BJP को बहुमत नहीं मिलने के क्या मायने मोदी 30 पर क्या असर समझें पूरा गणित
BJP को बहुमत नहीं मिलने के क्या मायने मोदी 30 पर क्या असर समझें पूरा गणित
Lok Sabha election results 2024: लोकसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को अकेले अपने दम पर पूरा बहुमत नहीं मिला है. इसके बाद देश में एक बार फिर से गठबंधन की राजनीति का दौर लौट आया है. इससे नरेंद्र मोदी की सरकार को अपने कई इरादों और योजनाओं पर अंकुश लगाना होगा.
नई दिल्ली. देश की जनता ने अपनी बात कह दी है. मतगणना के एक दिन बाद तस्वीर साफ हो गई है. 543 सदस्यीय लोकसभा में 292 सीटें हासिल करने के बाद भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने जीत हासिल की है. ‘इंडिया’ गठबंधन ने सभी एग्जिट पोल और भविष्यवाणियों को धता बताते हुए 234 सीटें हासिल की हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों से सबसे बड़ी बात यह रही है कि भाजपा की सीटों की संख्या में गिरावट आई है. 2019 में 303 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा इस बार 240 सीटों पर सिमट गई है. यह भाजपा के लिए एक कठिन राजनीतिक तस्वीर पेश करता है. यह अपने गठबंधन सहयोगियों खासकर तेलूगु देशम पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) पर बहुत अधिक निर्भर होगी. जिससे बीजेपी के एक दशक के प्रभुत्व का अंत होगा और केंद्र में गठबंधन सरकार की वापसी होगी.
हालांकि, इस बात की संभावना है कि भगवा पार्टी अपने कुछ सुधारों जैसे कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को आगे बढ़ाने में सक्षम न हो. भाजपा ने उत्तराखंड में यूसीसी लागू किया है और अन्य भाजपा शासित राज्यों ने भी ऐसा ही करने का वादा किया है. जबकि लोकसभा में पूरा बहुमत न होने के कारण उसे अपनी योजना को ठंडे बस्ते में डालना पड़ सकता है. एक साथ चुनाव कराना आसान नहीं होगा. जद (यू) ने एक साथ चुनाव की योजना का समर्थन किया था, लेकिन टीडीपी को इस पर आपत्ति थी. 2018 में आंध्र प्रदेश के विशेष दर्जे को लेकर टीडीपी और बीजेपी अलग हो गए थे. यह देखना बाकी है कि नायडू इस मांग को फिर से सामने रखते हैं या नहीं. लेकिन भाजपा के लिए क्या गलत हुआ? वे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से इसकी सीटें कम हुईं? राम मंदिर के उद्घाटन से बीजेपी को कोई फ़ायदा नहीं हुआ, जैसा कि फैजाबाद में हार से स्पष्ट है, यह निर्वाचन क्षेत्र अयोध्या को भी शामिल करता है. अब पार्टी को मथुरा और काशी में अन्य विवादित स्थलों के लिए अपनी योजना पर फिर से विचार करना पड़ सकता है.
बड़े राज्यों में खराब प्रदर्शन
बीजेपी के खराब प्रदर्शन का एक सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में उसका प्रदर्शन है. दरअसल, भारतीय राजनीति में यह कहावत सच साबित हो रही है कि ‘दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है.’ यूपी में बीजेपी ने अपने दम पर 33 और अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ 36 सीटें जीती हैं. यह पिछले चुनावों से काफी कम है. 2014 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से 71 सांसद लोकसभा में भेजे थे और 2019 में उसने अपने दम पर 62 और अपने सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के साथ दो सीटें जीतीं. कई विश्लेषकों ने पाया है कि अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला इसके बेहतर प्रदर्शन और बीजेपी के खराब प्रदर्शन का एक कारण है. इसके अलावा, इस बार टिकट बंटवारे में भी बदलाव किया गया है. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक बीजेपी नेता के हवाले से कहा कि ‘यह टिकट बंटवारा कुछ सर्वेक्षण एजेंसियों और कुछ खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट पर आधारित था. उन्होंने टिकट के दावेदारों के बारे में अपने खुद के मानदंड, पसंद और नापसंद तय कर लिए और जमीनी हकीकत पर एक शब्द भी नहीं सुना.’ इसके अलावा, ऐसा लगता है कि राम मंदिर अभियान मतदाताओं के बीच नहीं पहुंचा. वास्तव में बीजेपी फैजाबाद सीट भी हार गई, जिसमे राम मंदिर का शहर अयोध्या भी शामिल है.
जनता का जनादेश
भारत ने अपना फैसला सुना दिया है- एक चौंकाने वाला फैसला. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ऐतिहासिक तीसरी बार सत्ता में वापसी करेगा, लेकिन वह उम्मीद के मुताबिक नहीं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा 240 सीटें जीतकर अपने दम पर बहुमत से चूक गई. 543 सदस्यीय लोकसभा में 272 सीटों के साथ, अब यह अपने गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है. न केवल भाजपा इस चुनाव में अपने ‘400 पार’ के लक्ष्य से दूर है, बल्कि इस फैसले ने निचले सदन में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उसके प्रभुत्व को भी खत्म कर दिया है. गठबंधन की राजनीति फिर से चर्चा में है और सुर्खियों में दो मुख्य खिलाड़ी बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार और तेलूगु देशम पार्टी (TDP) के नेता एन चंद्रबाबू नायडू हैं. भाजपा के लिए इसका क्या मतलब है? और आगे क्या चुनौतियाँ हैं?
संख्या बल
NDA ने 292 सीटें जीती हैं, जिनमें से भाजपा 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. हालांकि, पार्टी के पास अकेले बहुमत नहीं है और सरकार बनाने के लिए उसे अपने गठबंधन सहयोगियों की मदद की जरूरत है. यहीं पर जेडी(यू) और टीडीपी की भूमिका आती है. नीतीश कुमार ने जनवरी में इंडिया गठबंधन को छोड़ दिया था और एक बार फिर पाला बदल लिया था. बिहार में जद(यू) ने भाजपा के बराबर 12 सीटें जीती हैं. हालांकि, जद(यू) ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा था. आंध्र में, टीडीपी ने 16 सीटें और भाजपा ने तीन सीटें जीती हैं. राज्य की 25 सीटों में से एनडीए ने 21 सीटें जीती हैं. जद (यू) और टीडीपी के पास 28 सीटें हैं, जो सरकार गठन से पहले गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं. भाजपा के अन्य सहयोगियों में लोक जनशक्ति पार्टी शामिल है, जिसने पांच लोकसभा सीटें जीती हैं, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सेना ने सात सीटें जीती हैं, राष्ट्रीय लोक दल और जनता दल (सेक्युलर) ने दो सीटें जीती हैं.
सहयोगी दलों के खोने की आशंका
जैसे ही नतीजों में ‘इंडिया’ गठबंधन को आश्चर्यजनक बढ़त मिली, मीडिया में खबरें आने लगीं कि विपक्षी गुट के नेता नीतीश और नायडू से संपर्क कर रहे हैं. जद(यू) प्रमुख की छवि पाला बदलने की रही है, जिसके चलते उन्हें ‘पलटू राम’ का उपनाम मिला है. जनवरी तक वे इंडिया गुट के साथ थे और एक समय उन्हें विपक्ष के संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था. भाजपा को अब सरकार बनाने के लिए एनडीए में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जेडी(यू) की जरूरत है. नीतीश इसका इस्तेमाल भगवा पार्टी से बड़ी मांग करने के लिए करेंगे. लेकिन अपने रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए, उनका समर्थन भाजपा को परेशान करेगा. नीतीश के साथ होने पर स्थिर सरकार की संभावना नहीं है.
टीडीपी ने बड़ी वापसी
टीडीपी पहले एनडीए और यूपीए दोनों की सहयोगी रही है. 2019 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल होने के बाद, यह इस साल फरवरी में फिर से एनडीए में शामिल हो गई. आंध्र विधानसभा चुनावों में नायडू की टीडीपी ने बड़ी वापसी की है और लोकसभा में भी उसका प्रदर्शन सराहनीय रहा. अब किंगमेकर के रूप में उभरने के बाद वह कई मंत्रालयों की मांग कर सकते हैं और भाजपा को बातचीत का खेल अच्छी तरह से खेलना होगा. एलजेपी की कमान अब दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के हाथों में है. मोदी सरकार ने उन्हें कैबिनेट में जगह देने से इनकार कर दिया था. अगर इंडिया गठबंधन सरकार बनाने के करीब पहुंचता है तो पांच लोकसभा सीटों के साथ चिराग को इंडिया गठबंधन लुभाने की कोशिश कर सकता है.
शिंदे बैकफुट पर
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना अब महाराष्ट्र में उद्धव गुट से कम सीटें जीतने के बाद बैकफुट पर है. हमेशा डर बना रहता है कि कुछ सांसद एक बार फिर पाला बदल लेंगे और ठाकरे के पास लौट आएंगे, जो इंडी गठबंधन का हिस्सा हैं. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में आरएलडी को भाजपा ने अपने संस्थापक चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद और कर्नाटक में जेडी(एस) द्वारा कांग्रेस छोड़ने के बाद लुभाया था. दोनों दल एनडीए से जुड़े रहने के लिए पुरस्कार के रूप में मांग भी कर सकते हैं.
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भाजपा ने अतीत में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार चलाई है. लेकिन मोदी के नेतृत्व में पार्टी के लिए अस्थिर सहयोगियों से निपटना एक नई चुनौती है. अगर पार्टी के लिए सब कुछ ठीक रहा, तो वह अपने सहयोगियों को साथ रखने और सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी. बहरहाल अनिश्चितता बनी हुई है और इसका अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की संभावना है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार पार्टी श्रम और भूमि नियमों के बारे में कड़े सुधार लागू करने में सक्षम नहीं हो सकती है. गठबंधन सरकार का मतलब है कि बीजेपी को संतुलन बनाना सीखना होगा और अपनी पसंदीदा परियोजनाओं पर रोक लगानी पड़ सकती है.
Tags: 2024 Loksabha Election, Lok Sabha Election Result, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 14:45 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed