चुनाव 5 साल में आते हैं लेकिन लिट्टी सालों-साल पकती रहती है राजनीति जैसी!
चुनाव 5 साल में आते हैं लेकिन लिट्टी सालों-साल पकती रहती है राजनीति जैसी!
जैसे देश की राजनीति पूर्वांचल के बिना अधूरी है, उसी तरह पूर्वांचन की बात भी लिट्टी-चोखा के बिना अधूरी है. राजनीति और लिट्टी-चोखा में भी बहुत कुछ समानता है. लिट्टी चोखा बनाने के लिए कई तरह की वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है, बिल्कुल गठबंधन की राजनीति की तरह.
उपलों का ढेर करीने से लगा है. बल्कि कहिए कि सजा हुआ है. नीचे कपूर की गोलियां भी दिख रही हैं. माचिस से रगड़ती हुई तीली आती है और कपूर भक्क से जल उठता है. धीमे-धीमे उपलों से धुआं निकलने लगता है. और थोड़ी-सी मेहनत के बाद कपूर से निकली लौ उपलों को सुलगाने लगती है. देखते ही देखते उपलों का ढेर धधकने लगता है. आग सुलगाने की कोशिश कर रहे लोग धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं.
एक व्यक्ति आटा गूंथ रहा है. आटे में चुटकी भर नमक के साथ ही भरपूर मोइन पड़ा है. पानी कम से कम और मेहनत ज्यादा से ज्यादा. एक व्यक्ति सत्तू का मसाला तैयार कर रहा है. नमक, लाल मिर्च, अजवाइन, मंगरेला, अचार का तेल, लहसन, हरी मिर्च, नींबू, हरा धनिया और ढेर सारा घी मिलाया जा रहा है. लिट्टी की तैयारी हो रही है. मोइन और कम पानी से सने टाइट आटे से लिट्टी ज्यादा भुरभुरी बनती है.
धधकती आग की लपटें धीमे-धीमे नीचे आ रही है. एक व्यक्ति ने तख्ता हाथ में रखा है. आग बिठाने की कोशिश कर रहा है. आग को धीमे-धीमे दबा रहा है. राख उभर कर सामने आने लगी है. आटे में सत्तू भरा जा चुका है. एक-एक कर राख पर रखे जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. कुछ ही मिनटों में उपले की राख लिट्टी से भर चुकी है. एक के बाद एक लिट्टी को उलटना-पलटना भी चल रहा है. इससे किसी हिस्से में आंच ज्यादा नहीं लगती. पूरी लिट्टी एक ही जैसी सिकती-पकती है.
बाजू में ही बैंगन और आलू भी रखे हैं. बैंगन इसी आंच पर पकना है, जबकि आलू उबाले गये हैं. इससे चोखा तैयार किया जाना है. प्याज कटी हुई है. लहुसन को भी धीमी आंच पर सेंक लिया गया है. लाल खड़ी मिर्च को भी भूना गया है. आग पर पकी हुई लाल खड़ी मिर्च चोखे का स्वाद दोगुना कर देती है.
करीब-करीब सब तैयार है. (ये दृश्य 22 साल पुराना है.) बस अब लिट्टी पकने का इंतजार है.
लेकिन इंतजार उतना लंबा नहीं, जितना लंबा चुनाव चल रहा है. जी हां. आप पूर्वांचल में हैं. लिट्टी की याद ही चुनाव के बहाने आई है. चुनाव चलते रहते हैं. लोकसभा-विधानसभा के चुनाव 5 साल के बाद ही होते हैं. लेकिन लिट्टी सदाबहार है. साल भर पकती है. जैसे कोई साजिश पक रही हो! धीमी आंच पर धीमे-धीमे पकती रहती है.
लिट्टी वाले इलाकों की 21 लोकसभा सीटों पर आखिरी चरण में वोटिंग होनी है. कुल 278 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर 144 उम्मीदवार और पड़ोसी राज्य बिहार की 8 सीटों पर 134 उम्मीदवार मैदान में हैं.
वैसे तो आखिरी चरण में 1 जून, शनिवार को देश के 8 राज्यों की 57 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. कुल 904 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. ये दौर महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे लंबे चुनाव के आखिरी दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी भी है. और अभिनेता से नेता बने रवि किशन शुक्ला की गोरखपुर भी, जो पहले योगी आदित्यनाथ के नाम से ही जानी जाती थी. इसके अलावा कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर, रॉबर्ट्सगंज और महाराजगंज पर भी 1 जून को ही वोट पड़ेंगे.
वहीं बिहार की जिन 8 सीटों पर 1 जून को ही मतदान होना है, उनमें आरा, बक्सर, सासाराम, काराकाट, नालंदा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, और जहानाबाद सीटें हैं. इन सीटों पर 134 उम्मीदवार मैदान में हैं.
अभी सारे उम्मीदवार भी 1 जून का इंतजार कर रहे हैं. 1 के बाद फिर 4 जून का भी करेंगे.
राजधानी पटना के लिट्टी-चोखे की तारीफ अभिनेता आमिर खान भी कर चुके हैं. 2019 में दिल्ली में लगे मेले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लिट्टी का स्वाद चख चुके हैं. मोदी वाराणसी से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. बनारस जाने वाला कोई भी यात्री बिना लिट्टी-चोखा खाए वापस नहीं आता. आप कभी पूर्वांचल की ओर जाएं तो इस स्वाद को लुत्फ उठाना ना भूलें. याद रखिएगा, चुनाव 5 साल में आते हैं, लेकिन लिट्टी सदाबहार है. साल भर पकती रहती है. साजिश जैसी. चुनाव में होने वाली साजिशों जैसी.
Tags: Bihar News, Gorakhpur news, Loksabha Elections, Varanasi newsFIRST PUBLISHED : May 28, 2024, 17:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed