यहां के लकड़ी के खिलौनों की विदेशों तक है डिमांड इस वजह से धंधा पड़ा मंदा

Wooden Toys: मिर्जापुर के अहरौरा में 1934 में लकड़ी से खिलौने बनाने का कारोबार शुरू हुआ था. स्व. अयोध्या प्रसाद ने इसकी शुरुवात की थी. यहां लकड़ी से लट्टू, सिंदूरदान, एक्यूप्रेशर सहित अन्य खिलौने तैयार किए जाते हैं और ये खिलौने विदेश तक भेजे जाते हैं...

यहां के लकड़ी के खिलौनों की विदेशों तक है डिमांड इस वजह से धंधा पड़ा मंदा
मुकेश पांडेय/मिर्जापुर: प्लास्टिक और चाइनीज खिलौनों का चलन बढ़ने से पहले तक मिट्टी और लकड़ी के खिलौनों से बच्चे खेलते थे. इन खिलौनों में बहुत ज्यादा फीचर नहीं मिलते थे लेकिन, एक बार खरीदने के बाद ये काफी समय तक चलते थे. इन लकड़ी के खिलौनों में घोड़ा, गाड़ी, फिरंगी और लट्टू के बीचे सभी बच्चे लट्टू रहते थे. हालांकि, बदलते दौर ने लकड़ी के खिलौनों का कारोबार समेट दिया. लकड़ी मिलने में कठिनाई से लेकर चाइना के सस्ते खिलौने की वजह से अब लकड़ी के खिलौनों के कारीगर और इसका कारोबार अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है. इनमें बहुत मुनाफा मिलता ना देख नई पीढ़ी के लोग भी इस कला को नहीं सीखना चाहते. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के अहरौरा क्षेत्र में लगभग 1934 से लकड़ी के खिलौने बनाएं जा रहे हैं. अहरौरा के रहने वाले स्व. अयोध्या प्रसाद ने इस भारतीय कला को अहरौरा में पहुंचाया था. उनके बाद लगभग 12 से अधिक व्यापारी इस कारोबार से जुड़ गए. लकड़ी से झुनझुना, लट्टू, रोलर, शतरंज, करैला, एक्यूप्रेशर, डांडिया छड़ी, किचन शेड, डमरू सहित अन्य खिलौने तैयार होते हैं. लकड़ी के बने ये खिलौने नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया और श्रीलंका तक में सप्लाई किए जाते हैं. देश में दिल्ली, नासिक, राजस्थान, सहारनपुर, पंजाब, हैदराबाद, हरिद्वार व तेलंगाना आदि जगहों पर इन खिलौने की मांग है. विलुप्त हो जाएगी भारतीय परंपरा कारोबारी अजय कुमार गुप्ता ने बताया कि अहरौरा में बने खिलौने पूरे देश में जाते हैं. हालांकि, पहले की तुलना में इनकी डिमांड कम हो गई है. इनकी सप्लाई नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया और एशिया द्वीपों में होती थी. सरकारी डिपो होने की वजह से लकड़ी भी आसानी से मिल जाती थी. वर्तमान में कोरैया की लकड़ी नहीं मिलने से खिलौने बनाना मुश्किल हो रहा है. 2014 के बाद से खिलौने का ग्राफ गिरना शुरु हुआ है. लॉकडाउन के बाद डिमांड खत्म हो गई है. सरकार अगर खिलौने को विश्वभर में एक्सपोर्ट करने में मदद करे और बाजार उपलब्ध कराने में सहयोग दें तो इसकी मांग फिर से तेज हो सकती है. पिता से सीखा था खिलौने बनाने की कला प्रहलाद विश्वकर्मा ने बताया कि उन्होंने पिता से खिलौने बनाने का गुर सीखा था. 1983 से वह खिलौने बना रहे हैं. पहले इसमें मुनाफा था लेकिन, अब मुनाफा न के बराबर है. आज भी उतनी ही मजदूरी मिल रही है. इस समय एक्यूप्रेशर के अलावा किसी अन्य खिलौने की डिमांड नहीं है. 25 साल से खिलौने बना रहे विनोद सिंह ने कहा कि ब्लड सर्कुलेशन के लिए एक्यूप्रेशर की मांग है. बाकी खिलौने की डिमांड चाइना खिलौनों और मोबाइल की वजह से कम हो गई है. विनोद ने कहा कि वह अपने बच्चों को इस रोजगार में कभी नहीं आने देंगे. Tags: Business news, Local18FIRST PUBLISHED : July 7, 2024, 20:47 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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