जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आर आर स्वैन ने रविवार को कहा कि राज्य में आतंकवादियों की मदद करने वालों पर ‘शत्रु एजेंट अधिनियिम, 2005’ (Enemy Agents Ordinance, 2005) के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि देश के दुश्मनों की मदद करने वालों को भी दुश्मन की तरह ही ट्रीट करना चाहिए. तो आखिर क्या है एनिमी एजेंट ऑर्डिनेंस? जो UAPA से भी कठोर माना जाता है. समझते हैं इस Explainer में…
क्या है एनिमी एजेंट आर्डनेन्स?
जम्मू-कश्मीर का एनिमी एजेंट ऑर्डिनेंस या शत्रु एजेंट अध्यादेश सबसे पहले साल 1917 में राज्य के तत्कालीन डोगरा महाराजा द्वारा लाया गया था. इसे ‘अध्यादेश’ के रूप में इसलिये जाना जाता है, क्योंकि डोगरा शासन के दौरान बनाए गए कानूनों को अध्यादेश कहा जाता था. साल 1947 में जब देश आजाद हुआ और देसी रियासतों का भारत में विलय हुआ तो इस अध्यादेश को भी भारतीय कानून में शामिल कर लिया गया.
370 हटा तो भी कानून बरकरार रहा
साल 2019 में जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जे वाला आर्टिकल 370 हटाया तो राज्य के कानून में भी तमाम बदलाव हुए. जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट पास हुआ. इसमें राज्य के कुछ पुराने कानून को जस का तस रखा गया. जबकि कुछ कानून या तो बदल दिए गए या तो पूरी तरह खत्म कर दिए गए. सरकार ने एनिमी एजेंट ऑर्डिनेंस एंड पब्लिक सेफ्टी एक्ट को बरकरार रखा.
क्या है एजेंट की परिभाषा?
इस कानून (Enemy Agents Ordinance) में कहा गया है, ‘कोई भी शख्स जो देश के दुश्मनों की मदद करता है, उनके साथ मिलकर भारत के खिलाफ साजिश रचता है, किसी भी तरह की मदद करता पाया जाता है, सुरक्षा बलों या सैनिकों की जिंदगी खतरे में डालता है, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर संबंध रखता है, वह एजेंट की कैटेगरी में आएगा..’
कैसे होता है ट्रायल?
एनिमी एजेंट ऑर्डिनेंस के तहत ट्रायल एक स्पेशल जज के अंडर होता है. उस जज की नियुक्ति सरकार हाईकोर्ट की सलाह से करती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के तहत ट्रायल के दौरान आरोपी खुद को डिफेंड करने के लिए वकील की मदद नहीं ले सकता, जब तक कि उसे कोर्ट ने परमिशन न दी हो.
क्यों UAPA से कठोर?
इस कानून में स्पेशल जज के फैसले के खिलाफ अपील करने का कोई प्रावधान नहीं है. कानून के मुताबिक स्पेशल जज के फैसले की समीक्षा सिर्फ सरकार द्वारा हाईकोर्ट से चुना गया जज ही कर सकता है. उसका फैसला आखिरी माना जाएगा.
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दोषी साबित होने पर सजा?
कानून (Enemy Agents Ordinance) में कहा गया है कि दुश्मन का एजेंट साबित होने अथवा दोषी करार दिये जाने के बाद आरोपी को मौत की सजा अथवा सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है. साथ ही कड़े जुर्माने का भी प्रावधान है.
मकबूल भट्ट के खिलाफ मुकदमा
इस कानून के तहत पहले तमाम आरोपियों पर मुकदमा चल चुका है. उदाहरण के तौर पर जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के फाउंडर मकबूल भट्ट (Maqbool Bhat). जिसे 11 फरवरी 1984 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी.
Tags: Jammu kashmirFIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 13:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed