दासी से सहेली बनी इन 3 लड़कियों ने अंतिम सांस तक दिया लक्ष्मीबाई का साथ

इतिहासकार हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि 7 जून की रात जब रानी लक्ष्मीबाई ने किला छोड़ने का फैसला लिया, उस समय अंग्रेज उन पर हावी थे. रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बेटे दामोदर राव को पीठ पर बांधा और किले की सबसे ऊंची दीवार की तरफ प्रस्थान किया.

दासी से सहेली बनी इन 3 लड़कियों ने अंतिम सांस तक दिया लक्ष्मीबाई का साथ
झांसी: इतिहास की यह खासियत होती है कि वह हमें हमारे बीते हुए गौरवशाली कल से परिचित करवाता है. लेकिन,इतिहासकारों की खामी यह भी रही है कि उन्होंने सिर्फ राजाओं और सेनापतियों को ज्यादा महत्व दिया है. वह उन वीर सैनिकों को भूल जाते हैं जिनके सामूहिक बलिदान से आज का भारत तैयार हुआ है.1857 की क्रांति में अक्सर तात्या टोपे, गुलाम गौस खान, मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई का नाम तो स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. लेकिन कई ऐसे पात्रों के नाम छूट जाते हैं जिनका योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. ऐसी ही तीन वीरांगनाएं हैं सुंदर, मुंदर और जूही. मामूली से लगने वाले इन तीन नामों का इतिहास भी बहुत ही गौरवशाली रहा है. रानी लक्ष्मीबाई को किले से सकुशल बाहर निकालने वाली ये तीन वीरांगनाएं ही थीं. इन्हीं तीनों की मदद से रानी लक्ष्मीबाई सकुशल अपने किले से बाहर निकलने में सफल हो पाई थीं. दासी को बनाया दोस्त प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा अपनी किताब झांसी की रानी में इन तीनों का उल्लेख करते हैं.वह लिखते हैं कि जब लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव गणेश मंदिर में विवाह के लिए जा रहे थे, तो महारानी के रथ पर एक लड़की चढ़ी. उसने अपना नाम जूही बताया और कहा कि मैं आपकी दासी हूं. रानी लक्ष्मीबाई ने उससे कहा कि अगर सहेली के रूप में रहना है तो रुक जाओ, अगर दासी बनना है तो अभी चली जाओ. थोड़ा आगे बढ़ने पर सुंदर और मुंदर रथ पर चढ़ती हैं. वह भी अपना परिचय दासी के रूप में देती हैं और लक्ष्मीबाई उन्हें भी अपनी सहेली बना लेती हैं. महारानी ने दिया था युद्धकला का प्रशिक्षण महारानी लक्ष्मीबाई इन तीनों से पूछती हैं कि क्या तुम्हें तलवारबाजी, घुड़सवारी, कुश्ती जैसी कलाएं आती हैं? तो वह कहती हैं की उन्हें सिर्फ नृत्य और गायन आता है. महारानी लक्ष्मीबाई उन तीनों को प्रशिक्षित करना शुरू करती हैं. वह उन्हें तलवारबाजी और घुड़सवारी जैसे गुर सिखाती थीं. खेल-खेल में शुरू हुआ यह प्रशिक्षण भविष्य में बहुत काम आया. जब रानी लक्ष्मी बाई को झांसी के किले से बाहर निकलना था, तो इन तीनों ने इसकी जिम्मेदारी उठाई थी. अंतिम सांस तक दिया रानी का साथ इतिहासकार हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि 7 जून की रात जब रानी लक्ष्मीबाई ने किला छोड़ने का फैसला लिया, उस समय अंग्रेज उन पर हावी थे. रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बेटे दामोदर राव को पीठ पर बांधा और किले की सबसे ऊंची दीवार की तरफ प्रस्थान किया. सुंदर, मुंदर और जूही उनके साथ थीं. वह लगातार अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं. सबसे पहली गोली सुंदर को लगी. थोड़ा आगे बढ़ने पर मुंदर भी वीरगति को प्राप्त हो गई. कुदान स्थल के पास तक पहुंचते-पहुंचते जूही को भी एक गोली लगी और उनका भी देहांत हो गया था. लेकिन, तीनों ने मिलकर महारानी लक्ष्मीबाई को सकुशल बाहर निकलवा दिया. Tags: Jhansi news, Local18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : June 15, 2024, 08:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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