हाइलाइट्सअंबाला जेल में सूरज निकलने से पहले ही गोडसे और आप्टे को दी जा चुकी थी फांसी और हो गया था अंतिम संस्कार फिर नदी अस्थियों का विसर्जन बहुत गुप्त तरीके से इस तरह किया गया कि ये किसी को किसी हालत में नहीं मिल सकेंफरवरी 1949 में दोनों को सुना दी गई थी फांसी का सजा जो बहाल रही
महात्मा गांधी के हत्या में शामिल नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 में फांसी हो गई थी. उन्हें अंबाला सेंट्रल जेल में अल सुबह फंदे पर लटका दिया गया.
इस बारे में करन थापर में हिंदुस्तान टाइम्स में एक लंबा लेख भी लिखा था. उन्होंने अंबाला के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से तब मौजूद एक शख्स से बात करके इसे लिखा था कि उस दिन अंबाला जेल में क्या हुआ था.
तब डीएम और स्टाफ को मौजूद रहना पड़ता था
उन दिनों जब फांसी दी जाती थी तो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और उनके कार्यालय के सारे स्टाफ को वहां मौजूद रहना होता था. यही लोग फांसी के बाद मृत्यु की तस्दीक करते थे और फिर पार्थिव शरीर का उस सूरत में अंतिम संस्कार जबकि शव को परिजनों को नहीं सौंपा जाना होता था या कोई परिजन शव लेने नहीं आता था. आपके शहर से (अंबाला) हरियाणा उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ हिमाचल प्रदेश महाराष्ट्र पंजाब अंबाला अंबाला करनाल कुरुक्षेत्र कैथल चरखी दादरी गुड़गांव चंडीगढ़ जींद झज्जर पंचकुला पानीपत पलवल फतेहाबाद फरीदाबाद भिवानी महेंद्रगढ़ मेवात यमुनानगर रेवाड़ी रोहतक सिरसा सोनीपत हिसार
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अंतिम संस्कार और विसर्जन भी इसी स्टाफ ने किया
यही नहीं जिलाधिकारी स्टाफ को अस्थियों को इकट्ठा करके उसका विसर्जन भी करना होता था. वो फांसी की सजा पाये दोषियों से उनकी इच्छा पूछता था और इसे रिकार्ड भी करता था. गोडसे और आप्टे के मामले में थापर को ऐसा ही एक प्रत्यक्षदर्शी मिला, जिसने सबकुछ अपनी आंखों से देखा था. यहां तक कि इसी प्रत्यक्षदर्शी से नेहरू और पटेल को भी ये जानकारी दी गई कि क्या कैसा हुआ था.
क्या थी उस दिन गोडसे और आप्टे की हालत
15 नवंबर को उन्हें तड़के सूरज निकलने से पहले ही अंबाला सेंट्रल जेल के अंदर फांसी दे दी गई. जब प्रत्यक्षदर्शी ने फांसी से पहले जेल की कोठरी में गोडसे को पुकारा तो वह कुछ गमगीन था जबकि उसकी तुलना में आप्टे कहीं मजबूत लग रहा था. गोडसे की आवाज कुछ कमजोर लग रही थी. हालांकि बाद में गोडसे ने फांसी के तख्ते की ओर बढ़ते हुए नारे भी लगाये.
नारे जो गोडसे और आप्टे ने लगाए
राबर्ट पेन की किताब “द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी” कहती है आप्टे जेल में आदर्श कैदी की तरह था. जेल में उसने भारतीय चिंतन पर एक किताब भी लिखी. 15 नवंबर को जब अंबाला जेल में फांसी दी जाने वाली थी, तब आप्टे शांत और अपने आपमें मगन था. फांसी की ओर जाते हुए गोडसे तो अखंड भारत के नारे लगा रहा था तो आप्टे और मजबूत आवाज में अमर रहे कहकर उसका साथ दे रहा था. आप्टे जब अमर रहे कह रहा था तो उसकी आवाज ज्यादा दमदार थी. हालांकि इसके अलावा दोनों ही काफी शांत थे.
फिर फंदे पर लटकाया गया
दोनो ठीक एक ही समय फांसी पर लटकाया गया. आप्टे की मृत्यु तुरंत हो गई लेकिन गोडसे को कुछ समय लगा. ये प्रत्यक्षदर्शी बाद में उस टीम का सदस्य भी था जिसने दोनों की मृत्यु को सत्यापित किया. हालांकि इसे देखना आसान नहीं था क्योंकि ये दृश्य कई दिनों तक जेहन में आते रहे.
तुरंत अंतिम संस्कार के थे निर्देश
मृत्यु के कुछ ही घंटों के अंदर अंबाला जेल में अंदर ही दोनों का अंतिम संस्कार जिलाधिकारी स्टाफ ने ही किया. इसके लिए दिल्ली से खास निर्देश आए थे कि इसे फांसी के जल्द बाद कर दिया जाए. इसी टीम ने फिर दोनों की अस्थियां बटोरीं. फिर इसे एक बख्तरबंद वाहन गंघार नदी में ले जाकर विसर्जित किया गया. इस वाहन के साथ एक पुलिस का वाहन भी सुरक्षा में साथ गया था.
अस्थियां भी गुपचुप प्रवाहित की गईं
जब अस्थियां प्रवाहित की गईं तो उसमें भी कोशिश की गई कि कोई उन्हें देख नहीं रहा हो और ना कोई वहां मौजूद हो. लिहाजा पहले वाहन नदी के पास पहुंचा और फिर वहां से आगे बढ़ गया. फिर वापस लौटा. वो ऐसी धार की ओर पहुंचे जहां से अस्थियां कोई बटोरना भी चाहे तो नहीं बटोर पाए. ये नदी की ऐसी जगह थी जहां जाना और उसे याद कर पाना शायद इस टीम के किसी भी सदस्य के लिए संभव नहीं था.
10 फरवरी 1949 को सुनाई गई थी सजा
गांधीजी की हत्या के मामले में 10 फरवरी 1949 के दिन विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी. नौ आरोपियों एक को बरी कर दिया. बरी होने वाले थे विनायक दामोदर सावरकर. बाकी आठ लोगों को गांधीजी की हत्या, साजिश रचने और हिंसा के मामलों में सजा सुनाई गई. दो लोगों नाथूराम गोडसे और हरि नारायण आप्टे को फांसी की सजा मिली. इसके अलावा अन्य छह लोगों को आजीवन कारावास, जिसमें नाथूराम गोडसे का भाई गोपाल गोडसे भी शामिल था.
क्या वो वाकई ब्रिटिश खुफिया एजेंट था
1966 में जब सरकार ने दोबारा गांधी हत्या मामले को खोला तो जस्टिस जेएल कपूर की अगुवाई में जांच कमीशन का गठन किया गया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में आप्टे के बारे में कहा कि वो ऐसा शख्स था, जिसकी सही पहचान को लेकर शक है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में उसे भारतीय वायुसेना का पूर्व कर्मी भी बताया.
क्या चौथी गोली आप्टे की थी
इसी रिपोर्ट के बिना पर जब अभिनव भारत मुंबई नाम की संस्था ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर से जानकारी मांगी. तो उन्होंने कहा कि विभिन्न स्तरों पर की गई छानबीन के बाद रिकॉर्ड बताते हैं कि आप्टे कभी एयरफोर्स में नहीं रहा. बाद में अभिनव भारत के प्रमुख डॉक्टर पंकज फडनिस ने कहा कि उनकी रिसर्च कहती है कि आप्टे ब्रिटिश खुफिया एजेंसी फोर्स 136 का सदस्य था. गांधीजी पर तीन गोलियां तो गोडसे के रिवाल्वर से निकली थीं लेकिन चौथी गोली आप्टे ने चलाई थी.
विकीपीडिया के अनुसार आप्टे आकर्षक व्यक्तित्व का शख्स था, उसने बांबे यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद कई तरह के काम किए. इसमें टीचिंग भी शामिल थी. वो ऐसे परिवार से था, जिसकी पुणे में संस्कृत विद्वानों के ब्राह्मण परिवार के रूप में धाक थी.
वैवाहिक जीवन अच्छा था
नारायण आप्टे ने 1939 में अहमदनगर में टीचर की नौकरी करने के दौरान हिंदू महासभा के साथ खुद को जोड़ा था. फिर अपनी पारिवारिक स्थितियों के काऱण उसे पुणे के अपने पुश्तैनी घर में संयुक्त परिवार की देखभाल के लौटना पड़ा. उसकी पत्नी भी पुणे के असरदार परिवार से थी. दोनों का वैवाहिक जीवन अच्छा बताया जाता है. उसका एक बेटा भी था, जिसकी तबीयत खराब ही रहती थी.
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Tags: Ambala news, Mahatma gandhi, Nathuram GodseFIRST PUBLISHED : November 15, 2022, 16:47 IST