क्या है अनुच्छेद 142 जिसके तहत SC ने कपल का कराया तालाक क्यों लिया यह फैसला
क्या है अनुच्छेद 142 जिसके तहत SC ने कपल का कराया तालाक क्यों लिया यह फैसला
What is Article 142: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुच्छेद 142 का उपयोग करके एक तालाक पर फैसला सुनाया है. यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अधिकार देता है. आइए अनुच्छेद 142 के बारे में डिटेल में जानते हैं.
नई दिल्ली: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 एक ऐसा प्रावधान है जिसमें सुप्रीम कोर्ट कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं. इस अनुच्छेद के जरिए जिन मामलों में अभी तक कोई कानून नहीं बना है, उन मामलों में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है. हालांकि यह फैसला संविधान का उल्लंघन करने वाला ना हो. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ही फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति के बीच विवाह को रद्द कर दिया और पति को आदेश दिया कि वह अपने नाबालिग बच्चों के लिए अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवाए, जो पिछले छह सालों से अपनी मां के साथ रह रहे हैं.
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क्या है अनुच्छेद 142?
आसान शब्दों में कहें तो यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अधिकार देता है. यह न्यायालय को कानून के अनुसार ऐसा कोई भी आदेश देने की अनुमति देता है जो न्याय के हित में हो. यह अनुच्छेद न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि न्यायालय किसी भी मामले में अपनी समझ के अनुसार फैसला ले सकता है. इस अनुच्छेद का मुख्य उद्देश्य पूर्ण न्याय सुनिश्चित करना है. यह अनुच्छेद न्यायालय को विभिन्न परिस्थितियों में लचीलापन प्रदान करता है.
क्यों महत्वपूर्ण है अनुच्छेद?
इस अनुच्छेद का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है कि यह अनुच्छेद न्याय के सिद्धांत का संरक्षण करता है. कई मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस अनुच्छेद का उपयोग सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए किया है. यह अनुच्छेद कानून में सुधार लाने में भी मदद करता है.
क्या है मामला?
जूही पोरिया नी जावलकर और प्रदीप पोरिया को तलाक देते हुए जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां के इस आदेश के पीछे तर्क यह था कि हालांकि एक गैर-दलित महिला विवाह के माध्यम से अनुसूचित जाति समुदाय की सदस्यता प्राप्त नहीं कर सकती है, लेकिन अनुसूचित जाति के व्यक्ति से पैदा हुए उसके बच्चे अनुसूचित जाति के टैग के हकदार होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में इस सिद्धांत को दोहराया है और 2018 में फैसला सुनाया था, “इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और अनुसूचित जाति (समुदाय) के व्यक्ति के साथ विवाह करके जाति नहीं बदली जा सकती है. केवल इसलिए कि उसका पति अनुसूचित जाति समुदाय से है, उसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है.
वर्तमान केस में, बच्चे – 11 वर्षीय बेटा और छह वर्षीय बेटी – पिछले छह सालों से रायपुर में अपने माता-पिता के घर पर गैर-दलित महिला के साथ रह रहे हैं, जो कपल के अलगाव की अवधि है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाक दिए जाने के साथ, बच्चों को गैर-दलित घर में पाला-पोसा जाएगा और फिर भी उन्हें सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और रोजगार के उद्देश्य से अनुसूचित जाति माना जाएगा.
जस्टिस कांत की अगुवाई वाली पीठ ने पति से कहा कि वह संबंधित अधिकारियों से संपर्क करे और छह महीने के भीतर दोनों बच्चों के लिए एससी प्रमाण पत्र प्राप्त करे. इसने कहा कि वह स्नातकोत्तर तक उनकी शिक्षा का सारा खर्च वहन करेगा, जिसमें प्रवेश और ट्यूशन फीस के साथ-साथ बोर्डिंग और लॉजिंग खर्च भी शामिल है.
यह महिला और बच्चों के आजीवन भरण-पोषण के लिए एकमुश्त समझौते के रूप में पुरुष द्वारा महिला को दिए गए 42 लाख रुपये के अतिरिक्त है. इसके अलावा, पति रायपुर में अपनी ज़मीन का एक प्लॉट भी महिला को देगा. दिलचस्प बात यह है कि पीठ ने अलग रह रहे दंपति के बीच हुए समझौते में एक प्रावधान को भी प्रभावी कर दिया है, जिसके तहत पति को अगले साल 31 अगस्त तक अपनी पत्नी को निजी इस्तेमाल के लिए दोपहिया वाहन खरीदना होगा. पीठ ने एक-दूसरे के खिलाफ़ दर्ज क्रॉस-एफआईआर और मामलों को भी रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने महिला को निर्देश दिया कि वह बच्चों को समय-समय पर उनके पिता से मिलवाए, उन्हें छुट्टी पर ले जाने दे और उनके बीच अच्छे संबंध बनाए.
Tags: Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : December 6, 2024, 10:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed