गाज़ियाबाद के डॉक्टर चाचू है कमाल! बच्चो की बीमारी ही नहीं गरीबी और निरक्षरता का भी करते है इलाज

गाज़ियाबाद के डॉक्टर भार्गव न केवल बच्चों का इलाज करते हैं बल्कि बच्चों के लिए संस्था स्पर्श भी चलाते है. इस संस्था के माध्यम से गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता है. ऐसे बच्चे जो शिक्षा हासिल नहीं कर पाते है उनको स्कूल में दाखिला भी दिलाते है.

गाज़ियाबाद के डॉक्टर चाचू है कमाल! बच्चो की बीमारी ही नहीं  गरीबी और निरक्षरता का भी करते है इलाज
विशाल झा /गाज़ियाबाद :गाज़ियाबाद के सचिन भार्गव लगभग 20 वर्षो से भी ज्यादा समय से चिकित्सा के पेशे में है. पीडियाट्रिक होने के कारण छोटे बच्चों के प्रति इनका खास लगाव है. सिर्फ लगाव के कारण ही इनके पास आने वाले मरीज इनको डॉक्टर साहब नहीं बल्कि चाचू बुलाते है. वैशाली सेक्टर -4 में डॉ भार्गव नामक क्लीनिक में बच्चों के इलाज के अलावा भी अपनी संस्था स्पर्श के माध्यम से उनका भविष्य सुधारने का कार्य कर रहे है. छोटे बच्चों को मजदूरी करता देख आया था ख्याल, आज कई बच्चों का भविष्य बन रहा सुनहरा डॉ भार्गव बताते है कि जब वह गाजियाबाद 2005 में आए थे तब वैशाली के इस क्षेत्र में काफी तेजी से कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. जिसमें कम करने के लिए दूर- दराज से काफी मजदूर आए थे. जब दोपहर में उनके मां-बाप मेहनत मजदूरी करते थे तो बच्चे ऐसे ही घूमते रहते थे. उनको देखकर ख्याल आया कि उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य के कार्य करना काफी जरूरी है. परेशानी की बात यह थी कि उस वक़्त इलाके में कोई सरकारी डिस्पेंसरी नहीं थी और इलाज के लिए गाजियाबाद शहर जाना पड़ता था.तब आसपास के कुछ डॉक्टर ने मिलकर निर्णय लिया की सबको जब भी अपनी प्रैक्टिस के बीच समय मिलेगा तो विभिन्न डॉक्टर विभिन्न एरिया में जाकर इलाज करेंगे थे और निशुल्क हेल्थ चेकअप कैंप आयोजित करेंगे. इस कैंप से कई बच्चो की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ का पता लगना शुरु हो गया जैसे किसी बच्चे में खून की कमी थी तो उसे दवाई देना, आयरन का सिरप देना. कुछ बच्चों को खाने पीने की आदत सही नहीं थी, तो उन्हें उसके लिए जागरूक करना, हाइजीन का ध्यान रखना आदि चीज़े इन बच्चो के बीच पहुंचाई गयी. शुरुआत में कम डॉक्टर जुड़े थे फिर धीरे-धीरे ईएनटी सर्जन, फिजिशियन, आई स्पेशलिस्ट ऐसे तमाम डॉक्टर जुड़ते चले गए. रोजाना दातों की सफाई के लिए अपनाया था ये तरीका डॉ भार्गव बताते है की स्लम में ज्यादातर बच्चे टूथ-ब्रश इस्तेमाल नहीं करते थे और उनके दांतों में कीड़ा लग जाता था. एक कीड़ा धीरे-धीरे उनकी सभी दांतो को खराब करता था. फिर ऐसे बच्चों को काउंसलिंग की जाती थी. बच्चों को टूथ-ब्रश और पेस्ट दिया जाता था और सुबह- शाम दातों की सफाई के लिए उन्हें बताया समझाया जाता था. बच्चों के अंदर ओरल हाइजीन को बढ़ावा देने के लिए उन बच्चों को तोहफा दिया जाता था जो रोजाना ही ब्रश करते थे. ओरल हाइजीन के अलावा भी रोज नहाने, समय पर नाखून काटने और अन्य बुनियादी चीजों के बारे में भी बताया गया. स्पर्श विद्यालय में बच्चो को दी जाती है शिक्षा भार्गव के मुताबिक वर्ष 2006 से ही गरीब बच्चो को पढ़ाने का काम किया जा रहा है. इस वक़्त स्पर्श सोसाइटी से 100 से ज्यादा स्कूल गाजियाबाद -नोएडा के जुड़े हुए है. जो बच्चे आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण विद्यालय नहीं जा पाते थे आज उन सभी के कंधो पर स्कूली बस्ते है, हाथों में कलम है. इन छात्रों में एक वर्ग ऐसा भी है जो उम्र में बड़े हो गए है. लेकिन दुर्भाग्य से वो कभी स्कूल नहीं गए. ऐसे बच्चों में भी पढ़ाई का सामंजस्य बिठाने के लिए उनको पढ़ाया जाता है और फिर जब विद्यार्थी बेसिक शिक्षा के स्तर को समझ जाता है. उसके बाद उनके आसपास के मौजूद सरकारी स्कूल में उनका दाखिला दिलवा के उनको आगे की पढ़ाई करवाते है. पिछले वर्ष 130 बच्चों ने स्पर्श पाठशाला में एडमिशन लिया जिनमें से 50 बच्चों का डिफरेंट स्कूल में एडमिशन कराया गया. कुछ ऐसी भी लड़कियां है जो बड़ी हो गई है और अब पढ़ने में रूचि नहीं है. ऐसी छात्राओं को हम सिलाई सेंटर में सिलाई सिखाते है.इसके अलावा स्पर्श विद्यालय में कंप्यूटर सेंटर भी मौजूद है जहां बच्चों को तकिनीकी तौर पर मजबूत किया जा रहा है. नजदीकी से देखा है गरीब मरीजों का जीवन हरियाणा के गुड़गांव स्थित छोटे से गांव हेली मंडी से निकल कर डॉक्टर भार्गव आज कई बच्चो का जीवन सवार रहे है. गांव में केवल दसवीं तक स्कूल था. ऐसे में आगे की पढ़ाई को साइंस स्ट्रीम से रखने के लिए गांव से बाहर हिसार जाना पड़ा. फिर सीपीएमटी परीक्षा क्लियर करने के बाद वर्ष 1999 में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंस से एम.बी.बी.एस की पढ़ाई की फिर मौलाना आजाद कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन पीडियाट्रिक में 2003 में किया. इसके बाद स्वामी दयानंद अस्पताल में 3 साल प्रैक्टिस की, इस दौरान समाज के गरीब तबके के मरीजों से रोजाना मिलना हुआ.तब ही सोच लिया था की प्रैक्टिस के साथ-साथ उन लोगों के लिए कुछ कर सकूं और मैं सौभाग्यशाली रहा कि मुझे अपने कुछ ऐसा साथियों का साथ मिला जो इसी तरह सोचते थे. फिर हम लोगों ने अपना छोटा सा ग्रुप बनाकर स्पर्श पाठशाला की शुरुआत की. जब संस्था शुरू हुयी थी तब सिर्फ तीन- चार लोग थे लेकिन जैसे-जैसे लोगों को पता लगता गया. अब इसमें पेंशन वाले, रिटायर्ड पर्सन, आर्मी और कई प्रकार के लोग जुड़ गए है. Tags: Local18, Medical18FIRST PUBLISHED : May 16, 2024, 14:34 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed