पार की 300 मीटर ऊंची बर्फ की दीवार दुश्‍मन पर मौत बनकर टूटे Lt प्रवीण फिर

Kargil War: दुश्‍मन की रसद और सैन्‍य आपूर्ति रोकने के लिए चोरबत ला सेक्‍टर के प्‍वाइंट 5310 पर कब्‍जा हासिल करना जरूरी हो गया था. इस जंग में किस तरह भारतीय सेना ने बिना किसी नुकसान के पाकिस्‍तानी कमांडो की कमर तोड़ दी... जानने के लिए पढ़ें आगे...

पार की 300 मीटर ऊंची बर्फ की दीवार दुश्‍मन पर मौत बनकर टूटे Lt प्रवीण फिर
Kargil Vijay Diwas 2024: कारगिल युद्ध में भारतीय सेना का विजय अभियान लगातार जारी था. भारतीय सेना का अगला लक्ष्‍य था पूर्वी छोर पर स्थिति चोरबत ला सेक्‍टर का प्‍वाइंट 5310. दरअसल, पाकिस्‍तानी सेना की कमर तोड़ने के लिए जरूरी था कि उसकी रसद और सैन्‍य सप्‍लाई को रोक दिया जाए. दुश्‍मन की रसद और सैन्‍य सप्‍लाई को रोकने के लिए चोरबत ला सेक्‍टर के प्‍वाइंट 5310 पर भारतीय सेना का कब्‍जा जरूरी था. लिहाजा, 14 सिख रेजिमेंट की घातक प्‍लाटून को चोरबत ला सेक्‍टर के प्‍वाइंट 5310 पर भारतीय परचम लहराने की जिम्‍मेदारी दी गई, जिसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि भारतीय सेना के लिए यह लक्ष्‍य हासिल करना लगभग असंभव सा था. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस प्‍वाइंट के एक तरफ सपाट ढलान थी, जिससे दुश्‍मन भारतीय फौज की हर गतिविधि को कई किलोमीटर की दूरी से देख सकता था. यह भी पढ़ें: भारतीय सेना की तोलोलिंग में मना रही थी जीत का जश्‍न, अचानक… एक झटके में जाने वाली थी सबकी जान, लेकिन तभी… भारतीय जांबाजों ने तोलोलिंग की पीक पर तो सफलतापूर्वक कब्‍जा कर लिया था, लेकिन उनके लिए वहां एक नई मुसीबत इंतजार कर रही थी. इस मुसीबत के बीच एक जवान ने जैसे ही अपनी प्‍यास बुझाने के लिए बर्फ का गोला उठाया, तभी … क्‍या थी जवानों के सामने मुसीबत और बर्फ का गोला उठाने के बाद क्‍या हुआ… जानने के लिए क्लिक करें. ऐसे में इस रास्‍ते से दुश्‍मन पर हमला करना भारतीय सेना के लिए खुदकुशी करने जैसा हो सकता था. वहीं, प्‍वाइंट की दूसरी तरफ कई सौ मीटर गहरी खाई था. दुश्‍मन इस तसल्‍ली में बैठा था इस रास्‍ते से भारतीय सेना कभी उस पर हमला नहीं कर सकती है. वहीं, इस सब के बीच 14 सिख रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार की अगुवाई में 14 सिख रेजिमेंट को प्‍वाइंट 5310 फतेह करने की जिम्‍मेदारी दी गई. जिम्‍मेदारी मिलते ही लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार रणनीति बनाने में जुट गए. हमले से पहले लेफ्टिनेंट प्रवीण ने सभी संभावित कठिनाइयों का आंकलन करते हुए रणनीति तैयार की, जिसके तहत, हमले के लिए तैयार की गई टीम को तीन हिस्‍सों में बांटा गया. इसके बाद, हमले की रिहर्सल शुरू हुई. 14 सिख रेजिमेंट की इन घातक टीमों को मॉक फीचर पर रिहर्सल कराया गया, जिससे हमले के दौरान किसी भी तरह की कोई गलती न हो. यह भी पढ़ें: 300 किमी की पीक्‍स पर किया कब्‍जा, इंटेलिजेंस एजेंसियों को नहीं लगने दी भनक, जानें पाक आर्मी कैसे कर पाई यह संभव… जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है तो इंटेलिजेंस एजेंसीज की विफलता के आरोप एक बार फिर आ खड़े होते हैं. ऐसे में, सवाल यह है कि आखिर पाकिस्‍तानी सेना ने अपने प्‍लान को ऐसे कैसे एग्‍जिक्‍यूट किया कि दुनिया में किसी को खबर नहीं लगी. पाकिस्‍तानी का क्‍या था सीक्रेट प्‍लान, जानने के लिए क्लिक करें. रिहर्सल के दौरान, घातक टीम को क्लिफ असॉल्ट, आइस-क्राफ्ट, माउंटेन क्लाइम्बिंग और ग्लेशियेटेड ऑपरेशंस की बारीकियों के बारें में बारीकी से प्रशि‍क्षण दिया गया. करीब पांच दिन की रिहर्सल के बाद लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार ने दुश्‍मन की टोह लेने के लिए टोही दल को रवाना किया. टोही दल से मिले इंटेल के आधार पर तीन दिशाओं से हमले की रणनीति को अंतिम रूप दिया गया और तय हुआ कि हमला 22 जुलाई की रात नौ बजे शुरू होगा. रणनीति के तहत, पहली टीम का नेतृत्‍व कर रहे लेफ्टिनेंट प्रवीण ने बर्फ की दीवार पार कर दुश्‍मन पर हमला करने की जिम्‍मेदारी ली. वहीं दूसरी और तीसरी टीम का नेतृत्‍व कर रहे नायक रघुबीर सिंह और नायब सूबेदार सतनाम सिंह को अपने साथियों के साथ दूसरी दिशाओं से आने के लिए कहा गया. रणनीति के तहत, कड़कड़ाती ठंड के बीच लेफ्टिनेंट प्रवीण को करीब 300 मीटर ऊंची बर्फ की दीवार को पार करना था. यह भी पढ़ें: जब पाकिस्‍तान को लगा ‘मेघदूत’ का थप्‍पड़, हिम्‍मत जुटाने में लग गए 15 साल, फिर चली ‘बद्र’ की नाकाम चाल, नतीजा… आपरेशन मेघदूत में करारी हार झेलने के बाद बौखलाए पाकिस्‍तानी जनरल मिर्जा असलम वेग ने 1987 में कारगिल युद्ध की पृष्‍ठभूमि लिख दी थी. जनरल मिर्जा असलम वेग की लिखी इसी इबारत को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में आपरेशन बद्र के तौर पर आगे बढ़ाया था. क्‍या है ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जानने के लिए क्लिक करें. इस असंभव से दिखने वाले लक्ष्‍य को पूरा करने के लिए लेफ्टिनेंट प्रवीण के नेतृत्‍व में घातक टीम ने पहले ग्‍लेशियर के बीच बनी गहरी दीवारों को पार किया. फिर, रस्‍सी के सहारे करीब 250 मीटर की चढ़ाई पूरी कर दुश्‍मन के ठिकाने तक पहुंचने में कामयाब हो गए. वहीं, दूसरी तरफ नायक रघुवीर सिंह के नेतृत्‍व में भारतीय जांबाज दूसरी दिशा से भी दुश्‍मन के करीब पहुंचने में कामयाब हो गए. हालांकि, दुश्‍मन की तरफ से लगातार हो रही फायरिंग के चलते नायब सूबेदार सतनाम सिंह के नेतृत्‍व वाली टीम अपने लक्ष्‍य से थोड़ा दूर रुक गई थी. ऐसी स्थिति में, लेफ्टिनेंट प्रवीण के पास इंतजार करने का विकल्‍प नहीं था. लिहाजा, उन्‍होंने नायक रघुवीर सिंह के साथ मिलकर हमले को अंजाम देने का फैसला कर लिया. वहीं, प्‍वाइंट 5310 पर दुश्‍मन इस बात से अभी भी बेखबर था कि भारतीय सेना खाई के रास्‍ते वहां पहुंच सकती है. यह भी पढ़ें: साहब! बच्‍चों की कसम, मैंने सफेद कपड़ों में लोगों को… कश्‍मीर से दिल्‍ली तक मच गया हड़कंप, छिड़ गई जंग… वंजू टॉपू पर अपनी यार्क को खोजने गए ताशी नामग्‍याल नामक एक चरवाहे ने पहली बार घुसपैठियों के भेष में आई पाकिस्‍तानी सेना के जवानों को कारगिल की चोटियों पर देखा था. इसके बाद, ताशी नामग्‍याल ने क्‍या किया, कैसे भारतीय सेना पीक पर बैठे दुश्‍मन तक पहुंची, जानने के लिए क्लिक करें. इसी बीच, लेफ्टिनेंट प्रवीण और नायक रघुवीर सिंह ने मौका देखते हुए दुश्‍मन पर हमला बोल दिया. दुश्‍मन जब तक संभल पाता, इससे पहले प्‍वाइंट 5310 दुश्‍मन की लाशों से पटता चला गया. इस ऑपरेशन में लेफ्टिनेंट प्रवीण ने अकेले 15 पाक सैनिकों को मार गिराया था. अब तक चोरबत ला सेक्‍टर का प्‍वाइंट 5310 पूरी तरह से लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार के कब्‍जे में आ चुका था. वहीं, इस जीत के साथ प्‍वाइंट 5310 में एक बार फिर भारतीय परचम लहरा दिया गया. Tags: Indian army, Indian Army Heroes, Indian Army Pride, Kargil day, Kargil war, Know your ArmyFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 14:46 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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