शिवसेना की कहानी भाग 04 : सियासी तौर पर अब पार्टी सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में
शिवसेना की कहानी भाग 04 : सियासी तौर पर अब पार्टी सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में
शिवसेना की कहानी के पहले 03 भागों में आपने पढ़ा कि किस तरह बाल ठाकरे ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर 19 जून 1966 को मुंबई के शिवाजी पार्क में इस संगठन की आधारशिला रखी. फिर वो मुंबई और महाराष्ट्र में जड़े मजबूत करते गए. शिवसेना को कांग्रेस से भी फायदा मिला और बीजेपी से भी लेकिन अब शिवसेना जहां खड़ी है, वहां से आगे का रास्ता ही इसका भविष्य तय करने वाला है
56 साल पहले बनी शिवसेना की सरकार महाराष्ट्र में गिर चुकी है. 09 दिनों के नाटकीय घटनाक्रम के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया. इसके साथ महा विकास अगाड़ी गठबंधन सत्ता से बाहर हो गया. अब इसके बाद फ्लोर टेस्ट की जरूरत ही नहीं रह गई. वैसे शिवसेना अपने 05 दशक से कहीं ज्यादा समय की सियासी यात्रा में इतना तगड़ा शायद कभी लगा हो, जैसा इस बार शिवसेना के दोफाड़ होने के साथ ही सत्ता से बाहर होने पर लगा है. निश्चित तौर पर शिवसेना के सियासी भविष्य पर इसने एक बड़ा सवाल लगाया है.
जब अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए तो शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. तब शिवसेना को 56 और बीजेपी को 106 सीटें मिलीं थीं लेकिन ये गठबंधन इसलिए टूटा, क्योंकि शिवसेना हर हालत में मुख्यमंत्री की गद्दी चाहती थी. इसी बिना पर शिवसेना ने कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी क्रांति पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन बनाया, जिसकी कुल ताकत 169 विधायकों की थी.
उद्धव ठाकरे की सरकार ढाई साल से कुछ ज्यादा चल पाई. महाराष्ट्र में चुनाव को अभी 02 साल से कुछ ज्यादा बचे हैं. शिवसेना को अब फिर जनता के बीच जाना होगा. तब ये देखना दिलचस्प होगा कि जनता उसे किस तरह समर्थन देती है.
एक जमाने में जब बाल ठाकरे जिंदा थे तो राज ठाकरे शिवसेना के दमदार नेता थे. अपने चाचा ठाकरे के दाएं हाथ लेकिन जब पार्टी के सियासी वारिस की बात आई तो बाल ठाकरे ने भतीजे की बजाए बेटे उद्धव को तरजीह दी. बस यहीं से पार्टी में दरार पड़नी शुरू हो गई. ठाकरे के जिंदा रहते ही राज ठाकरे शिव सेना से अलग हो गए.
एक जमाने में माना जाता था कि शिवसेना में बाल ठाकरे के बाद उनके राजनीतिक वारिस भतीजे राज होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तब बाल ठाकरे ने बेटे उद्धव को वारिस बनाया, इसके बाद परिवार में भी सियासी दरार पड़ गई. (एएनआई)
राज ठाकरे ने अलग होकर महाराष्ट्र निर्माण सेना बनाई. लेकिन ऐसा लगता है कि जनता ने उन्हें नकार दिया. पत्तकार सुनील गाताडे कहते हैं कि राजनीति में डायलागबाजी नहीं होतीं. दोपहर दो बजे अखबार के संपादक अरुण लाल कहते हैं, राज के बर्ताव से उनके अपने ही लोग उनसे दूर हो जाते हैं. उनके व्यवहार को लेकर शिकायतें रही हैं. मनसे के लिए आगे की राह बहुत मुश्किल है. यहां तक की मुंबई में बीएमसी चुनावों में ही उन्हें तगड़ा झटका लगा.
शिवसेना में करिश्माई नेताओं का अभाव
बात सही है कि उनके पास करिश्माई नेताओं का अभाव है, क्योंकि शिवसेना आमतौर पर एक परिवार द्वारा संचालित पार्टी है. ये साफ नजर आने लगा है कि उद्धव ठाकरे के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे आदित्य ठाकरे के हाथों में होगी, जो महा विकास अगाड़ी गठबंधन सरकार में मंत्री भी थे.
अगले चुनावों में होगी सबसे बड़ी परीक्षा
हालांकि शिव सेना को अगले चुनावों में सबसे बड़ी परीक्षा देनी होगी. जबकि वो बीजेपी के बगैर अकेले चुनाव लड़ेगी. साथ ही उसे उन नेताओं का भी सामना करना पड़ेगा, जो उससे टूटकर अलग हो गए.
शिव सेना में फिलहाल अगर ठाकरे परिवार को निकाल दें तो उनके पास करिश्माई नेताओं का अभाव है. ये हमेशा से परिवार द्वारा संचालित पार्टी रही है. उसकी सबसे बड़ी चुनौती अगला चुनाव होगा. शिवसेना से बड़े पैमाने पर दोफाड़ होने से निश्चित तौर पर उसकी ताकत पर तो असर पड़ेगा ही.
चुनावों में उसका गठबंधन कांग्रेस और राकांपा से भी नहीं होने वाला. हालांकि कहना चाहिए कि मुख्यमंत्री के तौर पर लोग उद्धव ने एक नई छवि बनाई है. उन्हें पसंद करने वाले लोग रहे हैं. वो पिता के उलट कम बातें करने वाले और शालीन राजनीतिज्ञ हैं.
ये बड़ा अवसर भी होगा
कोंकण और मुंबई शिव सेना का मजबूत क्षेत्र है लेकिन उसे मराठवाड़ा- विदर्भ में आधार को दमदार करना होगा. अगले चुनावों में जब वो जाएगी तो उसे नए मुद्दे तलाशने होंगे और बताना होगा कि लोग उसे क्यों चुनें. वो एक तरफ तो धोखे की बात करेगी तो ये भी तय है कि मराठी अस्मिता और हिंदूत्व के तीर भी पास रखेगी. बीजेपी से उसे कड़ी चुनौती मिलेगी.
अब उसे ये सीखने की जरूरत होगी कि अकेले कैसे चलें. 56 साल के शिवसेना के इतिहास को देखें तो लगता है कि अब शिवसेना किसी ना किसी बड़ी पार्टी से मदद पाती रही है. वैसे कहा जाना चाहिए कि अगला चुनाव शिव सेना के लिए चुनौती भी है और एक बड़ा अवसर भी.
बाल ठाकरे ये जरूर चाहते थे कि शिवसेना राष्ट्रीय स्तर पर उभरे लेकिन इसके लिए गंभीर कोशिश कभी उनकी ओर से भी नहीं हुई. वो कभी शिवसेना के प्रचार के लिए महाराष्ट्र से बाहर नहीं निकले. (courtesy – shivsena portal)
राष्ट्रीय स्तर पर क्यों नहीं
आखिर में ये सवाल भी लाजिमी है कि कोई पार्टी अगर 50 साल से ज्यादा का सफर तय कर चुकी हो तो वो अब तक राष्ट्रीय स्तर पर लोगों पर असर क्यों नहीं डाल पाई. हालांकि शिव सेना ने उप्र, मप्र, गोवा कई जगहों पर चुनाव लड़े. अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन कुछ खास फायदा हुआ नहीं. पार्टी के दिवंगत प्रमुख बाल ठाकरे शिव सेना को एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर देखना चाहते थे. उनका ये ख्वाब कभी पूरा हो नहीं सका. शायद इसकी वजह भी बाल ठाकरे ही थे.
अगर किसी राज्य में पार्टी खड़ी करनी है तो वहां जाकर पार्टी के बडे नेताओं को सभाएं लेनी पड़ती हैं, रैलियां निकालनीं पडतीं हैं, स्थानीय मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाना पड़ता और राज्य के बड़े चेहरों को पार्टी के साथ जोड़ना पड़ता है. क्या शिव सेना ने ये सब किया? नहीं. शिव सेना के व्यवहार से यही नज़र आया कि पार्टी अधूरे मन से महाराष्ट्र के बाहर चुनाव लड़ रही है.
शिवसेना का बड़ा नेता कभी बाहर प्रचार करने नहीं गया
वैसे शिवसेना की ओर से हिंदुत्व का मुद्दा अपनाने और बालासाहब की निजी छवि ने महाराष्ट्र के बाहर भी खासकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में कई युवाओं को आकर्षित किया. यूपी में उन्होंने 1991 के चुनावों में अकबरपुर से एक सीट भी जीती. उप्र के स्थानीय चुनावों में भी उसने मजबूत के साथ अपनी मजबूती दर्ज की लेकिन बाल ठाकरे या उनकी पार्टी का कोई बड़ा नेता महाराष्ट्र से बाहर कभी शिव सेना का प्रचार करने नहीं गया. दिल्ली में शिव सेना के कई स्थानीय नेता खबरों में तो रहे लेकिन एक समय के बाद किनारे हो गए.
एक जमाने में भारतीय जनता पार्टी से बगावत करने के बाद शंकर सिंह वाघेला भी अपने समर्थकों के साथ शिव सेना में आना चाहते थे लेकिन उसमें बाल ठाकरे ने कोई दिलचस्पी नहीं ली. बाल ठाकरे या ठाकरे परिवार को बार बार महाराष्ट्र से बाहर चुनावों में प्रचार के लिए बुलाया जाता रहा लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया. हालांकि शिव सेना की राष्ट्रीय पार्टी बनने की महत्वकांक्षा बरकरार है. फिलहाल तो इससे अलग अब उसे महाराष्ट्र में ही फिर से ताकत के तौर पर वापस लाकर दिखाना होगा.
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Tags: Maharashtra, Shiv sena, Shiv Sena MLA, Shiv Sena newsFIRST PUBLISHED : June 30, 2022, 10:07 IST