कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तय किए 5 लक्ष्य चुनौतियां भी कम नहीं
कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तय किए 5 लक्ष्य चुनौतियां भी कम नहीं
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) को मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के रूप में करीब दो दशकों के बाद गैर-गांधी परिवार का कोई नेता अध्यक्ष रूप में मिला है. कांग्रेस आज जिस मोड़ पर खड़ी है, उसे देखते हुए नए निर्वाचित अध्यक्ष के लिए आने वाले समय में कई चुनौतियां हैं. हालांंकि खड़गे ने अपने लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं.
हाइलाइट्सकांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तय किए लक्ष्य दो दशकों के बाद गैर-गांधी परिवार का नेता कांग्रेस अध्यक्ष बना नए अध्यक्ष खड़गे के लिए आने वाले समय में कई चुनौतियां सामने
नई दिल्ली. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) को मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के रूप में करीब दो दशकों के बाद गैर-गांधी परिवार का कोई नेता अध्यक्ष रूप में मिला है. और इस महत्वपूर्ण वक्त पर राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा को बीच में विराम देकर कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में खड़गे ने शशि थरूर को 6825 मतों से हराया था. लेकिन कांग्रेस आज जिस मोड़ पर खड़ी है, उसे देखते हुए नए निर्वाचित अध्यक्ष के लिए आने वाले समय में कई चुनौतियां हैं. हालांंकि खड़गे ने अपने लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी और पहली चुनौती है 2022-2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव, दूसरी चुनौती है 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन और उसके माध्यम से पार्टी की साख वापस लाना, जबकि तीसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी से जो लोग छोड़ कर जा रहे हैं उनको रोकना और पार्टी में मुख्य धारा में बनाए रखना. जहां एक ओर मल्लिकार्जुन खड़गे पर अपनी पार्टी को मजबूत करने की बड़ी जिम्मेदारी है. वहीं, दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे मंझे हुए नेतृत्व के मौजूदगी में संघ जैसी मजबूत संगठन वाली भाजपा के सामने विकल्प के रूप में खड़े होना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं.
पार्टी और संगठन को मजबूत करना
मौजूदा हालात में कांग्रेस जिस मोड़ पर खड़ी है अध्यक्ष रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे की सबसे बड़ी जिम्मेवारी पार्टी और संगठन को मजबूत करना है. चुनावी समर में मिलती लगातार हार और गुटबाजी के कारण पार्टी से चेहरे के रुप में स्थापित हो चुके एक से एक बड़े नेता छोड़कर जा चुके हैं या जाने वाले हैं. इस सिलसिले को रोकना और संगठन को मजबूत करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी. जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल पैदा करने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे कार्यकर्ताओं में भविष्य को लेकर कोई उम्मीद और विश्वास जगे.
गुजरात और हिमाचल में पार्टी को जीत दिलाना
अध्यक्ष के रूप में दूसरी बड़ी चुनौती खड़गे के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश में पार्टी को आगामी विधानसभा में चुनाव जितवाना है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं कि कांग्रेस को पूरे 51 वर्ष बाद कोई दलित नेता पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहा है. और दलित कभी कांग्रेस का कोर वोटर हुआ करता था. चूंकि गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में दलित मतदाता चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे से इन सभी चुनावों में अपेक्षाएं भी ज्यादा होंगी .जैसा कि हम जाने हैं कि गुजरात पिछले 27 सालों से बीजेपी की बादशाहत बरकार है, तो वहीं हिमाचल में भी बीजेपी का सत्ता पर काबिज है. दोनो राज्यो में खड़गे को कांग्रेस को जीत दिलाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. इन दोनो राज्यो में भाजपा के साथ- साथ कांग्रेस को आम आदमी पार्टी का भी सामना करना होगा. जिस प्रकार से अरविंद केजरीवाल गुजरात में सक्रिय हैं वो कांग्रेस के लिए नया सिरदर्द हैं.
जमीनी और जनाधारवाले नेताओं को संगठन में उनका हक दिलाना
खड़गे पर पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के साथ ही जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को संगठन में सम्मानजनक स्थान दिलाना भी किसी चुनौती कम नहीं है. ऐसा इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि पिछले कुछ दिनों में जिस प्रकार से कांग्रेस के बड़े और जनाधार वाले नेताओं ने पार्टी से किनारा किया है उससे कार्यकर्ताओं और वोटरों में पार्टी और नेतृत्व को लेकर नकारात्मक संदेश ही गया है.
दलितों को कांग्रेस के साथ जोड़ना
पिछले कुछ समय से कांग्रेस की राजनीति में दलित वोट बैंक पर खास जोर दिया जा रहा है. दलित समुदाय से आने वाले खड़गे को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने समाज को एक सकारात्मक संदेश देने की भी कोशिश हैं. हांलाकि पंजाब चुनाव से ठीक पहले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने वाला दांव कोई भूला नहीं है, पर जिस तरीके से वहां पार्टी में आपसी सिर फुटअवल हुआ उसके कारण उसका फायदा पार्टी को पंजाब में नहीं मिला. लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी के साथ एक तमगा जरूर जुड़ गया- ‘पंजाब के पहले दलित सीएम’. अब मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना पार्टी की दलित राजनीति को नई धार दे सकती हैं अगर पार्टी पुराने अनुभवों से सतर्क और सजग रहती है तो. खड़गे दक्षिण भारत के एक बड़े दलित नेता हैं और गांधी परिवार से नजदीकियों की वजह से राष्ट्रीय राजनीति में भी उन्हें अलग पहचान मिली है. अब जब कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं तो उनकी पूरी कोशिश होगी कि उत्तर भारत सहित खासकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से रूठे दलित वाटों की वापसी करवाई जाए. आजादी के बाद कई सालों तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहीं, दलित वोट का भी बड़ा हिस्सा पार्टी के खाते में गया. लेकिन फिर राजनीति ने करवट ली, जमीन पर समीकरण बदले और काशीराम, मुलायम, मायावती जैसे नेताओं ने यूपी की सियासत में अपनी पकड़ मजबूत की. फिर दलित वोटबैंक पर मायावती का दबदबा रहा, जाटव वोटों पर तो बसपा की एकतरफा पकड़ रही हैं. और अब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरीके से भाजपा की सरकार दलितों और पिछड़ो के लिए काम कर रही है उसके कारण भी दलितों और पिछड़ों को अपने पाले में लाना उनके लिए टेढ़ी खीर है.
गांधी परिवार से बेहतर ताल-मेल कायम रखना
मलिकार्जुन खड़गे उन नेताओं ने से हैं जिन्हे दस जनपथ का आशीर्वाद प्राप्त हैं और ऐसा माना जा रहा हैं उनके अध्यक्ष बनने में गांधी परिवार का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन था. सियासी जानकारों का मानना हैं कि गहलोत पायलट प्रकरण के बाद गांधी परिवार के कहने पर ही उन्होंने पर्चा दाखिल किया और दिग्विजय सिंह ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा वापस ले ली. इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के ‘अनाधिकारिक आधिकारिक’ उम्मीदवार थे. नामांकन के दौरान भी कांग्रेस और गांधी परिवार के करीबी अधिकांश नेता खड़गे के समर्थन में खुलकर सामने आए. पर अध्यक्ष बनने के बाद खड़गे के लिए सबसे बड़ी चुनौती गांधी परिवार, परिवार के वफादार सिपाहियों और संगठन के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना होगा. मनमोहन सिंह की तरह रबर स्टांप वाले इमेज से अपने आप को उन्हें बचाना होगा. गांधी परिवार भी ‘रबर स्टांप’ वाले नैरेटिव से बचना चाहेंगे और इसी का परिणाम हैं कि सोनिया और प्रियंका गांधी खुद चुनाव जीतने के बाद खड़गे के आवास पर जाकर शुभकामनाए दी. पर कांग्रेस का इतिहास देखेंगे तो गैर गांधी परिवार से आने वाले अध्यक्षों खासकर नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के साथ अंत में क्या हुआ था ये हम नहीं भूल सकते.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी|
Tags: Congress, Mallikarjun khargeFIRST PUBLISHED : October 26, 2022, 17:25 IST