लालू ने अपनी आत्मकथा में क्या लिखा छोटा भाई नीतीश के बारे में क्यों कहा ऋणी हूं
लालू ने अपनी आत्मकथा में क्या लिखा छोटा भाई नीतीश के बारे में क्यों कहा ऋणी हूं
बिहार में फिर नीतीश कुमार और लालू यादव ने हाथ मिला लिये हैं. फिर जेडीयू और आरजेडी मिलकर सरकार बना रहे हैं. लालू प्रसाद यादव और नीतीश के बीच दोस्ती और कटुता के रिश्ते रहे हैं. दोनों किसी जमाने में गहरे दोस्त रहे फिर सियासी दुश्मन बन गए. फिर मिलकर सरकार बनाई और सरकार से आरजेडी को बाहर भी किया लेकिन एक बार फिर लालू और नीतीश फिर करीब नजर आ रहे हैं.
हाइलाइट्सलालू यादव और नीतीश कुमार की सियासी दोस्ती और दुश्मनी का सफर लंबा हैलालू ने अपनी आत्मकथा में नीतीश कुमार की तारीफ भी की और आलोचना भीलालू और नीतीश दोनों 70 के दशक में जेपी आंदोलन की उपज हैं
बिहार में पुराने दोस्त यानि पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव और बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर करीब आ गए हैं. दोनों की पार्टियों यानि जनता दल यूनाइटेड और आरजेडी ने हाथ मिलाकर फिर बिहार में सरकार बना ली है. लालू और नीतीश के बीच सियासी दोस्ती और दुश्मनी का लंबा सफर रहा है. दोनों एक दूसरे पर तीर भी चलाते हैं और तारीफ भी करते हैं. दोनों एक दूसरे के पारिवारिक आयोजनों में भी शामिल होते हैं. पिछले दिनों लालू की आत्मकथा “गोपालगंज से रायसीना ” प्रकाशित हुई. ये खासी चर्चित भी रही. खूब बिकी भी. इसमें उन्होंने बेबाकी से अपने सियासी सफर और उस दौरान सामने आईं बातों का बेबाकी से वर्णन किया. यूं तो उन्होंने इस किताब में तमाम बातों का जिक्र किया है लेकिन एक पूरा अध्याय बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर है.
लालू की आत्मकथा के अध्याय 11 का शीर्षक है छोटा भाई नीतीश. वो लिखते हैं, “नीतीश से मेरी पहली मुलाकात हमारे आंदोलन के दिनों में हुई थी. समाजवादी सरोकारों की लड़ाई में वह साथी कार्यकर्ता थे. उनसे हुई मुलाकात की मुझे बहुत याद नहीं है, क्योंकि तब वह इंजीनियरिंग कालेज के एक छात्र ही थे. जबकि मैं पूरी तरह राजनीतिक कार्यकर्ता बन चुका था. उस समय वह एक सामान्य और अनजान से व्यक्ति के रूप में नजर आए थे और मैं बिहार में समाजवादी आंदोलन का अग्रणी युवा चेहरा था.”
मैं इस मामले में नीतीश का ऋणी हूं
वो लिखते हैं, “मैं उनका इस मामले में ऋणी हूं कि जब कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद बिहार विधानसभा में मैने विपक्ष के नेता के रूप में अपना दावा पेश किया था तो उन्होंने मेरा समर्थन किया था. लेकिन समय के साथ वह बदल गए. वैचारिक तौर पर वो ढुलमुल हो गए. इसके बाद वो जार्ज फर्नांडिस के खेमे में चले गए. इसके बाद खबरें आईं कि उनका अपने गुरु के साथ रिश्ता अच्छा नहीं रहा. बाद में उन्होंने भाजपा से गठजोड़ कर लिया. कई बरसों की साझीदारी के बाद उस पार्टी से भी किनारा कर लिया. इसके बाद उन्होंने हमारे साथ यानि राजद के साथ गठबंधन किया. हाल ही में उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया. वह भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए में लौट गए.”
लालू ने आत्मकथा में लिखा उनकी पहली मुलाकात नीतीश कुमार से तब हुई जब वो इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्र थे (फाइल फोटो)
तब नीतीश ने मुझको फोन किया
इस आत्मकथा में उन्होंने लिखा, “वर्ष 2014 का चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने नीतीश के जद यू में तोड़फोड़ की, जिससे जून 2014 में हुए राज्यसभा के उपचुनावों में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों पवन के वर्मा और गुलाम रसूल बलियावी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं. उन्होंने मुझको फोन किया और अपने उम्मीदवारों की जितवाने के लिए अपनी पार्टी का समर्थन मांगा, राजद विधायकों ने वर्मा और बलियावी के पक्ष में मतदान किया, जिससे वो जीत गए.”
नीतीश और मोदी के संबंधों पर
ये बात कोई छिपी नहीं है कि वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री रहते नीतीश एनडीए खेमे में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े प्रशंसक थे. नीतीश और मोदी अच्छे दोस्त बन गए. कुल मिलाकर मोदी के बचाव में वह आडवाणी जैसे लोगों के साथ ही थे और ये सुनिश्चित कराया कि वह मुख्यमंत्री बने रहें. मैं तो उनका मुख्य विरोधी था और नीतीश बिहार में मेरा कद कम करना चाहते थे-भले ही इसके लिए उन्हें सिद्धांत के मामले में भारी समझौते करने पड़े-ऐसे में उनसे ये उम्मीद करना बेकार था कि वह गुजरात की हिंसा के बारे में कुछ बोलेंगे. इसके अलावा 1999 में रेल मंत्री बनने के बाद नीतीश ने भाजपा के कट्टरवादियों से नाता जोड़ लिया था.
अभी तो मैं जवान हूं
उन्होंने अपनी किताब के उपसंहार का शीर्षक यही दिया है. उसमें उन्होंने शुरुआत में आडवाणी की रैली और बाबरी मस्जिद ध्वंस का जिक्र करते हुए लिखा, ये देश के लिए ठीक नहीं हुआ. फिर इसी में आगे लिखा, “मैं महाभारत भी पढ़ रहा हूं और भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षा को समझने की कोशिश कर रहा हूं. मैं भगवान कृष्ण के यदुवंशी गोत्र से आता हूं.”
लालू यादव की आत्मकथा गोपालगंज से रायसीना चर्चित आत्मकथाओं में रही है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन और फलसफे का विस्तार से लिखा है
इससे मुझे ताकत मिलती है
आगे कहा, “भगवान कृष्ण के बारे में मुझे जो बात सबसे ज्यादा प्रेरित करती है, वो ये कि उन्होंने जेल से बाहर आने के बाद असुरों और अत्याचारी राजा कंस का नाश किया था. उन्होंने बुराई का प्रतिनिधित्व करने वाले कौरवों को परास्त करने के लिए अच्छाई का प्रतिनिधित्व करने वाले पांडवों की अगुवाई की थी. मैं अंबेडकर और मंडेला के जीवन के बारे में भी पढ़ रहा हूं. जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी नस्लवाद और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करते हुए बहुत कष्ट सहे थे. अंबेडकर और मंडेला को जितना पढ़ता हूं, सामंतवाद और सांप्रदायिकता से लड़ने की मुझे और ताकत मिलती है.”
मैं तब लोगों की भावनाओं से अभिभूत हो जाता हूं
आत्मकथा की आखिरी लाइनों में वो लिखते हैं, मैं डॉक्टरों के बताए प्रिसक्रिप्शन के आधार पर दवाएं लेता हूं. लेकिन मुझे लोगों से मिले प्यार और लगाव से असली ताकत मिलती है. अस्पताल या जेल से बाहर आने पर जब मैं ये देखता हूं कि मुझे देखने और मुझसे मिलने के लिए हजारों लोग इंतजार कर रहे हैं, तो मैं ऊर्जा से भर जाता हूं. लोगों की भावनाओं से अभिभूत हो जाता हूं.
सबकुछ ईश्वर के हाथ में है
आत्मकथा का आखिरी पैरे में वो लिखते हैं, “जीवन ईश्वर के हाथ में है, वही तय करता है कि हमें कब तक जीना है और कब यहां से जाना है. मेरे जीवन का दर्शन है कि अपना कर्म करते रहो.”
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Tags: Bihar politics, Chief Minister Nitish Kumar, Jdu, Lalu Prasad Yadav, Nitish kumar, RJDFIRST PUBLISHED : August 10, 2022, 11:40 IST