क्‍यों खुलकर सामने आने लगा बीजेपी का यूपी टकराव विशेषज्ञ के Opinion से जानें

UP BJP Conflict :पहली नज़र में दिखाई पड़ रहा है कि गुटबाज़ी गहराई पकड़ रही है. लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर पार्टी का अंतर्मंथन चल रहा है. इसी प्रक्रिया में यह असंतोष भी बाहर निकलकर आया है.

क्‍यों खुलकर सामने आने लगा बीजेपी का यूपी टकराव विशेषज्ञ के Opinion से जानें
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जो सरकार पिछले सात साल से मजबूती के साथ खड़ी दिखाई पड़ रही थी, अब अचानक लड़खड़ाती नज़र आने लगी है. इसकी वजह है एक अरसे से पनप रहा असंतोष.. जो मौका देखकर अब बाहर आना चाहता है. लगता है कि पार्टी ने इस मसले को काफी गंभीरता लिया है. राज्य बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात से लगता है कि मामला काफी बढ़ गया है. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण था, उत्तर प्रदेश. पहली नज़र में यह साफ लगता है कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है, अन्यथा ऐसे परिणाम नहीं आते. बहरहाल, दिल्ली में सरकार बनने के एक महीने बाद, पार्टी ने पराभव के कारणों को समझने के लिए अंतर्मंथन शुरू किया है, तो अंतर्विरोध भी खुलने लगे हैं. बयानबाज़ी ज्यादा नहीं है, पर प्रतीकों में बातें तो हो ही रही हैं. पहली नज़र में दिखाई पड़ रहा है कि गुटबाज़ी गहराई पकड़ रही है. लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर पार्टी का अंतर्मंथन चल रहा है. इसी प्रक्रिया में यह असंतोष भी बाहर निकलकर आया है. पिछले रविवार को प्रदेश की विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ‘संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है’ कहकर इन हलचलों को तेज कर दिया. शायद इसी वजह से मंगलवार को केशव मौर्य और पार्टी-अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से बातचीत के लिए अलग-अलग दिल्ली बुलाया गया. भीतर क्या बातें हुईं, इसे लेकर भी कयास हैं, पर मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के हित में इस मसले पर बयानबाज़ी नहीं की जानी चाहिए. औपचारिक रूप से केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक कुछ कहा नहीं है. बहरहाल, केशव प्रसाद मौर्य ने नड्डा से मिलने के बाद फिर कहा, ‘संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है.’ ज़ाहिर है कि सरकार से उनका आशय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. योगी जी के दोनों उपमुख्यमंत्री, यानी केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, इस वक्त एक साथ उनके खिलाफ खड़े नज़र आ रहे हैं. राज्य में पार्टी के भीतर की उमड़-घुमड़ काफी पहले से सुनाई पड़ रही है, पर अब वह खुलकर सामने आती जा रही है. इस खींचतान के समानांतर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की सद्य-स्थापित एकता पहले से ज्यादा मजबूत होती जा रही है, क्योंकि उन्हें बीजेपी के भीतर के टकराव में अपने लिए बेहतर संभावनाएं नज़र आ रही हैं. इतना ही नहीं बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी अपने स्वरों को मुखर करना शुरू कर दिया है. कहा जा रहा है कि योगी-प्रशासन में अफसरशाही हावी है, जिसके कारण भाजपा कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान नहीं मिल पा रहा है. पार्टी के विश्वस्त कार्यकर्ताओं का अपमान हो रहा है, वगैरह. पर यह मूल कारण नहीं है. 2017 में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे, तबसे ही असंतोष की चिंगारी एक वर्ग के भीतर बैठी हुई है. कहना मुश्किल है कि यह असंतोष बड़ी ज्वाला की शक्ल ले पाएगा या नहीं. पर हालात यहां तक पहुंचे हैं, यह भी कम नहीं है. लोकसभा चुनाव में विफलता के कारण असंतुष्टों को विरोध व्यक्त करने का मौका मिला है. हैरत इस बात पर ज़रूर है कि केंद्रीय नेतृत्व ने समय रहते इस टकराव को पढ़ा नहीं या फिर यह माना जाए कि केंद्रीय नेतृत्व कुछ सोचकर कोई बड़ा फैसला नहीं करना चाहता है. वस्तुतः नेतृत्व को समझदारी के साथ पहले इस टकराव को टालना या कालीन के नीचे डालना होगा, फिर धीरे-धीरे परिवर्तन करना होगा. उसके साथ ही कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश भेजना भी जरूरी है कि सरकार में उनकी बात सुनी जाएगी और उन्हें सम्मान मिलेगा. दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ हुई बैठकों के बाद बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में विधानसभा की 10 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए लखनऊ में बैठक बुलाई. बैठक में उन्होंने जो रणनीति बनाई है, उससे दोनों उपमुख्यमंत्रियों को अलग रखा गया है. इस रणनीति के अनुसार इन दसों चुनाव-क्षेत्रों में सघन प्रचार के लिए उन्होंने 30 मंत्रियों की एक टीम बनाई है, जिसमें दोनों डिप्टी सीएम नहीं हैं. यह एक प्रकार की जवाबी कार्रवाई है. हाल हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के नौ विधायकों ने लोकसभा की सदस्यता प्राप्त करके अपने पद से इस्तीफा दे दिया. प्रदेश की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी यानी नौ सीटें खाली हुई हैं. दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी को अयोग्य करार दिए जाने से खाली हुई है. जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से पांच पर समाजवादी पार्टी के विधायक थे, भाजपा के तीन और राष्ट्रीय लोक दल तथा निषाद पार्टी के एक-एक. यानी इंडिया गठबंधन और एनडीए की 5-5 सीटें हैं. अब दोनों गठबंधन अपने महत्व और वर्चस्व को साबित करने के लिए चुनाव में उतरेंगे. ऐसे में बीजेपी के भीतर से बर्तनों के खटकने की आवाज़ों का आना शुभ लक्षण तो नहीं है. पार्टी के सहयोगियों की आवाजें भी अब मुखर हो रही हैं. पिछले सोमवार को निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने कहा, गरीब को उजाड़ेंगे, तो वह हमें उजाड़ेगा राजनीति में. उन्होंने उत्तर प्रदेश की ‘बुलडोज़र राजनीति’ पर भी टिप्पणी की है. हाल में लखनऊ में चले बुलडोज़रों को लेकर भी टिप्पणियां हो रही हैं. मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ की कुकरैल नदी के आसपास की बस्तियों के नागरिकों को आश्वासन दिया कि उनके घर तोड़े नहीं जाएंगे. इससे योगी जी के नाम का जयकारा लगा, पर पार्टी के भीतर का असंतोष इससे कम नहीं हुआ है. कुछ समय पहले इस इलाके के अकबरनगर में बड़े स्तर पर बुलडोजर चलाकर मकान तोड़े गए थे. इसके पहले अपना दल (एस) की नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि राज्य में ओबीसी और अनुसूचित जाति के कोटे की सीटों पर सामान्य कैटेगरी के लोगों की नियुक्तियां की जा रही हैं. जो बातें पहले दबे-छिपे कही जा रही थीं, वे अब मुखर होकर कही जा रही हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग की विफलता, प्रत्याशियों के चयन में नासमझी और विरोधी दलों के प्रचार की काट कर पाने में विफलता को लेकर अब सवाल किए जा रहे हैं. इन सवालों के जवाबों में ही पक्ष और प्रतिपक्ष पढ़े जा सकते हैं. Tags: BJP, Keshav prasad maurya, UP news, Yogi adityanathFIRST PUBLISHED : July 17, 2024, 17:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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