इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान विमान हवा में ही क्यों गिरा देते हैं फ्यूल

fuel Dumping in Emergency Landing: कभी-कभी ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जब पायलट को हवा में उड़ते हुए ही विमान का सारा तेल गिराना पड़ता है. इस प्रक्रिया को फ्यूल डंपिंग कहते हैं. आपातकालीन लैंडिंग के लिए यह करना बहुत जरूरी है, फ्यूल डंपिंग के बिना यह मुमकिन नहीं है.

इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान विमान हवा में ही क्यों गिरा देते हैं फ्यूल
fuel Dumping in Emergency Landing: हवाई यात्रा में विमान चालकों को कई बार आपातकालीन स्थितियों का सामना करना पड़ता है. कभी-कभी ऐसी स्थितियां भी आती हैं जब पायलट को हवा में उड़ते हुए ही विमान का सारा तेल गिराना पड़ता है, यानी फ्यूल डंप करना होता है. हालांकि, ऐसा करने की नौबत बहुत कम आती है, लेकिन इमरजेंसी के दौरान ऐसा करना पड़ता है. ऐसे में पहली बात जो जेहन में आती है वो यह है कि जब किसी विमान से तेल आसमान में ही गिराया जाता है तो वो जाता कहां होगा? आइए समझते हैं कि ऐसी नौबत कब आती है. मान लीजिए एअर इंडिया की दिल्ली से सिडनी तक की एक नियमित नॉनस्टाप फ्लाइट जा रही है. उसे दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टी-3 टर्मिनल से दोपहर 2.20 बजे उड़कर अगले दिन सुबह 8.20 बजे सिडनी पहुंचना है. लगभग 10420 किमी की दूरी उसे 18 घंटे में तय करनी है. लेकिन फ्लाइट के टेकऑफ के तुरंत बाद ही अचानक यह लंबी दूरी की फ्लाइट मुश्किल में फंस जाती है. क्योंकि धमकी मिली कि इस फ्लाइट में विस्फोट रखा हुआ है. इसकी वजह से फ्लाइट नंबर ए-1 302 के चालक दल के सामने तुरंत फैसला लेने के हालात बन गए. ये भी पढ़ें- Explainer: जहरीली शराब पीने से लोग अंधे हो जाते हैं? जानें कौन सा केमिकल इसका जिम्मेदार चालक दल के पास तत्काल इमरजेंसी लैंडिंग के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इसके लिए उसे रूट बदलकर किसी नजदीकी एयरपोर्ट पर उतरना होगा. लेकिन चालक दल के सामने एक समस्या है. अमूमन ऐसी फ्लाइट के लिए बोइंग 777 का प्रयोग किया जाता है. जो यात्रियों, सामान और कार्गों के तौर पर करीब 340-250 टन वजन ले जाता है. जो विमान की अधिकतम क्षमता 250 टन से काफी ज्यादा है. सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए चालक दल को एक महत्वपूर्ण काम करना पड़ेगा. उन्हें विमान के वजन को जल्दी से कम करने की जरूरत होगी. इसके लिए फ्यूल डंपिंग का सहारा लिया जाएगा. क्योंकि उसके बिना आपातकालीन लैंडिंग मुमकिन नहीं है. इमरजेंसी में ईंधन डंपिंग जरूरी जाहिर है कि एविएशन की दुनिया में सुरक्षा सर्वोपरि है. ईंधन डंपिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया जिसको आपातकालीन स्थितियों के दौरान बड़े विमानों द्वारा किया जाता है. यह प्रक्रिया, हालांकि तेल की बर्बादी लगती है, लेकिन सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करने और यात्रियों और चालक दल दोनों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. विमान को टेकऑफ और लैंडिंग के लिए विशिष्ट वजन सीमा के साथ डिजाइन किया गया है. अधिकतम लैंडिंग भार आमतौर पर अधिकतम टेकऑफ भार से कम होता है. क्योंकि एक भारी विमान के टचडाउन पर नुकसान सहने की आशंका अधिक होती है. ये भी पढ़ें- कैसे रशियन हीरोइन बनी आंध्र के डिप्टी सीएम की तीसरी बीवी, कैसी है लव स्टोरी तीन हाथियों के वजन के बराबर होता है फ्यूल लंबी दूरी की उड़ानों में विमान अक्सर पर्याप्त ईंधन भार के साथ उड़ान भरते हैं. कभी-कभी 5,000 गैलन तक यानी  तीन हाथियों के वजन के बराबर. जब किसी आपातस्थिति में टेकऑफ के तुरंत बाद आपातकालीन लैंडिंग की जरूरत होती है, तो पायलटों को विमान का वजन तुरंत कम करने की आवश्यकता हो सकती है. यहीं पर ईंधन डंपिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है  जिसे आधिकारिक तौर पर फ्यूल जेटीसन के रूप में जाना जाता है.  . इस प्रक्रिया में उड़ान के दौरान विमान के पंखों से अतिरिक्त ईंधन छोड़ना शामिल है, जिससे यह वायुमंडल में वाष्पीकृत हो जाता है. क्या होता है जेटीसन सिस्टम फ्यूल जेटीसन सिस्टम से लैस आधुनिक विमान प्रति सेकंड हजारों लीटर ईंधन डंप कर सकते हैं. इन प्रणालियों में आम तौर पर पंपों और वाल्वों की एक सीरीज शामिल होती है जो ईंधन को विंगटिप्स के पास स्थित नोजल की ओर मोड़ती है. सिस्टम को सक्रिय करना अक्सर कॉकपिट में स्विच को फ्लिप करने जितना आसान होता है. ईंधन डंपिंग कोई सामान्य घटना नहीं है और यह उन स्थितियों के लिए रिजर्व है जहां समय बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे मेडिकल इमरजेंसी. जब संभव हो, पायलट विमान का अतिरिक्त ईंधन जलाने के लिए अतिरिक्त चक्कर लगाने का विकल्प चुन सकते हैं, लेकिन इसमें काफी अधिक समय लगता है. ये भी पढ़ें- Explainer: कौन हैं वो यूपी के पूर्व सीएम, जिनके नाम पर था स्टेडियम, अब बदलने पर हुआ विवाद कहां जाता है डंप किया गया ईंधन आमतौर पर 6,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर यह प्रक्रिया करके ईंधन डंपिंग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जाता है. इतनी ऊंचाई पर डंप किया गया अधिकांश ईंधन जमीन तक पहुंचने से पहले ही वाष्पित हो जाता है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी विमानों में ईंधन डंप करने की क्षमता नहीं होती है. बोइंग 737 या एयरबस ए320 जैसे छोटे, पतले डिजाइन वाले विमानों को उनके अधिकतम टेकऑफ वजन के करीब वजन पर उतरने के लिए डिजाइन किया गया है. हालांकि, बोइंग 777 और 747 जैसे बड़े चौड़े बॉडी वाले विमान टेकऑफ और लैंडिंग के बीच महत्वपूर्ण वजन अंतर के कारण ईंधन जेटिसन सिस्टम से लैस हैं. ये भी पढ़ें- Explainer: कैसे लद्दाख पर मंडरा रहा क्लाइमेट चेंज का खतरा, किस समस्या से जूझ रहा यह केंद्र शासित प्रदेश  हालांकि मौजूदा ईंधन कीमतों को देखते हुए ईंधन डंपिंग एक खराब विचार लग सकता है. लेकिन यह विमानन में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय बना हुआ है. आपातकालीन स्थितियों में विमान के वजन को तुरंत कम करके, यह प्रक्रिया सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करने में मदद करता है और विमान में सवार लोगों के जीवन की जान बचाने का काम करता है. Tags: Aviation News, Civil aviation sector, Emergency landing, International flights, Plane accidentFIRST PUBLISHED : October 24, 2024, 14:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed