OMG: अजूबा है सीवान जिले का यह गांव! यहां के हर घर में है नाव जानिए क्या है वजह

गुठनी प्रखण्ड के तीर बलुआ गांव की आबादी 150 से अधिक है. जबकि यहां नाव की संख्या सौ से ज्यादा है. यहां के लोग अपने हाथों से नाव को तैयार कर दैनिक जीवन में उसका उपयोग करते हैं. सीवान जिले में 1,528 से ज्यादा गांव हैं, लेकिन महज आधा दर्जन गांवों में ही पांच से 10 और 10 से 15 की संख्या में नावें मिलती हैं

OMG: अजूबा है सीवान जिले का यह गांव! यहां के हर घर में है नाव जानिए क्या है वजह
अंकित कुमार सिंह सीवान. बिहार के सीवान जिले के गुठनी प्रखण्ड स्थित तीर बलुआ गांव सबके लिए अजूबा है. अजूबा इस लिहाज से कि यहां के घर-घर में नाव है. इस गांव की आबादी 150 से अधिक है, लेकिन यहां नाव की संख्या सौ से ज्यादा है. जिले में सबसे अधिक नाव तीर बलुआ गांव में मिलती है. यहां के लोग अपने हाथों से नाव को तैयार कर दैनिक जीवन में उसका उपयोग करते हैं. सीवान जिले में 1,528 से ज्यादा गांव हैं, लेकिन महज आधा दर्जन गांवों में ही पांच से 10 और 10 से 15 की संख्या में नावें मिलती हैं. जिले के सभी गांवों में लोग नाव का उपयोग नहीं करते हैं और न ही यह घर-घर में पायी जाती है. हालांकि एकमात्र तीर बलुआ गांव में सौ से भी ज्यादा नावे पायी जाती है. सरयू नदी और छोटी गंडक के किनारे बसा है तीर बलुआ गांव सीवान के तीर बलुआ गांव छोटी गंडक और सरयू नदी के तट पर बसा हुआ है. इस गांव की आबादी 150 से अधिक है. यह हर साल बाढ़ की वीभीषिका को झेलता है जिस वजह से प्रत्येक घरों में नाव रखी जाती है. बाढ़ आने पर कहीं भी आने-जाने और सुरक्षित निकलने के लिए नाव का उपयोग किया जाता है. साथ ही, जीविका चलाने और मछली पकड़ने के लिए भी नाव का उपयोग किया जाता है. नदी के दूसरे छोर की भूमि पर खेती करने के लिए भी नाव का उपयोग किया जाता है. इस वजह से तीर बलुआ गांववालों के लिए नाव काफी मत्वपूर्ण है. नाव यहां के लोगो के दैनिक जीवन का मूल साधन है. पुरुषों के अलावा महिलाएं भी चलाती हैं नाव तीर बलुवा गांव में बाढ़ आने पर सुरक्षित निकलने के लिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं व युवतियां भी नाव चलाती हैं. यहां के छोटे-छोटे बच्चों और बच्चियों को भी नाव चलाने की सीख दी जाती है ताकि आपदा की स्थिति में वो नाव का सहारा लेकर अपनी जान बचा सकें. कपड़ा और बर्तन धोने तक का नदी में ही होता है कार्य तीर बलुआ गांव के अधिकांश लोग नदी के जल को अपने काम में लाते हैं. महिलाएं व पुरुष नाव के सहारे नदी में उतर कर बर्तन व कपड़े धोते हैं. पशुओं को पानी पिलाना, स्नान कराना और अन्य कार्य भी नदी के जल से होता है. अपने हाथों से ही बना डालते हैं नाव तीर बलुआ गांव के निवासी बाबू चंद सहनी बताते हैं कि एक नाव को बनाने में लगभग 25 से 30 हजार रुपये की लागत आती है. हमलोग बाजार से नाव बनाने के सभी सामानों की खरीदारी कर घर लाकर अपने हाथों से नाव बनाकर उसका दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं. गांव के अधिकांश लोगों ने नाव बनाने की कला अपने पुरखों से सीखा है. गांव में 50 वर्षों से भी अधिक समय से नाव का उपयोग होता रहा है. नाव की सहायता से करते हैं सभी काम तीर बलुआ गांव के ही रहने वाले जय प्रकाश सहानी ने न्यूज़ 18 लोकल को बताया कि हमलोगों ने अपने उपयोग के लिए नाव रखा हुआ है. इसके सहारे हम मवेशियों के लिए घास-फूस, चारा, मछली पकड़ने का काम करते हैं. साथ ही बाढ़ में बचाव के लिए भी नाव उपयोग में लाते हैं. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: Bihar flood, Bihar News in hindi, Boat, OMG News, Siwan newsFIRST PUBLISHED : October 19, 2022, 19:22 IST