में यह एक लौता गिटार है जिसके भीतर ड्रम्स हैं. इसको बनाने के पीछे का कारण भी उतना ही खास है जितना की यह गिटार. वह कहते है कि यह गिटार उनके बुरे दौर की यादें ताज़ा रखता है कि किस प्रकार एक टूटी हुई चीज़ से भी एकदम अलग और नायाब चीज़ बनाई जा सकती है. वह बाकी लोगों को भी गिटार के माध्यम से यह संदेश देना चहते हैं कि चाहे ज़िंदगी में कितनी भी काली रातें क्यों ना आ जायें पर हर रात की सुबह तो ज़रूर होती है.
कभी फ़ेल होने के लिए मिलते थे ताने पर आज हैं विश्व प्रसिद्ध ‘म्यूजिशियन’-
अपनी कला और हुनर से पूरे विश्व में उन्होंने भारत का परचम लहराया है. वह कई सारे बड़े- बड़े आयोजनों में अपनी कला की प्रस्तुति कर चुके हैं. वह अबतक 2004 में ग्रीस ओलिंपिक, 2006 में जर्मनी फिफा वर्ल्ड कप, 2007 में हैदराबाद में आयोजित मिलिट्री वर्ल्ड गेम और 2012 में लंदन ओलिंपिक में प्रस्तुति कर चुके हैं.
संगीत के अलावा पूरी दुनिया की सैर का भी था शौक-
बेनी की उपलब्धियों की सूची में एक वर्ल्ड रिकार्ड भी शामिल है. उन्होंने मात्र छह साल छह महीने और 22 दिनों में 257 देशों का भ्रमण कर वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज किया है और उनका यह रिकार्ड आज भी कायम है.
जानिए कैसे किया ‘वर्ल्ड टूर’ के लिए पैसों का प्रबंध –
वह बताते हैं कि वर्ल्ड टूर पर जाने से पहले उन्होंने अपना एक एल्बम निकाला था और उसी एल्बम के पैसों से वह निकल गए थे वर्ल्ड टूर पर. साथ ही वह जिस भी देश जाते वह अपने एल्बम की सीडी ले जाते और उसे बेचकर जमा हुई धनराशि से अपनी यात्रा जारी रखते. इसके अलावा वह हर देश में अपनी कला की प्रस्तुति करते जिससे प्रसन्न होकर लोग उन्हें कुछ ना कुछ पैसे दे देते. उन्होंने इसी प्रकार अपना वर्ल्ड टूर संपन्न किया है.
अमेरिका ने सम्मानित किया डॉक्टरेट की उपाधि से
वह कहते हैं कि वह अपने अमेरिकी दौरे के दौरान स्कूली शिक्षा पर एक प्रस्तुति दे रहे थे और उनकी प्रस्तुति से प्रसन्न होकर वहां के चांसलर और उप -चांसलर ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से नवाज़ा.
देश लौटकर खोला एक कैफे
वर्ल्ड टूर से वापस आने के बाद उन्होंने अपना एक कैफै खोला है जिसका नाम है ‘चाय 3:16’. इस कैफै के नाम के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है. दरअसल, वह कहते है कि हिब्रू में चाय का अर्थ होता है जीवन और 3:16 -बाइबिल का वह अंश है जिसमें जीवन के बारे में सीखाया गया है. इस कैफै का नाम इसके काम से ही प्रेरित है.
आपको शायद यह जान कर हैरत होगी कि इस कैफै में सिर्फ चाय मिलती है और कुछ नहीं. दरअसल, यह कैफै तो सिर्फ नाम का है, इसका असली मकसद है डिप्रेशन ग्रस्थ युवाओं की निशुल्क काउंसलिंग. यहां आने वाले किसी भी व्यक्ति से कोई पैसे नहीं लिए जाते हैं. वह कहते हैं कि उनके काम को देखते हुए उनसे प्रसन्न हो कर लोग खुद ही कुछ मदद कर देते है. इस कैफै में पांच लोग काम करते हैं और यहां काम करने वाला एक भी सदस्य तनख़्वाह नहीं लेता है.
कैसे गुज़ारते हैं जीवन
उनके मुताबिक उन्होंने कभी भी लाभ कमाने की मंशा से यह कैफै नहीं खोला था. इससे जो भी थोड़ी-बहुत धनराशि अर्जित होती है उससे वह अपना गुज़ारा कर लेते है. इसके अलावा इस सितंबर में वह अपनी एक किताब ‘unthinkable’ पब्लिश करने वाले हैं. यह किताब उनके वर्ल्ड टूर के अनुभवों का संग्रह है और उन्हें आशा है कि इससे कुछ कमाई भी अवश्य होगी.
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