असल यंग्री यंग मैन हैं सलीम-जावेद अपने हक के लिए किया था दबंग जैसा काम

फिल्म जगत की बेहद शानदार जोड़ियों में सलीम जावेद रहे हैं. इन पर एक डॉक्यू सीरीज एंग्री यंग मैन भी आ गई है. शब्दों से जादू रचने वाले ये शानदार लेखक सिर्फ लिखते ही नहीं थे अपने हक के लिए दबंग की तरह लड़े भी.

असल यंग्री यंग मैन हैं सलीम-जावेद अपने हक के लिए किया था दबंग जैसा काम
टेलीविजन आने से पहले तक बहुत सारे सिनेप्रेमी लेखक सलीम जावेद को एक ही आदमी का नाम मानते रहे. था भी कुछ ऐसा. इन दोनो लेखकों ने मिल क बारह साल के दौर में हिंदी सिनेमा को नयी पहचान दे दी. इससे पहले अदाकार की अपनी अदायगी ही फिल्म का सबसे अहम हिस्सा होती थी. इस जोड़ी ने कहानी और डॉयलॉग्स को भी हीरो के मुकाम तक पहुंचा दिया. बहुत सी फिल्मों के एकाध डॉयलॉग दर्शकों को याद रह जाते हैं, लेकिन जंजीर और शोले ये उन फिल्मों में शुमार हैं जिनके तकरीबन सभी डॉयलॉग लोगों के जेहन में नक्श से हो गए. इन दोनों के शानदार काम और इंस्पायर करने वाले जीवन पर डॉक्यू सीरीज कही जाने एक डॉक्यूमेंट्री ‘एंग्री यंग मैन’ के नाम से अभी रीलीज हुई है. अपने बूते बनाया मुकाम हर्फों के इस जादूगर जोड़ी ने अपने बूते मुकाम बनाया था. मुफलिसी में गुजारा करके बेहतरीन कहानियां और डॉयलॉग्स दिए. तो अपनी पहचान की खातिर दबंगई भी दिखाई थी. हुआ यूं था कि उस दौर में फिल्म के पोस्टर्स पर लेखकों के नाम नहीं होते थे. प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर के वक्त की बात है. इन दोनो को ये बात चुभ गई. इन्हे लगा कि फिल्म से जुड़े दूसरे कलाकारों की ही तरह इनके नाम भी फिल्म में होना ही चाहिए. पोस्टर्स रीलीज हो गए थे. उस दौर में पोस्टर्स हाथ से बनाए जाते थे. उन पर नाम वगैरह सब लिखा जाता था. लिहाजा अब कुछ हो ही नहीं सकता था. फिर भी सलीम जावेद की हमेशा जीतने वाली जोड़ी ने हार नहीं मानी. इन्होंने कुछ पेंटरों को रोजदारी पर हायर किया. उनसे उस वक्त के बाम्बे शहर भर में अपने पोस्टरों पर अपने नाम सलीम-जावेद ने लेखक के तौर पर अपने नाम लिखवा दिए. अगले दिन प्रकाश मेहरा और दूसरे फिल्मकारों ने ये देखा तो उनकी समझ में आया कि लेखक के नाम पर भी पोस्टर पर होने चाहिए. सफलता की गारंटी माने जाते रहे हालांकि जंजीर की सफलता के बाद तो मान लिया गया कि सलीम जावेद फिल्म की सफलता की गारंटी है. शोले ने जो किया वो इतिहास है. दिगर बात है कि आगे चल कर ये जोड़ी टूट गई. फिर भी 1970 से 80 की शुरुआत तक तकरीबन 12 साल इस जोड़ी ने फिल्मों में राज किया. तकरीबन 24 फिल्में इस जोड़ी ने दी. इसमें 20 बेहद सफल रहीं. इनके स्क्रिप्ट का मतलब फिल्म का सफल होना माना जाता रहा. डॉन, त्रिशूल और काला पत्थर ने जो कामयाबी हासिल की उसे अब तक की फिल्में नहीं छू सकी है. इनकी कहानियां प्रभावी होने के साथ डॉयलॉग इस कदर असरदार थे कि लोगों को अब तक नहीं भूले हैं. ….. शाम आए तो कह देना छेनू आया था, या फिर ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं…. Tags: Javed akhtar, Salim KhanFIRST PUBLISHED : August 20, 2024, 16:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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