‘अहमदाबाद नू रिक्शावाला’ कर रहे निस्वार्थ सेवा गिफ्ट इकोनॉमी पर चला रहे हैं ऑटो
‘अहमदाबाद नू रिक्शावाला’ कर रहे निस्वार्थ सेवा गिफ्ट इकोनॉमी पर चला रहे हैं ऑटो
‘अहमदाबाद नू रिक्शावाला’ के नाम से हो रहे पूरे देश में मशहूर, दिल से भुगतान का है कॉनसेप्ट. कई बार दिन भर में हुई केवल 100 रुपए की कमाई फिर भी पत्नी ने दिया पूरा साथ, कभी नहीं की कोई शिकायत.
खादी का कुर्ता और गांधी टोपी पहनने वाले यह अहमदाबाद के हीरो पिछले 13 सालों से ‘ गिफ्ट इकोनॉमी’ पर ऑटो चला रहे हैं. आज पूरा देश इनको इनके अनोखे ऑटो की वजह से ‘अहमदाबाद नू रिक्शावाला’ के नाम से जानता है. उदय जादव ने आज से 13 साल पहले सेवा भाव से एक ऐसे रिक्शे की शुरुआत की जिसकी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे. ‘अहमदाबाद नू रिक्शावाला’ के ऑटो में आपके लिए खाने पीने से लेकर पढ़ने तक की सारी व्यवस्था है.
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनका हमेशा से ही मानना है,कि ‘लाइफ इस अबाउट जर्नी नॉट डेस्टिनेशन’ इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक ऐसा ऑटो बनाने की कोशिश की जिससे यात्रियों का सफ़र यादगार और मंगलमय हो. वह बताते हैं कि उनके ऑटो में पानी की बोतल से लेकर नाश्ते तक का सारा प्रबंध है. यात्रियों के पढ़ने के लिए एक छोटी सी लाइब्रेरी भी बनाई है जिसमे नॉवेल से लेकर अखबार तक सब रखा गया है. वह कहते हैं कि पहले वो यात्रियों के लिए नाश्ता बाज़ार से खरीदते थे पर अब उनकी पत्नी ही घर पर सारा नाश्ता बना कर देती हैं. उदय भाई के इस ऑटो में यात्रियों के मनोरंजन का भी सारा सामान उपलब्ध है.
जानिए क्या है ‘गिफ्ट इकोनॉमी’
उनके ‘गिफ्ट इकोनॉमी’ पर आधारित इस ऑटो सेवा के चर्चे ना सिर्फ गुजरात बल्कि देश के हर कोने में हैं. इस गिफ्ट इकोनॉमी के बारे में विस्तार से बताते हुए वह कहते हैं, “मैं किसी से भी ऑटो का किराया नहीं लेता हूं बल्कि उनकी यात्रा समाप्त होने पर उनको एक डिब्बा देता हूं जिस पर लिखा है ‘दिल से भुगतान करें’. फिर जिसकी जो इच्छा होती है वो उतना देता है.” वह कहते हैं, “एक-दो बार कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जो बिल्कुल पैसे नहीं देते हैं. एक दिन में एक दो ऐसे लोग मिलते हैं जो बिल्कुल पैसे नहीं देते तो कई ऐसे भी लोग मिलते हैं जो दोगुना गिराया दे देते हैं. 13 साल से ये सेवा मैं ऐसे लोगों की मदद से ही कर पा रहा हूं.” वह कहते हैं कि उनका मकसद कभी भी पैसे कमाना नहीं था और वह बस एक निस्वार्थ सेवा की तरह ऑटो चलाना जारी रखना चाहते हैं.
उदय बताते हैं कि हमेशा से ही समाज कल्याण के कार्यों में उनकी बहुत रुचि रही है. उनके घर के पास एक मंदिर है जहां रोज़ाना कम से कम दो सौ से ढाई सौ लोग बिना किसी भेद-भाव के खाना खाते हैं. वह कहते हैं, “उस मंदिर में सेवा के दौरान अचानक मैंने एक दिन अपनी ऑटो सेवा के बारे में सोचा.”
परिवार ने दिया पूरा साथ
उदय के मुताबिक उनकी इस सेवा का श्रेय उनसे ज़्यादा उनकी पत्नी को जाता है. वह कहते हैं कि पत्नी की सहायता और सहारे के बिना ये नामुमकिन था. वह बताते हैं, “किसी किसी दिन ऑटो से पूरे दिन में मात्र 100-150 की कमाई होती है, लेकिन वह उतने में ही घर चला लेतीं और उन्होंने कभी शिकायत नहीं की.” उदय के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनके तीन बच्चे हैं. वह कहते हैं कि उनके बच्चों ने भी इस कार्य में हमेशा उनकी मदद की.
अजब किस्सा
वह बताते हैं, “एक बार की बात है दिल्ली से एक व्यक्ति अहमदाबाद आया था और रास्ते में उसका बटुआ चोरी हो गया था. स्टेशन पर काफ़ी देर तक वो खड़े रहे क्योंकि कोई भी रिक्शा उन्हें मुफ़्त में छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. जब मैंने उनसे पूछा कि कहां जाना है तो वो अचंभित होकर मुझे देखने लगे और जब मेरे ऑटो में बैठे तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा ऑटो भी हो सकता है. सवारी समाप्त होने पर उन्होंने मुझे गले लगा कर कहा कि वह मुझे कभी नहीं भूलेंगे. उस दिन मुझे यकीन हो गया कि मैं कुछ सही काम कर रहा हूं.” ऐसी बहुत सारी घटनाएं हैं जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
पहले बहुत मज़ाक उड़ाया लोगों ने
उनके मुताबिक जब उन्होंने पहली बार लोगों को अपना ये सुझाव बताया तो लोगों ने उनकी बात मज़ाक में उड़ा दी. वह कहते हैं, “लोगों ने कहा कि पागल हो गया है क्या, अपना घर नहीं चलाना है, पर अपने परिवार की वजह से मैं ये कार्य करने में सक्षम रहा.”
कोरोना के दौरान आई मुश्किलें
उदय का मानना है कि अच्छा काम करने वालों की ऊपर वाला भी मदद करता है. वह कहते हैं, “कोरोना के दौरान जब ऑटो पूरी तरह से बंद थे तब कोई न कोई हमारी मदद कर देता था.” वह कहते हैं कभी कोई महीने भर का राशन दे देता था तो कभी किसी और तरीके से लोग मदद कर देते.
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