रास्‍ते में हर जगह बिछे थे लैंड माइन ऊपर से हो रही थी गोलियों की बौछार लेकिन

Kargil Vijay Diwas 2024: तोलोलिंग पर दो हमने अब तक विफल हो चुके थे. देश के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले मेजर विकास अधिकारी का शव अभी तक तोलोलिंग की पहाडि़यों पर ही पड़ा हुआ था. सब जीत की संभावना सिर्फ 1 फीसदी बता रहे थे. ऐसे में, तोलोलिंग की लड़ाई में क्‍या हुआ, जानिए तोलोलिंग की कहानी एक योद्धा की जुबानी...

रास्‍ते में हर जगह बिछे थे लैंड माइन ऊपर से हो रही थी गोलियों की बौछार लेकिन
25 years of Kargil War: कारगिल युद्ध के दौरान 2 राजपूताना राइफल्‍स का हिस्‍सा रहे कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना बताते हैं कि उन दिनों हमारी यूनिट तंगमर्ग और गुलमर्ग के बीच तैनात थी. अचानक एक दिन हमें बताया जाता है कि कारगिल की पहाडि़यों में पाकिस्‍तानी घुसपैठिए पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं. पहाडि़यों में बैठे पाकिस्‍तानी घुसपैठिए राष्‍ट्रीय राजमार्ग एक से गुजरने वाले भारतीय सेना के काफिलों को लगातार निशाना बना रहे हैं. जिसकी वजह से रसद सामग्री और हथियारों को आगे भेजना मुमकिन नहीं हो पा रहा है. आदेश मिलते ही हम श्रीनगर की तरफ कूच कर गए. उस समय तक हमें इस बात का बिल्‍कुल भी अंदाजा नहीं था कि हम किसी युद्ध के लिए जा रहे हैं. मैं अपनी जीप में सबसे आगे चल रहा था. मेरी जीप जैसे ही द्रास सेक्‍टर में दाखिल हुई, तभी महज कुछ फीट की दूरी पर दो से तीन हथगोले आकर गिरे. इस हमले ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे मूवमेंट की इतनी सटीक जानकारी घुसपैठियों तक कैसे पहुंच रही है. इसी बीच, मेरे हमराही ने मुझे बताया कि साहब… सामने दिख रही तोलोलिंग की पहाडि़यों तक दुश्‍मन पहुंच गया है. यह भी पढ़ें: 17,995 फीट की ऊंचाई पर बैठा था दुश्‍मन, MMG के सीधे निशाने पर थे भारतीय जांबाज, 24 मई को हुआ बड़ा फैसला, फिर.. सियाचिन ग्‍लेशियर और लेह-लद्दाख को हथियाने के इरादे से पाकिस्‍तानी सेना ने घुसपैठियों के भेष में मस्‍कोह से बटालिक सेक्‍टर के बीच अपनी बिसात बिछाई थी. दुश्‍मन का मंसूबा था कि वह नेशनल हाईवे-1 को अपने कब्‍जे में लेकर इस इलाके को शेष भारत से काट दे. लेकिन… कारगिल युद्ध की पूरी कहानी और कब क्‍या हुआ, जानने के लिए क्लिक करें. उसने बताया कि दुश्‍मन इतने करीब आ गया है कि वह पहाड़ी से नीचे होने वाली हर गतिविध को बेहद आसानी से देख सकते हैं. हमराही जवान से कुछ ऐसे ही सवाल जवाब करते हुए मैं अपने नए बेस पर पहुंचा चुका था. बेस में पहुंचने के बाद हमें तोलोलिंग की पहाडि़यों पर बैठे दुश्‍मन को अंजाम तक पहुंचाकर फिर से भारतीय तिरंगा फहराने की जिम्‍मेदारी दी गई. साथ ही, यह भी बताया गया कि तोलोलिंग पर कब्‍जे की दो कोशिशें हो चुकी है. दोनों कोशिशें नकेवल विफल रही हैं, बल्कि बड़ी संख्‍या में अधिकारी-जवानों की शहादत भी हुई हैं. हमें यह भी बताया गया कि तोलोलिंग पर फतह के लिए निकले मेजर‍ विकास अधिकारी भी वीरगति को प्राप्‍त हो चुके हैं. उनका शव अभी भी तोलोलिंग की पहाडि़यों में है. यह सुनते ही हम सबका खून खौल गया. हमारे लिए अपनी जान से ज्‍यादा कीमत देश के प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान करने वाले साथी के शव के सम्‍मान की है. हमले के लिए दो टुकडियां तैयार की गई. हमने तोलोलिंग की पहाडि़यों में बैठे दुश्‍मन के खात्‍मे के साथ वीरगति को प्राप्‍त हुए मेजर विकास अधिकारी के शव को नीचे लाने की रणनीति बनाना शुरू की. यह भी पढ़ें: कारगिल के वो 63 परम-महा-वीर, हर दिन लिखी वीरता की एक नई इबारत, कुचला दुश्‍मन का गुरूर… कारगिल युद्ध में वीरता के लिए सबसे अधिक पदक पाने वालों में भारतीय सेना की कश्‍मीर राइफल्‍स और राजपूताना राइफल्‍स के जांबाज शामिल हैं. कारगिल युद्ध में जांबाजी के लिए भारतीय सेना के किस रेजिमेंट के किस अधिकारी को मिला कौन सा पदक, जानने के लिए क्लिक करें. हमला हमारे के लिए भी आसान नहीं था. सामने 70 से 75 डिग्री की खड़ी चढ़ाई थी. पूरे रास्‍ते में दुश्‍मन से छिपने के लिए एक दूरी के बाद कोई बड़ा पत्‍थर या दूसरी ऐसी चीज का सहारा नहीं था, जिससे दुश्‍मन की गोलियों से खुद को बचाया जा सके. इसके अलावा, दुश्‍मन की सीधी निगाह सामने होने वाली गतिविधि पर थी. दुश्‍मन की एमएमजी कई किलोमीटर दूर में मौजूद शख्‍स को अपना निशाना बना सकता था. साथ ही, ऊंचाई पर बैठे दुश्‍मन की स्‍वत: ही कई गुना अधिक हो चुकी थी. ऐसी स्थिति में हम सब को पता था कि यह हमला खुद मौत को गले लगाने जैसा था. तमाम चुनौतियों के बावजूद हमने आगे बढ़ने का फैसला किया. जैसे ही हम आगे बढ़े दु‍श्‍मन की गोलियों की बौछार हमारी तरफ आना शुरू हो गया. चूंकि हम गोलियों की आवाज सुनकर समझ सकते हैं कि फायर किस हथियार से किया गया है. सामने की तरफ से आ रही गोलियों और उनकी एक्‍यूरेसी देखकर समझ आया गया कि सामने दुश्‍मन के तौर पर ब्रेन वॉश करके भेजा गया आतंकी नहीं, बल्कि एक ट्रेंड आर्मी है. जब हमें समझ आ गया कि उनका मुकाबला घुसपैठिए के भेष आए पाकिस्‍तानी सेना के ट्रेंड जवानों से है. यह भी पढ़ें: कारगिल युद्ध की वो 21 तारीखें, जिसने बदल दिया ऑपरेशन विजय का पूरा रुख, जमींदोज हुए पाक के नापाक मंसूबे… Kargil Vijay Diwas 2024: लगभग असंभव दिख रही लड़ाई को भारतीय सेना के जांबाजों ने अपने पराक्रम और युद्ध कौशल से विजय में तब्‍दील कर दिया. कारगिल युद्ध के दौरान वह 21 तारीखें बेहद खास रहीं, जो युद्ध के बदलते रुख की गवाह बनी. कौन सी थी वह तारीखें और उन तारीखों पर क्‍या हुआ, जानने के लिए क्लिक करें. इस जानकारी के बाद, हमने अपनी रणनीति को एक बार फिर नए सिरे से तैयार किया. हमने दिन में निश्चित जगह तक पहुंचने का फैसला किया. उसके बाद हमें रात होने का इंतजार करना था. और फाइलन हमला रात में होना था. इसी के साथ हमने बेस से बोफोर्स का आर्टलरी सपोर्ट मांगा, जिससे दुश्‍मन को सप्रेस किया जा सके. योजना के तहत, हम अपने पहले लक्ष्‍य के तहत पहुंच चुके थे. अब हमें रात होने का इंतजार करना था. अपने पहले लक्ष्‍य तक पहुंचने के बाद हमें यह भी पता चला कि दुश्‍मन ने पूरे इलाके में लैंड माइन भी बिछा रखी हैं. ऐसे में, रात में हमला थोड़ा मुश्किल था, लेकिन हमने अपनी रणनीति के तहत आगे बढ़ने का फैसला किया. बोफोर्स आर्टलरी का सपोर्ट मिलते ही हमने दुश्‍मन पर हमला कर दिया और उनके बंकर तक पहुंचने में कामयाब हो गए. तीन दिन तक हम लगातार दुश्‍मन से लड़ते रहे. 13 जून की सुबह चार बजे जीत हमारे हिस्‍से में आ चुकी थी और हमने दुश्‍मन को उनके अंजाम तक पहुंचा दिया था. इसी के साथ, हमने 13 जून की सुबह 4 बजे भारतीय राष्‍ट्र ध्‍वज तोलोलिंग की चोटियों पर फहरा दिया था. Tags: Kargil day, Kargil warFIRST PUBLISHED : July 25, 2024, 15:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed