पाक को लगा मेघदूत का थप्‍पड़ 15 साल बाद हिम्‍मत जुटा चली बद्र की चाल फिर

Kargil Vijay Diwas 2024: आपरेशन मेघदूत में करारी हार झेलने के बाद बौखलाए पाकिस्‍तानी जनरल मिर्जा असलम वेग ने 1987 में कारगिल युद्ध की पृष्‍ठभूमि लिख दी थी. जनरल मिर्जा असलम वेग की लिखी इसी इबारत को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में आपरेशन बद्र के तौर पर आगे बढ़ाया था. क्‍या है ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जानने के लिए पढ़ें आगे...

पाक को लगा मेघदूत का थप्‍पड़ 15 साल बाद हिम्‍मत जुटा चली बद्र की चाल फिर
Kargil Vijay Diwas 2024: करीब 40 साल पहले 1984 में पाकिस्‍तान के चेहरे पर पड़ा ‘मेघदूत’ का थप्‍पड़ इतना करारा था कि उसे भारत की तरफ हिम्‍मत जुटाने में 15 साल लग गए. दरअसल, कारगिल युद्ध की पृष्‍ठभूमि में जाएं तो उसकी एक बड़ी वजह 1984 में लगा ‘मेघदूत’ का करारा थप्‍पड़ भी है. इसी करारे थप्‍पड़ का बदला लेने के लिए पाकिस्‍तान ने ऑपरेशन बद्र की साजिश रची थी.पाकिस्‍तान का यही ऑपरेशन बद्र बाद में कारगिल युद्ध के तौर पर सामने आया था. और हमेशा की तरह एक बार फिर उसे मुंह की खानी पड़ी थी. दरअसल, पाकिस्‍तान की झल्‍लाहट 10 हजार वर्ग किलोमीर में फैले सिचाचिन ग्‍लेशियर को लेकर थी. उस समय तक करीब 23 हजार फीट ऊंचा यह ग्‍लेशियर पूरी तरह से निर्जन था. वहां पर भारतीय सेना की तैनाती भी नहीं थी. लिहाजा, पाकिस्‍तान इस मौका का फायदा उठाना चाहता था. सियाचिन ग्‍लेशियर के सामरिक महत्‍व को समझते हुए पाकिस्‍तान सेना ने व्‍यापक स्‍तर पर साजिश रची थी, जिसे कूटनीतिक स्‍तर पर अंजाम दिया जाना शुरू किया गया. यह भी पढ़ें: 17,995 फीट की ऊंचाई पर बैठा था दुश्‍मन, MMG के सीधे निशाने पर थे भारतीय जांबाज, 24 मई को हुआ बड़ा फैसला, फिर.. सियाचिन ग्‍लेशियर और लेह-लद्दाख को हथियाने के इरादे से पाकिस्‍तानी सेना ने घुसपैठियों के भेष में मस्‍कोह से बटालिक सेक्‍टर के बीच अपनी बिसात बिछाई थी. दुश्‍मन का मंसूबा था कि वह नेशनल हाईवे-1 को अपने कब्‍जे में लेकर इस इलाके को शेष भारत से काट दे. लेकिन… कारगिल युद्ध की पूरी कहानी और कब क्‍या हुआ, जानने के लिए क्लिक करें. साजिश के तहत, पाकिस्‍तान ने सियाचिन के इस इलाके को अपने नक्‍शे में दिखाना शुरू कर दिया. बात यहीं पर नहीं रुकी. पाकिस्‍तान ने साजिश के तहत विदेशी पर्वतारोहियों को सियाचिन ग्‍लेशियर इलाके में पर्वतारोहण के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया. पाकिस्‍तान की इन गतिविधियों के बीच भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसीज को यह भनक लग गई कि पाकिस्‍तान अपने सेना की तैनाती कर सियाचिन ग्‍लेशियर पर कब्‍जा करना चाहता है. पाकिस्‍तान के इस मंसूबों पर पानी फेरने के लिए भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ शुरू किया. पाकिस्‍तान जब तक अपनी साजिश को पूरी तरह से अंजाम देता, तब तक भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन इलाके में अपनी तैनाती कर ऑपरेशन मेघदूत को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया. भारतीय सेना के थप्‍पड़ से पाकिस्‍तान बुरी तरह से झल्‍ला गया था. जिसका बदला लेने के लिए उसने पाकिस्‍तान ने ऑपरेशन अबादली लॉच किया और सियाचिन पर हमला कर दिया. इस बार, भारतीय सेना के जांबाजों ने पाकिस्‍तानी सेना को ऐसी पटखनी दी, जिसका दर्द और अपना पाकिस्‍तान चाह कर भी नहीं भूल पाया. यह भी पढ़ें: कारगिल के वो 63 परम-महा-वीर, हर दिन लिखी वीरता की एक नई इबारत, कुचला दुश्‍मन का गुरूर… कारगिल युद्ध में वीरता के लिए सबसे अधिक पदक पाने वालों में भारतीय सेना की कश्‍मीर राइफल्‍स और राजपूताना राइफल्‍स के जांबाज शामिल हैं. कारगिल युद्ध में जांबाजी के लिए भारतीय सेना के किस रेजिमेंट के किस अधिकारी को मिला कौन सा पदक, जानने के लिए क्लिक करें. भारतीय सेना पाकिस्‍तान को सबक सिखाने के लिए यहीं पर नहीं रुकी. इस बार भारतीय सेना ने पाकिस्‍तान सेना की आत्‍मा पर वार किया और पाकिस्‍तान के संस्‍थापक मोहम्‍मद अली जिन्‍ना के नाम पर बनाई गई कायद-ए-आजम चौकी पर भी कब्‍जा कर लिया. यह चौकी करीब 21 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित है. चूंकि इस चौकी को सूबेदार बाना सिंह की अगुवाई में जीता गया था, लिहाजा भारतीय सेना ने जीत के बाइ इस चौकी का नाम कायद-ए-आजम से बदल कर बाना चौकी रख दिया. यहां आपको बता दें कि भारतीय सेना की इस मार का बदला लेने के लिए 1987 में पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख जनरल मिर्जा असलम वेग ने कारगिल अभियान की रूप रेखा तैयार की थी. लेकिन भारतीय सेना के थप्‍पड़ की गूंज इतनी करारी थी कि पाकिस्‍तानी सेना इस अभियान को आगे बढ़ाने की हिम्‍मत नहीं जुटा सकी. सियाचिन ग्‍लेशियर में हार न केवल पाकिस्‍तानी सेना, बल्कि परवेज मुशर्रफ के लिए भी यह मनोवैज्ञाकि आघात था. यह भी पढ़ें: कारगिल युद्ध की वो 21 तारीखें, जिसने बदल दिया ऑपरेशन विजय का पूरा रुख, जमींदोज हुए पाक के नापाक मंसूबे… Kargil Vijay Diwas 2024: लगभग असंभव दिख रही लड़ाई को भारतीय सेना के जांबाजों ने अपने पराक्रम और युद्ध कौशल से विजय में तब्‍दील कर दिया. कारगिल युद्ध के दौरान वह 21 तारीखें बेहद खास रहीं, जो युद्ध के बदलते रुख की गवाह बनी. कौन सी थी वह तारीखें और उन तारीखों पर क्‍या हुआ, जानने के लिए क्लिक करें. उस समय परवेज मुशर्रफ़ खुद वहां तैनात स्पेशल सर्विस ग्रुफ की कमान संभाल रहा था और भारतीय चौकियों पर कब्जा करने में असफल रहा था. 1987 से दिल में पनप रही ग्‍लानि को दूर करने के लिए परवेज मुशर्रफ ने सेनाध्‍यक्ष बनने के बाद एक बार जनरल मिर्जा असलम वेग ने कारगिल अभियान को आगे बढ़ाया, जिसको ऑपरेशन बद्र का नाम दिया गया. पाकिस्‍तान के इसी ऑपरेशन बद्र ने आगे चलकर कारगिल युद्ध का रूप धारण कर लिया. Tags: Indian army, Indian Army Heroes, Kargil day, Kargil war, Know your ArmyFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 07:49 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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