300 किमी की पीक्स पर कब्जा इंटेलिजेंस को नहीं लगी भनक पाक ने ऐसे दिया धोखा
300 किमी की पीक्स पर कब्जा इंटेलिजेंस को नहीं लगी भनक पाक ने ऐसे दिया धोखा
जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है तो इंटेलिजेंस एजेंसीज की विफलता के आरोप एक बार फिर आ खड़े होते हैं. ऐसे में, सवाल यह है कि आखिर पाकिस्तानी सेना ने अपने प्लान को ऐसे कैसे एग्जिक्यूट किया कि दुनिया में किसी को खबर नहीं लगी. पाकिस्तानी का क्या था सीक्रेट प्लान, जानने के लिए पढ़ें आगे...
25 years of Kargil war: कारगिल का युद्ध जब शुरू हुआ, तब दुश्मन के जीतने की संभावना 99 फीसदी और हमारे जीत की संभावना सिर्फ 1 फीसदी ही थी. दुश्मन इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त था कि वह न केवल इंडियन आर्मी के हर अटैक को रोक देगा, बल्कि 3-4 महीने आराम से ऊपर बैठा रहेगा. इस बीच, वह नेशनल हाईवे-1 से एक भी ट्रक नहीं गुजरने देगा. बर्फ बारी शुरू होते ही ऑपरेशन के पार्ट-2 को अंजाम दिया जाएगा. जिसके तहत, सियाचिन और लेह-लद्दाख को कैप्चर कर भारत का नक्शे बदलने का मंसूबा था.
कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि कारगिल में घुसपैठ के पीछे पाक सेना का मूल इरादा सियाचिन गलेशियर और लेह-लद्दाख पर कब्जा करना था. अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए वह सियाचिन ग्लेशियर और लेह-लद्दाख की सारी सप्लाई बंद करना चाहता था. पाक सेना से अपने इन इरादों को पूरा करने के लिए 1996 से ही तैयारी शुरू कर दी थी. यह तैयारी इतनी गोपनीय तरीके से की जा रही थी कि पाक सेना ने इसकी भनक अपने राजनीतिक आकाओं तक को भी नहीं लगने दी थी. यह भी पढ़ें: साहब! बच्चों की कसम, मैंने सफेद कपड़ों में लोगों को… कश्मीर से दिल्ली तक मच गया हड़कंप, छिड़ गई जंग… वंजू टॉपू पर अपनी यार्क को खोजने गए ताशी नामग्याल नामक एक चरवाहे ने पहली बार घुसपैठियों के भेष में आई पाकिस्तानी सेना के जवानों को कारगिल की चोटियों पर देखा था. इसके बाद, ताशी नामग्याल ने क्या किया, कैसे भारतीय सेना पीक पर बैठे दुश्मन तक पहुंची, जानने के लिए क्लिक करें.
नेशनल हाईवे-1 पर क्यों थी पाक सेना की निगाह
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि नेशनल हाईवे-1 को नेक ऑफ इंडिया कहा जाता है. यह नेशनल हाईवे द्रास और लद्दाख को मेन भारतीय लाइन श्रीनगर से जोड़ता है. गर्मियों में इसी हाईवे से ट्रकों के जरिए सप्लाई सियाचिन और लेह-लद्दाख में भेजी जाती है. सर्दियों के दौरान, ये इलाके इसी सप्लाई पर निर्भर करते हैं. क्योंकि सर्दियों में यह हाईवे पूरी तरह से बंद हो जाता है और सप्लाई सिर्फ हेप्टर और एयरक्राफ्ट के जरिए संभव होती है. पाकिस्तान का जो गेम प्लान था कि अगर सियाचिन और लेह-लद्दाख की सप्लाई रोक दें तो ये इलाके पूरी तरह से आइसोलेट हो जाएंगे. फिर इन इलाकों के एक तरफ पाकिस्तान है और दूसरी तरह चीन. ऐसे में इन इलाकों पर बहुत आसानी से कब्जा किया जा सकेगा.
गुपचुप तरीके से पाक ने खरीदे वॉर इक्विपमेंट
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि दुनिया की सभी आर्मी एक-दूसरे की खरीद पर कड़ी नजर रखती हैं. सैन्य खरीद-फरोख्त की मदद से किसी सेना के इरादों और भविष्य की रणनीति का बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है. पाक आर्मी को यह पता था कि भारतीय सेना की कड़ी निगाह उसकी गतिविधियों पर लगातार बनी हुई है. लिहाजा, उसने तीन साल के अंतराल में छोटे-छोटे देशों के जरिए छोटी-छोटी संख्या में अपने ऑपरेशन से जुड़े इक्विपमेंट खरीदे, जिसमें बेस्ट क्वालिटी के स्नो बूट, स्नो टेंट, स्नो जैकेट्स आदि शामिल थे. इसके अलावा, पाक सेना ने माउंटेन ऑपरेशन से जुड़े कई वैपन और इक्विपमेंट भी तीन साल के अंतराल में इकट्ठा कर लिए थे. छोटी संख्या में दूसरे देशों के जरिए हुई खरीद की वजह से पाक सेना के मंसूबों को नहीं पहचाना जा सका. यह भी पढ़ें: जब पाकिस्तान को लगा ‘मेघदूत’ का थप्पड़, हिम्मत जुटाने में लग गए 15 साल, फिर चली ‘बद्र’ की नाकाम चाल, नतीजा… आपरेशन मेघदूत में करारी हार झेलने के बाद बौखलाए पाकिस्तानी जनरल मिर्जा असलम वेग ने 1987 में कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि लिख दी थी. जनरल मिर्जा असलम वेग की लिखी इसी इबारत को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में आपरेशन बद्र के तौर पर आगे बढ़ाया था. क्या है ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जानने के लिए क्लिक करें.
एनएलआई में तैनात किए गए रेगुलर आर्मी के कमांडो
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि जैसे हमारे यहां बॉर्डर पर बीएसएफ है, वैसे ही पाकिस्तान ने बॉर्डर पर अपनी एनएलआई फोर्स को तैनात कर रखा है. जब भी युद्ध होता है तब बीएसएफ और एनएनआई पीछे जाती है और फ्रंट पर युद्ध लड़ने के लिए भारतीय सेना और पाक सेना आमने सामने आ जाती है. कारगिल युद्ध से पहले पाकिस्तान ने अपनी एनएलआई को पीछे नहीं हटाया. बल्कि अपनी रेगुलर आर्मी के कमांडो और अधिकारियों को एनएलआई में तैनात करना शुरू कर दिया. जिससे किसी को उनके मंसूबों के बारे में खबर न लगे. भारतीय सीमा में दाखिल कराने से पहले इन सभी कमांडोज को विशेष प्रशिक्षण दिया गया, जिससे विपरीत परिस्थितयों और माइनस टेंपरेचर के बीच अपने मंसूबों को अंजाम दे सकें.
छोटी-छोटी टुकडि़यों में पाक कमांडो से कराई गई घुसपैठ
पाकिस्तानी सेना को अच्छी तरह से पता था कि सर्दियों के समय भारतीय सेना सेटेलाइट के जरिए पूरे इलाके में निगरानी करती है. लिहाजा, उसने दो-तीन कमांडोज की छोटी टुकड़ी बनाई और उन्हें सफेद कपड़े पहनाकर घुसपैठ कराई. जिससे बर्फ के बैकग्राउंड में इन कमांडोज की हरकत हो सेटेलाइट से पकड़ा ना जा सके. मार्च आते-आते हजारों की संख्या में पाकिस्तानी कमांडो मस्कोह से बटालिक सेक्टर तक पूरी तरह से फैल गए. उन्होंने भारतीय सेना की खाली पड़ी विंटर वेकेटेड पोस्ट पर कब्जा कर लिया. इसके अलावा, अपने साथ लाए सीमेंट और लोहे से नए बंकर बना लिए. पाकिस्तानी सेना अपनी रणनीति के तहत उन सभी लोकेशन पर पोजीशन लेकर बैठ गई, जहां से नेशनल हाईवे-1 पर नजर रखी जा सके. यह भी पढ़ें: 17,995 फीट की ऊंचाई पर बैठा था दुश्मन, MMG के सीधे निशाने पर थे भारतीय जांबाज, 24 मई को हुआ बड़ा फैसला, फिर.. सियाचिन ग्लेशियर और लेह-लद्दाख को हथियाने के इरादे से पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठियों के भेष में मस्कोह से बटालिक सेक्टर के बीच अपनी बिसात बिछाई थी. दुश्मन का मंसूबा था कि वह नेशनल हाईवे-1 को अपने कब्जे में लेकर इस इलाके को शेष भारत से काट दे. लेकिन… कारगिल युद्ध की पूरी कहानी और कब क्या हुआ, जानने के लिए क्लिक करें.
युद्ध की पूरी तैयारी से आए थे दुश्मन सेना के कमांडो
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि घुसपैठ करके आए पाकिस्तानी सेना के कमांडोज को अच्छी तरह से पता था कि उन्हें कई महीनों तक इन पहाडि़यों पर रहना है. लिहाजा, वह अपने साथ बड़ी मात्रा में रसद सामग्री लेकर आए थे. जगह जगह पर उन्होंने अपने किचन सेट कर लिए थे. उन्हें पता था कि भारतीय सेना उन पर हमला करने जरूर आएंगे, लिहाजा उन्होंने सभी संभावित रास्तों पर दूर-दूर तक लैंड माइन बिछा दिए थे. हवाई हमले से बचने के लिए वह अपने साथ स्टिंगजर मिशाइल लेकर आए थे. वहीं केमिकल वॉर की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए वह अपने साथ मास्क तक लेकर आए थे. बड़े पैमाने पर की गई इस तैयारी के बाद पाकिस्तानी सेना को पूरा भरोसा था कि वह इस बार अपने मंसूबों में सफल हो जाएंगे.
रणनीति बनाने में पाकिस्तान सेना से हुई यह बड़ी गलती
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना अपनी इस पुख्ता प्लानिंग के बीच एक गलती कर दी. उसने भारतीय सैनिकों के जज्बे, युद्ध कौशल और पराक्रम को नजरअंदाज कर दिया. यह गलती कारगिल के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को भारी पड़ गई. जिस युद्ध में हारने की संभावना 99 फीसदी थी, उस युद्ध को भारतीय सेना के जांबाजों ने अपने युद्ध कौशल और पराक्रम से जीत कर दिखा दिया. आलम यह हुआ कि नापाक मंसूबे लेकर जो पाकिस्तानी भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे, उन्हें या तो मार गिराया गया या फिर वह भारतीय सेना के खौफ से पीठ दिखाकर भागने को मजबूर हो गए.
Tags: Indian army, Indian Army Heroes, Indian Army Pride, Kargil day, Kargil war, Know your ArmyFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 11:57 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed