10 साल तक बेड पर रहने के बाद भी नहीं हारी प्रीति पैराओलंपिक में जीता मेडल
10 साल तक बेड पर रहने के बाद भी नहीं हारी प्रीति पैराओलंपिक में जीता मेडल
पेरिस में आयोजित पैराओलंपिक में प्रीति पाल ने कमाल कर दिया है. उन्होंने 100 मीटर दौड़ में कांस्य पदक लाकर भारत का नाम विश्व में रोशन कर दिया है. लेकिन, प्रीति के जीवन में एक ऐसा दौर ऐसा भी था, जब वह चल भी नहीं पाती थी. प्रीति पाल की बहन नेहा ने बताया कि 10 साल तक बेड पर ही प्रीति पाल को रेस्ट भी करना पड़ा था. बहन की इस उपलब्धि पर बेहद खुश हैं.
मेरठ. जीवन में अगर आप कठिन से कठिन परिस्थितियों से लड़ना जानते हैं तो आप एक नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं. यही काम प्रीति पाल ने किया है. जिस तरीके से प्रीति पाल ने पैराओलंपिक में कांस्य पदक हासिल किया है.
आज हर जगह प्रीति पाल की चर्चा हो रही है. लेकिन मेडल हासिल करना प्रीति पाल के लिए इतना आसान नहीं था. उन्होंने अपने जीवन में अनेकों प्रकार की चुनौतियों को पार करते हुए यहां तक का सफर तय किया है.
10 साल तक किया था बेड रेस्ट
प्रीति पाल की बड़ी बहन नेहा पाल ने लोकल 18 को बताया कि जब प्रीति का जन्म हुआ था तो दोनों पैर आपस में जुड़े हुए थे. इसको लेकर परिवार को काफी चिंता रहती थी. कई डॉक्टरों को दिखाया भी, लेकिन डॉक्टरों को द्वारा कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. ऐसे में उनका प्लास्टर किया गया. वह 10 साल तक बेड पर ही रही. बेड पर ही माता-पिता एवं अन्य सदस्य उसकी देखभाल करते रहते थे. लेकिन प्रीति में शुरू से ही कुछ कर गुजरने का जज्बा है. इस जज्बे के माध्यम से धीरे-धीरे अपनी इन कठिनाइयों को पार करते हुए आगे बढ़ती चली गई. नेहा ने बताया कि 10 साल के बाद उनके लिए जूते लिए गए, जो कि दिव्यांग युवाओं के लिए ही तैयार किए जाते हैं. 10 साल से लेकर 18 साल तक जूते के माध्यम से ही चलती थी.
पैर हो जाए ठीक इसलिए लिया गोबर का भी सहारा
नेहा ने बताया कि जब प्रीति छोटी सी थी और चल नहीं पाती थी तो काफी लोगों ने परिवार को बताया कि सूर्य ग्रहण के समय अगर ऐसे बच्चों के दिव्यांग वाले हिस्से को गोबर में दबाया जाए तो उससे काफी राहत मिलती है. ऐसे में जब भी ग्रहण पड़ता था तो परिवार के सदस्य प्रीती के पैर को गोबर के अंदर ही दबा के रखते थे. जिससे कि उनका पैर ठीक हो जाए.
फातिमा खातून ने दिखाई राह
नेहा ने बताया कि 9th और 10th की पढ़ाई करने के लिए उनकी बहन और परिवार के सदस्य मेरठ आ गए थे. इसी दौरान प्रीति की मुलाकात पैरा खिलाड़ी फातिमा खातून से हुई. तब फातिमा खातून ने ही प्रीति को खेल के प्रति प्रेरित किया. उनकी बातों को समझकर प्रीति ने खेल की प्रैक्टिस शुरू की. इसके बाद वर्ष 2018 से कैलाश प्रकाश स्टेडियम में प्रेक्टिस करने लगी. फातिमा खातून लगातार सपोर्ट करती रही. नेहा ने बताया कि प्रीति की जीत में सबसे बड़ा श्रेय फातिमा खातून, कोच गजेंद्र सिंह और सिमरन का है. उनकी कड़ी मेहनत के बदौलत प्रीति ने यह इतिहास रचा है.
मध्यमवर्गीय परिवार से आती है प्रीति पाल
दादा ऋषि पाल, दादी सरोज देवी ने लोकल 18 के साथ अपनी खुशी जाहिर करते हुए बताया कि जैसे ही पोती आएगी, दिल्ली से लेकर गांव तक भव्य स्वागत किया जाएगा. बताते चलें कि मूल रूप से मुजफ्फरनगर के हासिमपुर रामराज की रहने वाली प्रीति पाल एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता की जहां दूध की डेयरी है वहीं माता हाउसवाइफ है. बेटी की उपलब्धि से हर किसी को काफी खुशी है, क्योंकि परिवार में पहली ऐसी कोई व्यक्ति है, जिसने स्पोर्ट्स के क्षेत्र में कीर्तिमान हासिल किया है.
Tags: Local18, Meerut news, Paralympic Games, Sports news, UP newsFIRST PUBLISHED : September 1, 2024, 13:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed