मल्‍टीपल मायलोमा से लड़ रहीं सिंगर शारदा स‍िन्‍हा कितनी खतरनाक है बीमारी

मशहूर लोक गाय‍िका शारदा सिन्‍हा दिल्‍ली एम्‍स में भर्ती हैं और एक तरह के ब्‍लड कैंसर मल्‍टीपल मायलोमा से जूझ रही हैं. फिलहाल वे ऑक्‍सीजन सपोर्ट पर हैं. आइए जानते हैं क्‍या होती है यह बीमारी और कितनी खतरनाक है. क्‍या छठ से पहले सिन्‍हा ठीक हो जाएंगी.

मल्‍टीपल मायलोमा से लड़ रहीं सिंगर शारदा स‍िन्‍हा कितनी खतरनाक है बीमारी
हाइलाइट्स मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्‍हा ने बहुत से छठ गीत गाए हैं. शारदा सिन्‍हा ने नदिया के पार फिल्‍म के अलावा भी कई फिल्‍मों में गीत गाए हैं. What is Multiple Myeloma: बिहार और यूपी में छठ पर्व सहित बॉलीवुड फिल्‍मों में अपने गीतों से लोगों के दिलों में उतरने वाली लोक गायिका शारदा सिन्‍हा फिलहाल जिंदगी और मौत के बीच झूल रही हैं. ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद नई दिल्‍ली के इंस्टिट्यूट रोटरी कैंसर हॉस्पिटल में भर्ती शारदा सिंन्‍हा फिलहाल ऑक्‍सीजन सपोर्ट पर हैं और वे एक तरह के ब्‍लड कैंसर मल्‍टीपल मायलोमा से जंग लड़ रही हैं. सिन्‍हा को 2018 से ही यह बीमारी है, फिलहाल उनका इलाज चल रहा है. आइए एम्‍स के ऑन्‍कोलॉजिस्‍ट से जानते हैं क्‍या होती है मल्‍टीपल मायलोमा की बीमारी, यह कितनी खतरनाक है और क्‍या छठ पर्व तक सिंगर इस बीमारी से ठीक हो जाएंगी? एम्‍स, नई दिल्‍ली के आईआरसीएच में डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल ऑन्‍कोलॉजी में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. अजय गोगिया बताते हैं कि मायलोमा या मल्‍टीपल मायलोमा एक तरह का ब्‍लड कैंसर है, जिसे बी सेल मेलिग्‍नेंसी भी बोलते हैं. यह हमारे शरीर की ब्‍लड सेल्‍स और बोन मैरो को प्रभावित करता है. इसमें बी सेल्‍स एब्‍लनॉर्मल फंक्‍शन शुरू कर देते हैं. जिन भी मरीजों में ये डायग्‍नोस होता है वे लोग अक्‍सर कमर में दर्द या बैक पेन के साथ आते हैं. कुछ लोग रीनल फेलियर या चेस्‍ट इन्‍फेक्‍शन के साथ भी आते हैं. ये भी पढ़ें  क्या एयर प्यूरीफायर सच में प्रदूषण से बचाता है, कितने घंटे चलाना है जरूरी? WHO से जुड़े डॉ. ने दिया जवाब ये होते हैं मल्‍टीपल मायलोमा के लक्षण . कमर की हड्डी में दर्द, खासतौर पर स्‍पाइन, हिप्‍स या सीने में दर्द और इन्‍फेक्‍शन . कब्‍ज . उल्‍टी . भूख खत्‍म होना . मेंटल फॉग या कन्‍फ्यूजन . थकान . वजन घटना ऐसे चलता है रोग का पता डॉ. गोगिया कहते हैं कि इस बीमारी का पता दो तरह से लगाया जाता है. ब्‍लड टेस्‍ट और बोन मैरो टेस्‍ट से यह पता चल जाता है कि कौन सी स्‍टेज का मायलोमा है. साथ ही कौन सा लक्षण ज्‍यादा रिस्‍क पैदा कर रहा है. जैसे स्‍पाइनल दर्द, रीनल फेलियर या चेस्‍ट इन्‍फेक्‍शन आदि. लिहाजा रिस्‍क को लो और हाई में केटेगराइज करके मरीजों को इलाज दिया जाता है. इसके लिए कुछ और टेस्‍ट व पैरामीटर्स भी होते हैं, जिसके आधार पर कैंसर कहां कहां फैला है इसका भी पता किया जाता है. कितना है खतरनाक यह कैंसर काफी खतरनाक है. मरीज की उम्र और कैंसर की स्‍टेज के आधार पर इसका आउटकम रहता है. अमूमन 40 से 82 फीसदी लोगों का सर्वाइवल रेट करीब 5 साल रहता है. मल्‍टीपल मायलोमा से ग्रस्‍त करीब 85 फीसदी मरीज एक साल तक जीवित रह पाते हैं. जबकि 55 फीसदी लोग 5 साल या उससे ज्‍यादा जी लेते हैं. 30 फीसदी मरीज ही ऐसे होते हैं जो जल्‍दी डायग्‍नोसिस और सही इलाज के बाद 10 साल तक जी जाते हैं. क्‍या इसका इलाज है संभव डॉ. गोग‍िया बताते हैं कि मल्‍टीपल मायलोमा को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है, हालांकि समय पर बीमारी की पहचान और इलाज से इसके लक्षणों को कम करने के साथ ही बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है. एम्‍स में 60 साल से कम उम्र के मरीजों का बोन मेरो ट्रांसप्‍लांट भी किया जाता है. साथ ही दो साल तक मरीजों को मेंटेनेंस भी दिया जाता है. वहीं 65 साल से ऊपर के मरीज जो या तो कई बीमारियों से ग्रस्‍त होते हैं या ज्‍यादा बुजुर्ग होते हैं उन्‍हें भी इंडक्‍शन के बाद मेंटेनेंस दिया जाता है. क्‍या आईसीयू में जाने के बाद बचना संभव है डॉ. कहते हैं कि यह बुजुर्गों की बीमारी है. एम्‍स में अभी तक मायलोमा का सबसे युवा मरीज 16 साल की उम्र का आया था. बाकी यह बीमारी 50 की उम्र के बाद ही अक्‍सर देखने को मिलती है. जहां तक मरीज के आईसीयू में जाने के बाद बचने की संभावना की बात है तो आईसीयू में मरीज चेस्‍ट इन्‍फेक्‍शन कंट्रोल के लिए ही जाता है. अगर यह इन्‍फेक्‍शन कंट्रोल हो जाता है तो मरीज बच जाता है. शारदा सिन्‍हा के मामले में भी यही बात है. ये भी पढ़ें  ये छोटा हरा पत्‍ता सब्‍जी में डालें या कच्‍चा खा लें, 5 बीमारियों को जड़ से कर देगा खत्‍म Tags: Aiims delhi, Bihar Chhath Puja, Cancer Survivor, Health NewsFIRST PUBLISHED : October 29, 2024, 13:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed