अंखियों से तो गोली चल सकती है लेकिन रिवॉल्वर गिरी और गोली चल गई

फिल्म अभिनेता गोविंदा को गोली लगने के बाद अब उनकी हालत ठीक बताई जा रही है. बताया जा रहा है कि गोली उसी रिवॉल्वर से चली है, जिसे वे अपने पास रखे हुए थे. लेकिन, विशेषज्ञ इस बात पर सहमत नहीं हैं कि गोली गिरने की वजह से चली है.

अंखियों से तो गोली चल सकती है लेकिन रिवॉल्वर गिरी और गोली चल गई
अखियों से गोली मारने वाले अभिनेता को रिवॉल्वर की गोली लग गई. प्रशंसक निश्चित तौर पर दुखी हुए होंगे. बहरहाल अब वे ठीक बताए जा रहे हैं. अस्पताल में हैं और जल्द ही छुट्टी भी मिल जाएगी, लेकिन एक बड़ा सवाल ये खड़ा हो गया कि आखिर ये गोली चल कैसे गई. जानकारों की मानें तो रिवॉल्वर गिरने से तो गोली चल ही नहीं सकती. हां, पिस्टल के बारे में कुछ संदेश है. पिस्टल अगर लोडेड हो, मतलब कि उसके चैंबर में गोली भरी हो और हैमर चढ़ा हुआ हो तो गिरने पर कुछ स्थितियों में गोली चल सकती है. अगर पिस्टल पूरी तरह ठीक ठाक है, तो गिरने पर उससे गोली नहीं चलेगी. हां, अगर बहुत पुरानी हो और उसके हैमर की स्प्रिंग ठीली पड़ गई हो तो गोली चल सकती है. क्या कहते हैं जानकार उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर पुलिस उप अधीक्षक डी के शर्मा कहते हैं – “मैंने अपनी पूरी सर्विस में ऐसी घटना नहीं देखी जब रिवॉल्वर गिरी हो और उससे गोली चल जाए.” वे और साफ करते हुए बताते हैं कि रिवॉल्वर में चर्खी होती है. उस चर्खी को चलाने के साथ गोली को फायर करने के लिए चोट करने वाले हैमर को चलाने में अच्छी भली ताकत लगती है. इस कारण ट्रिगर दबाने में काफी दबाव देना होता है. हां, पिस्टल के लिए कुछ लोग बताते हैं कि लोडेड और चार्ज्ड होने पर उसके पिस्टल से गोली चल गई हो. जानकार बताते हैं कि ठीक-ठाक पिस्टल को चार्ज करके भी फेंकने पर वो फायर नहीं होती. यानी उससे गोली नहीं चलती. रिवॉल्वर की बात की जाय तो इसे ये नाम ही इस कारण से मिला है कि इसमें गोलियां एक चर्खी में भरी जाती है. यही चर्खी हर बार ट्रिगर दबाने पर घूम कर गोली को हैमर के सामने ले आती है. फिर हैमर गोली के टिप पर प्रहार करता है. उसी से बारुद में आग लगती है और प्रेशर के साथ गोली में भरा रांगा या दूसरी धातुएं तेजी से जा कर निशाने तक चोट करती है. यानी रिवॉल्वर का नाम ही इसी चक्कर लेने वाली चर्खी के चक्कर में ही पड़ा. ट्रिगर दबाने में भी अच्छा भला प्रेशर चाहिए एक वर्तमान पुलिस अधिकारी ने भी इसकी पुष्टि की कि रिवॉल्वर से गोली नहीं चल सकती. सेवा में होने के कारण अपना नाम न छापने की शर्त पर वे बताते हैं -“छोटे बच्चे को रिवॉल्वर दे दिया जाय तो वो दोनों हाथों की तर्जनी लगाने के बाद भी रिवॉल्वर को फायर नहीं कर सकता, क्योंकि हैमर को पीछे ले जाने और चर्खी को चलाने भर की ताकत उसकी उंगलियों में नहीं होती.” ऐसे में भरी हुई रिवॉल्वर के गिरने पर उससे गोली चलने की बात हजम नहीं होती. हां, अगर हैमर की स्प्रिंग बहुत ही कमजोर हो तो उसी स्थिति में हैमर गोली पर प्रहार कर सकता है, जब उसे हाथ से खीच कर पीछे कर दिया गया हो. जैसा फिल्मों में लोग करते हैं पहले हैमर चढ़ाते हैं. फिर गोली दागते हैं. हैमर को पीछे खीच कर गोविंदा रखे हों ये बात भी समझ से परे है, क्योंकि रिवॉल्वर में ये करने की कत्तई जरूरत नहीं होती. ट्रिगर दबाने पर हैमर पीछे जाएगा और चर्खी घूमेगी. फिर उसी दबाव से हैमर का पिन गोली पर झटके से प्रहार कर देगा. इसके अलावा रिवॉल्वर का कोई और मैकनिज्म नहीं होता. हां ये सब रोकने के लिए एक सैफ्टी लॉक सभी असलहों में लगा रहता है. अगर वो लॉक खुला भी हो तो सारी प्रक्रिया उंगलियों से करनी ही होगी. यानी बिना उंगली के कुछ नहीं होगा. ये भी पढ़ें :Mithun Chakraborty: आधी फिल्में फ्लॉप रहीं, फिर भी नहीं हुई काम की कमी, गली-मोहल्ले वालों के बने रहे हीरो असलहों के प्रकार और उनके चलने का तरीका मोटे तौर पर असलहे तीन तरह के होते हैं. एक जिनमें बार-बार गोली भर के फायर किया जाए. जैसे मस्केट, बंदूक या फिर अवैध किस्म के कट्टे. जिनकी नाल में सीधे गोली भरी जाती है और हैमर खींच कर फायर कर दिया जाता है. फिर अगली बार गोली भरनी होगी और वही प्रक्रिया दोहरानी होगी. इसी में एक और प्रकार के वे हथियार होते हैं जिनमें मैगजीन हो और उसमें कई गोलियां भरी जाएं, लेकिन हर बार फायर करने के लिए हैमर चार्ज करना हो, फिर कारतूस का खोखा निकालना हो. दूसरे तरह के वे हथियार होते हैं जो एक बार चार्ज कर दिए जाएं तो मैगजिन में जितनी गोली हो उतनी बार उसे फायर किया जा सकता है. खोखा निकालने और अगली गोली चार्ज करने का काम असलहा खुद कर लेता है. ये सेमी ऑटोमेटिक कहलाते हैं. तीसरी तरह के वे असलहे होते हैं जिनमें मैगजीन में गोली डालने के बाद एक बार चार्ज किया जाता है लेकिन एक ही बार में ट्रिगर दबाने पर सारी गोलियां एक साथ निकल जाएगी. भारत में बार बार चार्ज करने और फायर करने वाले या फिर सेमी ऑटोमेटिक वाले असलहों के ही लाइसेंस मिलते हैं. ऑटोमेटिक हथियारों का इस्तेमाल सिर्फ सेना और सुरक्षा बल ही करते हैं. पिस्टल ज्यादातर सेमी ऑटोमेटिक कैटेगरी में आता है, जबकि रिवॉल्वर की कैटेगरी अलहदा ही है. इन्हें चार्ज करने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन चर्खी में जितनी गोलियां हो उन्हें एक एक कर तब तक फायर किया जा सकता है जब तक चर्खी की गोली खत्म न हो जाएं. चर्खी में 5 या 7 गोलियां हो सकती हैं. फिलहाल, देश में कानपुर ऑर्डिनेंस फैक्टरी की बनी हुई रिवॉल्वर और पिस्टल ही लोग खरीद रहे हैं क्योंकि विदेशी हथियार अब देश में आयात किए ही नहीं जा रहे. कानपुर की रिवॉल्वर और पिस्टल में सुरक्षा की बहुत सारे उपाय लगाए गए हैं. Tags: Bollywood actors, GovindaFIRST PUBLISHED : October 1, 2024, 14:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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