स्वाद का सफ़रनामा: हजारों सालों से खाई जाने वाली सेम की फली वजन घटाए इससे जुड़ा है बेहद दिलचस्प इतिहास
स्वाद का सफ़रनामा: हजारों सालों से खाई जाने वाली सेम की फली वजन घटाए इससे जुड़ा है बेहद दिलचस्प इतिहास
Swad Ka Safarnama: फलियां भारतीय भोजन का एक अनिवार्य अंग रही हैं. यह शरीर के पाचन सिस्टम को दुरुस्त रखती है. वजन कंट्रोल करने में कारगर है. दुनिया में यह हजारों सालों से उगाई और खाई जा रही है. इसे विदेशी माना गया है, लेकिन विशेष बात यह है कि हजारों साल पूर्व भारत में इसकी खेती की जा रही है.
हाइलाइट्स‘चरकसंहिता’ में सेम की फली की डिटेल जानकारी है. वहां इसे ‘शिम्बी’ कहा गया है.शरीर के पाचन सिस्टम को दुरुस्त रखती है सेम की फली.सबसे पहले यह मैक्सिको व मिजो अमेरिकी सेंटर में उगाई गई.
Sem Phali Benefits and History: फलियां भारतीय भोजन का एक अनिवार्य अंग रही हैं. इसकी विशेषता यह है कि फली तो भोजन के काम आती ही हैं, बाकी बची झाड़ियां और पत्ते मवेशियों के लिए उत्कृष्ट चारा भी है. यह शरीर के पाचन सिस्टम को दुरुस्त रखती है तो वजन को भी कंट्रोल करने में भूमिका अदा करती है. दुनिया में यह हजारों सालों से उगाई और खाई जा रही है. इसे विदेशी माना गया है, लेकिन विशेष बात यह है कि हजारों साल पूर्व भारत में इसकी खेती की जा रही है.
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फलियां कई प्रकार की होती हैं, लेकिन सेम की फली (Lima Bean) देखने में कुछ अलग है और खाने में अलग विशेषताएं लिए हुए है. लोबिया, सेंगरी या ग्वार की फली लंबी और कम चौड़ी होती है, जबकि सेम की फली छोटी और चपटी होती है. इन सभी की विशेषताएं यही हैं कि फली तो भोजन के काम आती है तो इसके बचे हुए पत्ते आदि जानवरों के लिए बेहतर चारा है. ज्यादातर इस फली को बिना ग्रेवी के ही बनाकर सूखा खाया जाता है. अगर साथ में छोटे टुकड़ों में इसे मसालेदार बनाया गया जाए तो इसका स्वाद और उभर आता है. शहरों में इसे खाने का प्रचलन कम हो, लेकिन भारत के गांवों में यह खूब उगाई और खाई जाती है.
सेम की फली देखने में कुछ अलग है और खाने में अलग विशेषताएं लिए हुए है. अमेरिका में पैदा हुई, पुरातात्विक गुफाओं में प्रमाण मिले
सेम की फली यह बहुत प्राचीन सब्जी है और कहा जाता है कि यह सबसे पहले यह अमेरिकी क्षेत्र में पैदा हुई. विश्वकोश ब्रिटानिका (Britannica) के अनुसार, यह मध्य अमेरिका मूल की है और शुरू से ही इसे कारोबार महत्व का माना जाता है. कहा यह भी जाता है कि 2000 वर्ष पूर्व तहुआकान घाटी (मैक्सिकन) की गुफाओं में हुई पुरातात्विक खुदाई में इस बीन के साक्ष्य मिले हैं. इस दौरान भोजन के अलावा इसकी जड़ों का औषधीय रूप से उपयोग किया जाता था. आयरलैंड में भी यह सालों से फसल के रूप में पैदा की जा रही है. ‘VEGETABLES’ पुस्तक के लेखक व भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिश्वजीत चौधरी का कहना है कि लीमा बीन की उत्पत्ति ग्वाटेमाला में या उसके आसपास हुई थी. अब इसका संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और लैटिन अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में डिब्बाबंद सब्जी के रूप में खूब इस्तेमाल हो रहा है. चौधरी के अनुसार, इसमें उच्च पोषक तत्व हैं, इसके बावजूद भारत में इसे कम उगाया जाता है.
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2000 वर्ष पूर्व तहुआकान घाटी (मैक्सिकन) की गुफाओं में हुई पुरातात्विक खुदाई में इस बीन के साक्ष्य मिले हैं. ‘चरकसंहिता’ में इस फली का विस्तार से है वर्णन
भारतीय अमेरिकी वनस्पति विज्ञानी सुषमा नैथानी ने भी सेम की फली का उत्पत्ति केंद्र खोजा है. उनका कहना है कि सबसे पहले यह मैक्सिको व मिजो अमेरिकी सेंटर में उगाई गई. इनमें दक्षिणी मैक्सिको, ग्वाटेमाला, होंडुरास और कोस्टारिका शामिल है. विशेष बात यह है कि सब्जियों के इतिहास से जुड़ी पुस्तकों व वेबसाइट्स में कहीं यह जानकारी नहीं है कि सेम की फली का भारत से भी कोई संबंध है. खोजबीन में यह पता चला कि ईसा पूर्व सातवीं-आठवीं शताब्दी में लिखे गए भारत के प्राचीन ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में सेम की फली की डिटेल में जानकारी है. वहां इसे ‘शिम्बी’ कहा गया है और बताया गया है कि खाने में यह मधुर तो है, लेकिन भारी और गर्म भी है, साथ ही रूखी भी है. सलाह दी गई है कि इसे घी के साथ खाना चाहिए. ग्रंथ में यह भी कहा गया है कि यह पेट में गुड़गुड़ाहट कर पचती है.
सबसे पहले सेम फली मैक्सिको व मिजो अमेरिकी सेंटर में उगाई गई. कब्ज से बचाती है, आंतों को रखती है मुलायम
नवीनतम जानकारी के अनुसार, 100 ग्राम सेम की फली में कैलोरी 164, प्रोटीन 7.5 ग्राम, फाइबर 6.5 ग्राम, आयरन 2.23 मिलीग्राम, मैग्नीशियम 40 मिलीग्राम, पोटैशियम 472 मिलीग्राम, जिंक 0.88 मिलीग्राम व अन्य विटामिन्स व मिनरल्स पाए जाते हैं. जानी-मानी डायटिशियन डॉ. अनिता लांबा के अनुसार, इस फली में फाइबर, पोटैशियन ठीक मात्रा में है, जो पाचन सिस्टम को दुरुस्त रखता है. इससे कब्ज की परेशानी नहीं होती और पेट आसानी से खाली हो जाता है. यह आंतों को भी मुलायम बनाए रखती है और पाइल्स व लूजमोशन के जोखिम को कम करती है. फलियों में फैट बहुत अधिक मात्रा में नहीं होता है और इनके खाने से पेट भरा-भरा से लगता है, इसलिए लोग ज्यादा भोजन नहीं करते, जिससे मोटापा बढ़ने की आशंका कम हो जाती है.
सेम की फली ज्यादा खाने से होने वाले नुकसान
इस फली की विशेषता यह भी है कि यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम रखने में मदद करती है. इसमें पाए जाने वाला फोलेट रसायन कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है. ऐसा होने से दिल की कार्यप्रणाली सामान्य रहेगी. यह ब्लड शुगर के स्तर को भी स्थिर रख सकती है. इसे हमेशा पकाकर ही खाना चाहिए. कच्ची फली शरीर में विषाक्तता का कारण बन सकती है. इसका अधिक सेवन पेट में गैस की समस्या पैदा कर सकता है. यह पेट को फुला भी सकती है. हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि इसे पकाने से पहले अच्छी तरह धो लिया जाना चाहिए. कुछ लोग जिन्हें एलर्जी की समस्या है, उन्हें इसे खाने से परहेज करना होगा.
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Tags: Food, LifestyleFIRST PUBLISHED : November 01, 2022, 07:05 IST