9 मिनट तक पत्थरों की बारिश शिवम को लगा पत्थर फिर हुआ मां भद्रकाली का राजतिलक

Shimla Dhami Patheron Ka Mela: शिमला की धामी रियासत में सैकड़ों वर्ष पूर्व सुख-शांति के लिए नरबलि की प्रथा थी. हालांकि, बाद में एक रानी ने नरबलि की जगह खून से तिलक लगाने की प्रथा शुरू की. तब से लेकर इसी अंदाज में अब यहां पर पत्थर मेला होता है.

9 मिनट तक पत्थरों की बारिश शिवम को लगा पत्थर फिर हुआ मां भद्रकाली का राजतिलक
शिमला. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 26 किलोमीटर दूर धामी क्षेत्र के हलोग गांव में इस बार भी पत्थर मेला मनाया गया. दीवाली के एक दिन बाद मनाए जाने वाले इस अनोखे पत्थर में इस बार मात्र 9 मिनट तक अगल-अलग टोलियों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई. इस वर्ष जमोगी खूंद के 30 वर्षीय शिवम संजू राजपूत को पत्थर लगा. पत्थर की चोट से जैसे ही शिवम के खून निकला वैसे ही साथ एक व्यक्ति ने लाल पताका फहराई और पत्थरों की बौछार तुरंत बंद हो गई और उसके रक्त से मां भद्रकाली को तिलक लगाने की परंपरा का निर्वहन करते ही ये मेला संपन्न हो गया. इसके बाद, शिवम को प्राथमिक उपचार के लिए स्थानीय अस्पताल ले जाया गया. इस मेले का जुड़ाव भारतवर्ष के प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान के वशंजों से जुड़ी परंपरा से है. शिवम ने News 18 से बातचीत में कहा कि वह पिछले 8 साल से इस मेले में शामिल हो रहा है. ये पहला मौका है जब उसको पत्थर लगा है. शिवम ने कहा कि वो अपने आपको सौभाग्यशाली मानता है कि इस बार उसके रक्त से तिलक हुआ. इससे पहले, राजपरिवार ने सबसे पहले पत्थर मारा और मेले की शुरुआत की. धामी रियासत के राजपरिवार के सदस्य जगदीप सिंह ने बताया कि परंपरा के अनुसार, दीवाली के दूसरे दिन सबसे पहले राज दरबार स्थित नरसिंह देवता के मंदिर में विशेष पूजा की जाती है. पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ जुलूस की शक्ल में शोभायात्रा निकाली गई.  करीब 50 से 60 लोगों के साथ यह शोभायात्रा भद्रकाली के मंदिर पहुंची है और तमाम पंरपरा का निर्वहन और परंपरा के अनुसार राजपरिवार की ओर से पहला पत्थर मारा गया और मेला शुरू हुआ. रानी ने इस पंरपरा को खत्म करवाया था जगदीप सिंह बताते हैं कि 15वीं शताब्दी के आसपास से पत्थर मेले की शुरूआत मानी जाती है, जब देश में सत्ती प्रथा चलन में थी. उन्होंने कहा कि आपदाओं या महामारी या अन्य खतरों से प्रजा को बचाने के लिए मानव बलि दी जाती थी. एक रानी ने सती होने से पहले इस परंपरा को समाप्त करवाया. रानी को नरबलि देना सही नहीं लगा और फिर मानव बलि के विकल्प के रूप में यहां पत्थर का खेल करवाने और उसमें रक्त निकलने पर भद्रकाली को तिलक करने की परंपरा को शुरू करवाया था. उसके बाद से धामी में दिवाली के दूसरे दिन पत्थर का खेल होता है. पृथ्वीराज चौहान के वंशजोंं को अलग स्थान पर भेजा जगदीप सिंह ने बताया कि वे भारतवर्ष के प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं. इनका परिवार राजस्थान के कोटा बूंदी से आया था. जिस समय मोहम्मद गौरी ने राजस्थान के अजमेर समेत कई इलाकों में आक्रमण किया था, उस समय पृथ्वीराज चौहान के वंशजोंं को अलग स्थान पर भेजा गया था. उसी समय इनका परिवार यहां धामी आकर बसा था और फिर यहां पर एक रिसायत बनाई गई. यहां पर महल बनाया गया और जो प्रशासन चलता था उसका प्रमुख राजा होता था. उसी के नाते 1947 तक राजकाज चलता था. 1947 के बाद रियासतों का विलय हो गया था, लेकिन परंपरा के अनुसार राजपरिवार का प्रमुख होने के नाते सभी परंपराओं का निर्वहन जगदीप सिंह ही करते हैं. कई साल से जमोगी खूंद के ही लोगों को पत्थर लगता जगदीप बताते हैं कि राज परिवार की ओर से जठोती, कटेड़ू, दघोई और तूनन खूंद, जबकि दूसरी ओर जठोती, जमोगी के खूंद होते हैं. कौन-कौन से खूंद इस अनूठे खेल में हिस्सा लेते हैं, यह राज परिवार ही तय करता है. उन्होंने कहा कि पत्थरों का ये मेला नियमों के तहत मनाया जाता है, पत्थर मारने के नियम बने हुए हैं. ये एक खेल की तरह खेला जाता है न कि किसी की जान लेने के लिए पत्थरबाजी की जाती है. काफी सालों से ये देखा गया है कि जमोगी खूंद के ही लोगों को पत्थर लगता है. इस बार जमोगी खूंद के ही शिवम को पत्थर लगा है. पारंपरिक तरीके से हर साल इस मेले का आयोजन स्थानीय लोगों ने बताया कि सैकड़ों सालों से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है, जो भी इस मेले में शामिल होते हैं या पत्थरबाजी में हिस्सा लेते हैं वे खुशी से शामिल होते हैं. आजतक पत्थरबाजी में कोई बड़ा हादसा हुआ नहीं हुआ है और न ही किसी की जान गई है. राज दरबार के पुरोहित देवेंद्र भारद्वाज ने बताया कि ये प्राकृतिक प्रकोप या किसी आपदा से कोई नुकसान हो, इसलिए पारंपरिक तरीके से हर साल इस मेले का आयोजन होता है, सदियों पहले जिस विधि से पूजा होती है, उसी का निर्वहन आज भी किया जाता है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का जुड़ाव धामी रियासत के राजपरिवार से है.मान्यता है कि धामी में क्षेत्र में आई आपदाओं से प्रजा को बचाने के लिए इस मेले का आयोजन होता है. Tags: Diwali festival, Himachal news, Himachal Pradesh News Today, Shimla News TodayFIRST PUBLISHED : November 2, 2024, 06:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed