1 रुपये के चंदे और एक जिद से कैसे बना वो मेमोरियल जहां जा रहे PM मोदी
1 रुपये के चंदे और एक जिद से कैसे बना वो मेमोरियल जहां जा रहे PM मोदी
उस वक्त तमिलनाडु में कांग्रेस की सरकार थी और एम. भक्तवत्सलम (M. Bhaktavatsalam) मुख्यमंत्री हुआ करते थे. जब उनसे मेमोरियल के लिए मदद मांगी गई तो उन्होंने साफ मना कर दिया. यही रुख केंद्रीय सांस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर का था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार अभियान खत्म होने के बाद 30 मई को कन्याकुमारी जाएंगे. यहां विवेकानंद शिला स्मारक (Vivekananda Rock Memorial) के ‘ध्यान मंडपम’ में 1 जून तक ध्यान-साधना करेंगे. मेमोरियल ठीक उसी जगह बना है, जहां 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद ने लगातार तीन दिनों तक साधना की थी.
कैसे बना विवेकानंद रॉक मेमोरियल
60 के दशक तक तक यहां शिला ही हुआ करती थी. साल 1963 में जब स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी मनाई जा रही थी, तब कन्याकुमारी के कुछ स्थानीय लोगों ने शिला के पास एक स्मारक बनाने का मन बनाया. हालांकि उन्हें खास सफलता नहीं मिल पाई. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर से संपर्क किया. गोलवलकर ने आरएसएस के प्रचारक एकनाथ रानाडे को स्मारक निर्माण का जिम्मा सौंपा.
एकनाथ रानाडे (Eknath Ranade) अपनी किताब Story of Vivekananda Rock Memorial में लिखते हैं कि उस वक्त तमिलनाडु में कांग्रेस की सरकार थी और एम. भक्तवत्सलम (M. Bhaktavatsalam) मुख्यमंत्री हुआ करते थे. जब उनसे मेमोरियल के लिए मदद मांगी तो साफ मना कर दिया. यही रुख केंद्रीय सांस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर का था…’ रानाडे ने इसके बाद भी हार नहीं मानी. वह दिल्ली आ गए और लाल बहादुर शास्त्री से मिले.
लाल बहादुर शास्त्री ने रानाडे से कहा, ‘मैं बहुत धीरे चलने वाला व्यक्ति हूं, पर आपको रास्ता सुझा सकता हूं. अगर पर विवेकानंद शिला स्मारक के लिए जनमत तैयार कर लें तो इससे सरकार पर दबाव पड़ेगा. इसकी शुरुआत सांसदों से कर सकते हैं…’ उन दिनों संसद का सत्र चल रहा था. एकनाथ रानाडे फौरन अपने काम में जुट गए और अगले तीन दिन के अंदर 323 सांसदों से मिलकर उनसे सिग्नेचर करा लिया. जिसमें कांग्रेस से लेकर लेफ्ट जैसी पार्टियों के सांसद भी शामिल थे. इसके बाद रानाडे वापस शास्त्री के पास पहुंचे और उन्होंने हामी भर दी.
पैसे की दिक्कत
रानाडे अपनी किताब में लिखते हैं कि स्मारक के लिए मंजूरी तो मिल गई, लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या थी वो पैसे की थी. उन्होंने चंदा जुटाने का मन बनाया. शुरुआत देश के मुख्यमंत्रियों से की. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला से लेकर नागालैंड के सीएम होकिशे सेमा ने मदद किया. उन दिनों पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री हुआ करते थे.
ज्योति बसु का इनकार
रानाडे को उम्मीद थी कि चूंकि स्वामी विवेकानंद बंगाल के ही रहने वाले थे, इसलिये बंगाल सरकार मदद से पीछे नहीं हटेगी. पर ज्योति बसु ने साफ कहा- ‘मेरा विवेकानंद जी से कोई संबंध नहीं है. लेफ्ट पार्टी का सदस्यता होने के कारण मदद नहीं कर सकता..’ इसके बाद रानाडे ज्योति बसु की पत्नी कमला बसु से मिले और वह मदद को तैयार हो गईं. स्मारक के लिए 1100 रुपए जुटाकर दिया.
30 लाख लोगों ने दिया चंदा
विवेकानंद केंद्र के मुताबिक शिला के लिए करीब सभी राज्य सरकारों ने 1-1 लाख का दान दिया. पर सबसे महत्वपूर्ण बात है आम लोगों का चंदा. एकनाथ रानाडे गांव-गांव तक गए और लोगों से कहा कि वे एक रुपये से लेकर अधिकतम 5 रुपये का चंदा दे सकते हैं. कुल 30 लाख लोगों ने चंदा दिया. इस तरह स्मारक का निर्माण शुरू हो गया. 2 सितंबर 1970 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने इसका उद्घाटन किया. दो महीने चले समारोह में शिरकत करने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी गईं.
क्या-क्या होता है यहां?
जनवरी 1972 में ‘विवेकानंद केंद्र’ नाम के एक संगठन की स्थापना हुई. जो विवेकानंद शिला स्मारक (Vivekananda Rock Memorial) को मैनेज करता है. यह संगठन कन्याकुमारी में योग शिविर से लेकर स्प्रिचुअल रिट्रीट जैसे कार्यक्रम आयोजित करता है. इसके अलावा देश भर में तमाम स्कूल भी संचालित करता है. पूर्वोत्तर भारत में वहां की संस्कृति और विरासत के लिए भी काम कर रहा है.
Tags: 2024 Loksabha Election, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Swami vivekananda, TamilnaduFIRST PUBLISHED : May 29, 2024, 12:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed