कंचनजंगा ट्रेन एक्सीडेंट ने खोल दी भारतीय रेल के सिस्टम की पोल जांच में उठे क
कंचनजंगा ट्रेन एक्सीडेंट ने खोल दी भारतीय रेल के सिस्टम की पोल जांच में उठे क
17 जून को पश्चिम बंगाल के रंगापानी में सियालदह कंचनजंघा एक्सप्रेस ट्रेन और मालगाड़ी के बीच हुए एक्सीडेंट में 9 लोगों की मौत हो गई. 30 से अधिक लोग घायल हुए हैं. इस दुर्घटना ने भारतीय रेल के सुरक्षित सफर पर फिर से सवालिया निशान लगा दिए हैं.
17 जून की सुबह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर में हुई कंचनजंगा रेल दुर्घटना ने भारतीय रेल के कम्युनिकेशन सिस्टम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब ढूंढने की कोशिश की गई है. रेल एक्सीडेंट की जांच शुरू हो गई है. रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया वर्मा सिन्हा ने मालगाड़ी के चालक की ओर से संभावित “मानवीय भूल” की ओर इशारा करते हुए कहा कि न्यू जलपाईगुड़ी के निकट टक्कर संभवतः इसलिए हुई क्योंकि मालगाड़ी ने सिग्नल की अनदेखी की और अगरतला से सियालदह जा रही कंचनजंघा एक्सप्रेस को टक्कर मार दी.
ऐसे में सवाल उठते हैं कि जितना दम्भ हम भारतीय रेल को आधुनिक बनाने दे रहे हैं, क्या सिस्टम वाकई आधुनिक और सुरक्षित हो रहा है. क्योंकि जब भी कोई ट्रेन पटरी पर दौड़ती है तो उसके पीछे पूरा सिस्टम काम करता है, खासकर रेलवे के कम्युनिकेशन सिस्टम पर ही ट्रेन यहां से वहां, और वहां ये यहां दौड़ती हैं. कम्युनिकेशन सिस्टम का भी एक मजबूत सिस्टम होता है जिसका हर किसी को पालन करना होता है. जहां भी जरा-सी चूक हुई, दुर्घटना हुई. ऐसी ही चूक कंचनजंगा ट्रेन हादसे में सामने आ रही है. शुरूआती जांच के दौरान रेलवे के अधिकारियों के बीच जो बातें हो रही हैं, उनके अनुसार, उस डिवीजन का इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम फेल हो गया था और ट्रेनों को पीएलसी/पेपर लाइन क्लीयरेंस के माध्यम से संचालित किया जा रहा था. जो भारतीय रेल के सामान्य नियमों का पालन करता है. ऐसे में पेपर लाइन क्लीयरेंस एक निर्धारित फॉर्म टीए 912 के जरिए जारी किया जाता है, जिस पर संबंधित स्टेशन मास्टर अपने हस्ताक्षर करता है. उसी के अनुसार, कंचनजंगा एक्सप्रेस को रांगापानी स्टेशन पर 08:27 बजे टीए 912 प्रदान किया गया, जो पश्चिम बंगाल रेवले के क्षेत्राधिकार में आता है. इसके बाद ट्रेन को चट्टर्हट स्टेशन और बिहार क्षेत्राधिकार के अंतर्गत रानीपटरा स्टेशन के बीच रोका गया.
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मैसेज के मुताबिक, कंचनजंगा ट्रेन में पीछे से टक्कर हुई थी. मालगाड़ी खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस से टकरा गई. अब कई सवाल उठते हैं-
प्रश्न 1. कैसे? मालगाड़ी के लोको पायलट को टीए 912 किसने दिया? जब ट्रेन पीएलसी पर चल रही हो और टीए 912 द्वारा सिग्नल पार करने का अधिकार दिया गया हो, तो अगले स्टेशन से क्लीयरेंस के बिना कोई टीए 912 जारी नहीं किया जा सकता. यहां ट्रेन संख्या 13174 DN, कंचनजंगा एक्सप्रेस रुकी हुई थी, तो रास्ता अवरुद्ध था. यानी लाइन क्लीयर नहीं थी.
प्रश्न 2. फिर मालगाड़ी बिना किसी सिग्नल के आगे कैसे बढ़ सकती थी? अगर किसी डिवीजन का ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम फेल हो जाता है, तो सभी सिग्नल ऑटोमैटिक रूप से लाल हो जाते हैं. इसे फेल-सेफ सिस्टम कहा जाता है.
प्रश्न 3. इंटरनली मैसेज में कहा गया है कि मालगाड़ी के लोको पायलट को रांगा पानी स्टेशन मास्टर द्वारा 08:42 बजे आगे बढ़ने का संकेत दिया गया था, लेकिन चट्टर्हट स्टेशन पर क्या हुआ, इस पर खामोशी है? मालगाड़ी चट्टर्हट स्टेशन से कैसे निकल गई और आगे खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस में जा घुसी? क्या चट्टर्हट में टीए 912 फॉर्म देकर पीएलसी जारी किया गया था?
अगर हां, तो क्यों? कंचनजंगा के खड़े होने के कारण रास्ता बंद था. क्या कोई गलत सूचना थी? अगर मालगाड़ी को आगे बढ़ने का संकेत नहीं दिया गया था और उसने चट्टर्हट स्टेशन पर सिग्नल को पार कर दिया था, तो क्या वाकी-टॉकी के माध्यम से इसकी सूचना दी गई थी? अगर मैसेज किया गया था तो क्या दोनों लोको पायलटों ने रेडियो मैसेज को नजरअंदाज कर दिया?
प्रश्न 4. कंचनजंगा एक्सप्रेस को दो स्टेशनों के बीच क्यों रोका गया? टीए 912 के माध्यम से लोको पायलटों को सिग्नल पर पेपर लाइन क्लीयरेंस सौंपा जाता है. सिग्नल आमतौर पर किसी स्टेशन के पास लगाए जाते हैं. इसका मतलब ये हुआ कि दो स्टेशनों के बीच में कोई सिग्नल नहीं लगाया गया.
प्रश्न 5. क्या कंचनजंगा एक्सप्रेस को रानीपतरा स्टेशन में प्रवेश करने से ठीक पहले डिस्टेंस सिग्नल पर रोका गया था? यदि हां, तो क्या इस मैसेज को छत्तरहाट स्टेशन और रंगपानी स्टेशन के साथ शेयर नहीं किया गया?
कटिहार रेलवे के क्षेत्रीय प्रबंधक ने दावा किया है कि मालगाड़ी के लोको पायलटों ने सिग्नल पार कर लिए और खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस में टक्कर मार दी. हां, यह वजह हो सकती है. लेकिन मेरी राय में, इसकी संभावना बहुत कम है, क्योंकि दुर्घटना रात के अंधेरे में नहीं बल्कि सुबह के उजाले में हुई. हालांकि बारिश हो रही थी, फिर भी दृश्यता इतनी ख़राब नहीं थी. यह नहीं हो सकता कि मालगाड़ी के दो लोको पायलटों ने इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम फेल होने के चलते लाल हुए कई सिग्नलों को पार किया हो.
मालगाड़ी के दोनों लोको पायलट घायल होने की वजह से पहले ही दम तोड़ चुके हैं. ये तो वे ही बता सकते थे कि क्या उन्होंने लाल सिग्नलों को पार कर लिया था और कंचनजंगा से टकरा गए थे. या स्टेशन मास्टरों के बीच कोई कम्युनेशन गैप हो गया था और उन्हें पीएलसी द्वारा टीए 912 फॉर्म दिया गया तथा उसी लाइन से आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी जहां कंचनजंगा पहले से ही खड़ी थी.
इस दुर्घटना की जांच जारी है. लेकिन दावा किया जा रहा है कि रंगापानी स्टेशन पर ही ऑटोमैटिक सिग्नल सिस्टम फेल हो गया था और आगे का ट्रैक इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग सिस्टम पर था. चत्तरहाट स्टेशन पर मालगाड़ी के लोको पायलट दो रेड सिग्नल पार कर गए. दावे के अनुसार, चतरहाट में स्टार्टर सिग्नल और एडवांस स्टार्टर सिग्नल लाल थे. लेकिन फिर, एक ही समय में, दो लोको पायलटों द्वारा बहुत ही असंभावित व्यवहार किया गया. इसलिए, मुझे संदेह है.
रेलवे सुरक्षा आयुक्त की जांच से सच्चाई सामने आ सकती है.
Tags: Indian Railways, Train accident, West bengalFIRST PUBLISHED : June 17, 2024, 19:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed