किस कांग्रेसी पीएम ने भी लिया आर्थिक तौर आरक्षण का फैसला हुआ था कोर्ट से खारिज
किस कांग्रेसी पीएम ने भी लिया आर्थिक तौर आरक्षण का फैसला हुआ था कोर्ट से खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर सवर्ण गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण को सही ठहराया है. हालांकि कोर्ट में ये फैसला सर्वसम्मति से जजों ने नहीं किया है. जानते हैं कि क्या ये फैसला और अब तक क्या रहा है आरक्षण का दायरा. कांग्रेस और दूसरी पार्टियों ने कब कब इसके लिए कोशिश की है.
हाइलाइट्स1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया थाइस आरक्षण का फायदा ऐसे लोगों को मिलेगा जिसकी कमाई सलाना 8 लाख से कम संविधान में अनुच्छेद 15 और 16 के तहत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान
आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुहर लगा दी. इसका फायदा सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मिलेगा. 05 न्यायाधीशों में 03 ने इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन यानि ईडब्ल्यूएस (EWS) रिजर्वेशन पर सरकार के फैसले को सही माना. हालांकि कुछ साल पहले कांग्रेसी प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने भी ये कदम उठाया था लेकिन तब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया था.
एनडीए सरकार ने वर्ष 2019 के आम चुनावों से पहले आर्थिक रूप से पिछड़े ऊंची जाति के लोगों को नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की घोषणा को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में ये फैसला आसानी से नहीं हुआ. मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और रविंद्र भट इसके खिलाफ थे तो तीन जज फेवर में . लिहाजा अब सरकार इसको लागू कर सकती है. इसका फायदा ऐसे लोगों को मिलेगा जिसकी कमाई सालाना 8 लाख से कम है. इससे पहले गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग को वो नेता भी जायज ठहरा चुके हैं, जो खुद पिछड़ों की राजनीति करते रहे हैं.
भारत में आरक्षण की व्यवस्था अभी क्या
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, बशर्ते, ये साबित किया जा सके कि वे औरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं. इसे तय करने के लिए कोई भी राज्य अपने यहां पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करके अलग-अलग वर्गों की सामाजिक स्थिति की जानकारी ले सकता है.
तो क्या अब आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो जाएगा
ये देखने वाली बात होगी क्योंकि 103वें संविधान संशोधन के मुताबिक आरक्षण का कुल दायरा किसी भी हालत में 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक आम तौर पर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता.
अभी फिलहाल आरक्षण की स्थिति क्या है
आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था के तहत एससी के लिए 15, एसटी के लिए 7.5 व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण है. अब अगर ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण मिला तो कुल आरक्षण 60 फीसदी हो जाएगा. केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा.
कब पहले उठा है सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा
1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया.
बीजेपी ने 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया. हालांकि इसका फायदा नहीं हुआ. वाजपेयी सरकार 2004 का चुनाव हार गई. साल 2006 में कांग्रेस ने भी एक कमेटी बनाई जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
नरसिंह राव सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख था
1991 में जब पीवी नरसिंह राव सरकार ने आर्थिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण देने का प्रस्ताव किया था तो सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ ने उसे खारिज कर दिया था.
तब कोर्ट ने अपने फैसले में साफ़ कहा था, “संविधान में आरक्षण का प्रावधान सामाजिक गैर-बराबरी दूर करने के मकसद से रखा गया है, लिहाजा इसका इस्तेमाल गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तौर पर नहीं किया जा सकता”.
इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के नाम से चर्चित इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना संविधान में वर्णित समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है. फैसले में आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में आरक्षण का प्रावधान समुदाय के लिए है, न कि व्यक्ति के लिए. आरक्षण का आधार आय और संपत्ति को नहीं माना जा सकता”.
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान सभा में दिए गए डॉ. आंबेडकर के बयान का हवाला देते हुए सामाजिक बराबरी और अवसरों की समानता को सर्वोपरि बताया था.
क्या राज्य सरकारों ने ऐसी कोई कोशिश की थी
दरअसल राजस्थान, गुजरात, हरियाणा जैसे राज्यों की सरकारों ने भी इस तरह का आरक्षण करने की कोशिश की थी, जिसको उन राज्यों की हाई कोर्टों ने तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट की रोशनी में खारिज कर दिया था.
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Tags: Economic Reform, Reservation, Reservation in jobs, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : November 07, 2022, 17:27 IST