मेक इन इंडिया की कामयाबी देख ललचा रहे कई देश जर्मनी तो हाथ जोड़कर खड़ा
मेक इन इंडिया की कामयाबी देख ललचा रहे कई देश जर्मनी तो हाथ जोड़कर खड़ा
जर्मनी के चांसलर और स्पेन के राष्ट्रपति यूं ही नहीं भारत आए, इसके पीछे एक बड़ी डिफेंस स्ट्रैटजी थी. उन्हें भारत हथियारों का एक उभरता हुआ मार्केट नजर आ रहा है. जहां वह हथियार बनाकर बेच सकेंगे. आइए जानते हैं इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी.
भारत अपनी जरूरतों के लिए हथियार खुद बनाने में जुटा है. ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम के जरिए विदेशी कंपनियों को बुलाया जा रहा है कि आएं और हमारी जरूरत की चीजें यहीं बनाएं. अब मेक इन इंडिया की कामयाबी देखकर कई देश ललचा रहे हैं. वे भारत में अपनी फैक्ट्रियां लगाना चाहते हैं. अपने हथियार यहां बनाना चाहते हैं. जर्मनी इस कतार में कई वर्षों से खड़ा है. ये वही जर्मनी है, जब भारत को अपने जोरावर टैंकों के लिए इंजन की जरूरत थी, तो इतना हीलाहवाली की कि आखिर में नहीं हीं मिल पाया. अब वही अपने सबमरीन बेचना चाहता है. इतना ही नहीं, यूपी डिफेंस कॉरिडोर में भी जगह चाहता है, ताकि उसकी कंपनियां यहां काम कर सकें.
जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज जब 25 अक्टूबर को भारत आए तो उनकी कोशिशें यही थीं. ठीक उसी वक्त दो जर्मनी नौसिक जहाज गोवा के तट पर इंडियन नेवी के साथ एक्सरसाइज कर रहे थे. जर्मनी इंडो पैसिफिक में तैनाती चाहता है, ताकि चीन के खतरे से निपटा जा सके. लेकिन वह भारत के साथ काफी अच्छा रिश्ता चाहता है. उसने अपने स्ट्रैटजिक पेपर में ‘फोकस ऑन इंडिया’ पर पूरा का पूरा एक अध्याय लिखा हुआ है. उसका तीन मकसद है, भारत के साथ ज्वाइंट एक्सरसाइज, ज्यादा मिलिट्री ट्रेनिंग और गुरुग्राम के काउंसलेट में जर्मन अफसर की तैनाती. जर्मनी का इरादा भारत को हथियार आपूर्ति में भरोसेमंद सहयोगी बनना है, ताकि रूस पर भारत की निर्भरता को खत्म किया जा सके. जर्मनी की सरकार भारत के लिए हथियारों का बाजार खोल रही है. बाधाएं हटा रही है.
दूर कर दी सारी बाधाएं
यूरेशिएन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को जब अपने नए हल्के टैंक जोरावर के लिए इंजन चाहिए था, तो लाइसेंसिंग की दिक्कत बताकर जर्मनी ने देने से इनकार कर दिया. अब इस तरह की लगभग सभी बाधाएं खत्म कर दी गई हैं. 2023-24 में जर्मनी ने भारत को 166 मिलियन डॉलर के डिफेंस सिस्टम इंडिया को बेचे. भारत जर्मनी के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन वे और हथियार बेचना चाहते हैं. उसकी सबसे पहली कोशिश भारत के P 75 प्रोजक्ट का हिस्सा बनना है. जर्मनी 6 अत्याधुनिक API सबमरीन बेचना चाहता है, लेकिन भारत अब उसे भाव नहीं दे रहा है. 10 साल से यह प्रोजेक्ट अटका हुआ है. पहले इसके लिए 6 दावेदार थे, लेकिन अब सिर्फ जर्मनी की कंपनी ThyssenKrupp Marine Systems (TKMS) और स्पेन की Navantia ही बच गई हैं.
जर्मनी-स्पेन में टक्कर
दिलचस्प बात ये है कि शोल्ज की यात्रा के तुरंत बाद स्पेन के पीएम भी भारत आ गए. उनका देश भी सबमरीन बेचना चाहता है, लेकिन उनकी कोशिश जर्मनी से आगे निकल गई. क्योंकि उनके दौरे में भारत ने वो कर दिखाया, जिसकी वर्षों से उम्मीद की जा रही थी. स्पेन की कंपनी के साथ भारतीय कंपनी टाटा का करार हुआ. और अब भारत में c295 aircraft बनाएंगे. वहीं, जर्मनी यह देखकर हाथ मलता रह गया. दिलचस्प बात है कि जर्मनी की TKMS भारत की मझगांव डॉक लिमिटेड के साथ काम कर रही है. जबकि स्पेनिश कंपनी L&T के साथ जुड़ी हुई है. अब भारत को सबमरीन के लिए इन दोनों देशों में से एक को चुनना होगा.
जापान कोरिया सबसे आगे
जर्मनी यूपी और तमिलनाडु के डिफेंस कॉरिडोर में रुचि दिखा रहा है. वह चाहता है कि उसकी कंपनियां यहां आकर भारतीय कंपनियों के साथ काम करें. ज्वाइंट स्टेटमेंट में भी इसके बारे में कहा गया है. लेकिन जापानी और कोरियाई कंपनियां काफी एक्टिव रहती हैं, हमेशा भारत के राज्य सरकारों के साथ संपर्क में रहती हैं, जो उन्हें फायदा पहुंचा देता है. वहीं, जर्मनी की कंपनियां थोड़ी लापरवाह नजर आती हैं. इसका उदाहरण है कि जापान और कोरिया पहले से ही नोएडा के जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट में काफी काम कर रही हैं. लेकिन जर्मनी ने अब तक इसके बारे में बात आगे नहीं बढ़ाई है.
Tags: Defence Companies, India Defence, Indian Army latest news, Indian Army newsFIRST PUBLISHED : November 4, 2024, 19:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed