हमले को तैयार थी भारतीय सेना तभी बदला पूरा नजारा 3-पिंपल में जीत की हसरत

Kargil Vijay Diwad 2024: तोलोलिंग के बाद राजपूताना राइफल्‍स को थ्री पिंपल्‍स में जीत का लक्ष्‍य सौंपा गया था. राजपूताना राइफल्‍स के जांबाज अपना फाइनल अटैक करते, इससे पहले दुश्‍मन ने एयर बस्‍ट फायर कर दिया और फिर...

हमले को तैयार थी भारतीय सेना तभी बदला पूरा नजारा 3-पिंपल में जीत की हसरत
Kargil Vijay Diwas 2024: भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्‍स ने तोलोलिंग में तो जीत हासिल कर ली थी, लेकिन लिए एक बड़ा लक्ष्‍य अभी भी इंतजार कर रहा था. यह लक्ष्‍य था थ्री पिंपल पर बैठे दुश्‍मन को जमींदोज करने का. इस लक्ष्‍य को राजपूताना राइफल्‍स के रणबाकुंरों ने कैसे पूरा किया, जानिए थ्री पिंपल में लड़ाई की कहानी, कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना की जुबानी… जब हमने तोलोलिंग में विजय हासिल कर ली तो पाकिस्‍तान का हौसला टूट गया. क्‍योंकि उन्‍हें उम्‍मीद नहीं थी कि जिसे वह अपना किला बोलते थे, उस तोलोलिंग पर भारतीय सेना फतेह हालिस कर पाएगी. इसके बाद मेरे नेतृत्‍व में हंप एरिया और कैप्‍टन विक्रम बत्रा के नेतृत्‍व में प्‍वाइंट 5140 पर जीत हासिल करके भारतीय तिरंगा फहरा दिया गया. यह भी पढ़ें: भारतीय सेना की तोलोलिंग में मना रही थी जीत का जश्‍न, अचानक… एक झटके में जाने वाली थी सबकी जान, लेकिन तभी… भारतीय जांबाजों ने तोलोलिंग की पीक पर तो सफलतापूर्वक कब्‍जा कर लिया था, लेकिन उनके लिए वहां एक नई मुसीबत इंतजार कर रही थी. इस मुसीबत के बीच एक जवान ने जैसे ही अपनी प्‍यास बुझाने के लिए बर्फ का गोला उठाया, तभी … क्‍या थी जवानों के सामने मुसीबत और बर्फ का गोला उठाने के बाद क्‍या हुआ… जानने के लिए क्लिक करें. 18-19 जून तक हमने पूरा तोलोलिंग कॉम्‍पलेक्‍स जीत लिया था. तोलोलिंग कॉम्‍पलेक्‍स में भारतीय सेना की जीत ने पूरी लड़ाई का रुख बदल दिया. लेकिन, अभी लड़ाई खत्‍म नहीं हुई थी. अब बहुत सी पीक ऐसी थी, जहां पर दुश्‍मन अभी बैठा हुआ था. 25 जून को हमें थ्री पिंपल पर जीत का नया टारगेट मिला. थ्री पिंपल एरिया तीन बिल्‍कुल सीधी पीक थीं और तीनों पीक के ऊपर दुश्‍मन ने अपने मजबूत बंकर बना रखे थे. करीब 90 डिग्री की सीधी चढ़ाई वाले रास्‍ते में दुश्‍मन ने माइंस लगा रखे थे और एक निर्णायक युद्ध की स्थिति बन चुकी थी. चूंकि तोलोलिंग की जीत के बाद राजपूताना राइफल्‍स के जवाब पूरी तरह से जोश से भरे हुए थे, लिहाजा, हमारी रेजिंमेंट को थ्री पिंपल्‍स की पीक पर भारतीय तिरंगा फहारने का लक्ष्‍य दिया गया. हमने अपनी तैयारी पूरी करने के बाद लड़ाई की रणनीति तैयार की गई. फाइनल अटैक के लिए आर्टलरी गन के फायर को रजिस्‍टर कर दिया गया. यह भी पढ़ें: 300 किमी की पीक्‍स पर किया कब्‍जा, इंटेलिजेंस एजेंसियों को नहीं लगने दी भनक, जानें पाक आर्मी कैसे कर पाई यह संभव… जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है तो इंटेलिजेंस एजेंसीज की विफलता के आरोप एक बार फिर आ खड़े होते हैं. ऐसे में, सवाल यह है कि आखिर पाकिस्‍तानी सेना ने अपने प्‍लान को ऐसे कैसे एग्‍जिक्‍यूट किया कि दुनिया में किसी को खबर नहीं लगी. पाकिस्‍तानी का क्‍या था सीक्रेट प्‍लान, जानने के लिए क्लिक करें. एक लंबे संघर्ष के बाद हम अपने फर्म बेस तक पहुंचने में सफल हो गए. फर्म बेस एक ऐसी जगह होती है, जहां पर हम आखिरी हमले के लिए इकट्ठा होते हैं. बैग से खाने का सामान और गोला बारूद को अगल किया जाता है. फाइलन अटैक को लीड करने वाली यूनिट अपने बैग में सिर्फ आर्म्‍स और एम्‍युनिशन्‍स रखती है. इसके बाद, हमले को अंजाम दिया जाता है. यहां पर हमारे साथ एक बड़ी घटना घटित हो जाती है. दरअसल, हम आखिरी हमले से ठीक पहले दुश्‍मन को हमारे फर्म बेस का पता चल जाता है. चूंकि हम सब एक जगह इकट्ठे थे. अपने फाइनल हमले की तैयारी कर रहे थे. वहां कोई अपनी फेमिली के लिए लेटर लिख रहा था, कोई अपने आर्म्‍स को तैयार कर रहा था. इसी बीच, इसी बीच दुश्‍मन ने जबदस्‍त एयर बस्‍ट फायरिंग शुरू कर दी. एयर बस्‍ट फायरिंग में एक गोला आकर आपसे 50मीटर ऊपर फटता है, जिससे एक साथ हजारों गोलियों के छर्रे निकलते है. यह भी पढ़ें: जब पाकिस्‍तान को लगा ‘मेघदूत’ का थप्‍पड़, हिम्‍मत जुटाने में लग गए 15 साल, फिर चली ‘बद्र’ की नाकाम चाल, नतीजा… आपरेशन मेघदूत में करारी हार झेलने के बाद बौखलाए पाकिस्‍तानी जनरल मिर्जा असलम वेग ने 1987 में कारगिल युद्ध की पृष्‍ठभूमि लिख दी थी. जनरल मिर्जा असलम वेग की लिखी इसी इबारत को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में आपरेशन बद्र के तौर पर आगे बढ़ाया था. क्‍या है ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जानने के लिए क्लिक करें. एयर बस्‍ट फायर की स्थिति में भले ही आपने किसी चट्टान के नीचे अपने को छिपा रखा हो, आपके लिए बचना मुश्किल हो जाता है. कुछ ही समय में, दुश्‍मन हम पर हजारों एयर बस्‍ट फायर कर चुका था. दुश्‍मन हमारे इस हमले को शुरू में ही रोक देना जाहता है. दुश्‍मन जानता था कि किसी हमले को शुरू में ही रोक दिया जाए, तो फिर हमले को आगे बढ़ाना नामुमकिन सा हो जाता है. इस हमले में हमारी करीब तीन फीसदी जवान-अफसर घायल हो गए. इस हमले के बाद, पाकिस्‍तान यह सोच कर आश्‍वस्‍त हो गया कि उसने भारतीय सेना के इस हमले को विफल कर दिया गया. लेकिन, वह भारतीय जवानों की जांबाजी नहीं जानता था. भारी कैजुअल्‍टी और करीब 30 फीसदी जवान घायल होने के बावजूद कर्नल र‍वींद्र नाथ और सब ऑफिसर ने तय किया हमला नहीं रुकेगा, हम अभी भी विजय हासिल करेंगे. क्‍या हुआ 30 फीसदी लोग इंजर्ड हो गए और बेहतर इलाज के लिए पीछे भेज दिया गया. यह भी पढ़ें: साहब! बच्‍चों की कसम, मैंने सफेद कपड़ों में लोगों को… कश्‍मीर से दिल्‍ली तक मच गया हड़कंप, छिड़ गई जंग… वंजू टॉपू पर अपनी यार्क को खोजने गए ताशी नामग्‍याल नामक एक चरवाहे ने पहली बार घुसपैठियों के भेष में आई पाकिस्‍तानी सेना के जवानों को कारगिल की चोटियों पर देखा था. इसके बाद, ताशी नामग्‍याल ने क्‍या किया, कैसे भारतीय सेना पीक पर बैठे दुश्‍मन तक पहुंची, जानने के लिए क्लिक करें. तैयारी पूरी करने के लिए भारतीय सेना ने अपना फाइनल हमला किया. भारतीय फौज की इस हमले से दुश्‍मन भौचक्‍का रह गया था. एक लंबी लड़ाई के बाद भारतीय जांबाजों ने थ्री पिंपल पर भी जीत हासिल कर ली और वहां भी भारतीय सेना ने अपना राष्‍ट्र ध्‍वज तिरंगा फरहा दिया. थ्री पिंपल में हार के बाद दुश्‍मन की एक तरह से कमर टूट चुकी थी. उसे समझ में आ गया था कि भारतीय सेना की जांबाजी के सामने उसका टिकना मुमकिन नहीं है. Tags: Indian army, Indian Army Heroes, Indian Army Pride, Kargil day, Kargil war, Know your ArmyFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 15:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed