शिव सेना की कहानी भाग 2 : तब बाल ठाकरे और कांग्रेस ने कीं गलबहियां साथ चुनाव लड़े

शिव सेना की कहानी के भाग 01 में आपने पढ़ा कि वो क्या हालात थे जिसमें मराठी अपनी अस्मिता के लिए बेचैन थे. कई मुद्दों को लेकर उनमें गुस्सा था. बाल ठाकरे ने इन सारी बातों को समझते हुए 19 जून 1966 में शिवाजी पार्क में शिव सेना का गठन किया. अब ये जानिए तब मुंबई के क्या हालात थे. इनके बीच में शिव सेना और बाल ठाकरे कैसे उभरे

शिव सेना की कहानी भाग 2 : तब बाल ठाकरे और कांग्रेस ने कीं गलबहियां साथ चुनाव लड़े
30 अक्टूबर, 1966 को दशहरा था. आधिकारिक तौर पर शिवसेना की पहली रैली हुई. इसमें ठाकरे ने कम्युनिस्ट लोगों के खिलाफ जमकर जहर उगला. परेल की दलवी बिल्डिंग में कम्युनिस्ट पार्टी का हेडक्वार्टर था. शिवसेना ने दिसम्बर 1967 में बिल्डिंग पर हमला कर भयानक तोड़-फोड़ मचा दी. कार्यकर्ताओं को बुरी तरह पीटा गया. ठाकरे ने कहा कि कुछ मित्रों के ऑफिस थे उसमें, नहीं तो इरादा बिल्डिंग को जलाने का था. बाद में कम्युनिस्ट पार्टी से विधायक कृष्णा देसाई की हत्या कर दी गई. आज़ादी के बाद मुंबई में ये पहली राजनीतिक हत्या थी. इस घटना ने सबको सन्न कर दिया. 1968 में बॉम्बे म्युनिसिपल कॉरपोरशन के चुनाव हुए. 140 में 42 सीटें जीतीं शिवसेना ने. मुंबई में पहला म्युनिसिपल कॉरपोरेशन 1865 में बना. बीएमसी पर कब्जे का मतलब मुंबई पर कब्ज़ा. म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का काम सीधा मुंबई के लोगों की रोजाना जिन्दगी पर असर करता है. तब जॉर्ज फर्नांडीज को मुंबई का बेताज बादशाह कहा जाता था 60 के दशक में फायरब्रांड समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज को मुंबई का बेताज बादशाह कहा जाता था. महानगर की तमाम छोटी-बडी ट्रेड यूनियनों के वे नेता हुआ करते थे. उनके इशारे पर कारखानों में हड़तालें होती थीं. शहर में चक्काजाम हो जाता था. तब जार्ज वहां मजदूरों और ट्रेड यूनियनों के बहुत बड़े नेता थे. 1967 के लोकसभा चुनाव में 35 वर्षीय जॉर्ज ने मुंबई में कांग्रेस के अजेय माने जाने वाले दिग्गज नेता एसके पाटिल को हराकर उनकी राजनीतिक पारी खत्म कर दी थी. तब लोग शिव सेना को वसंत सेना कहते थे चूंकि महाराष्ट्र तब भी एक औद्योगिक राज्य था. पूरे राज्य में समाजवादी तथा वामपंथी मजदूर संगठन बहुत मजबूत हुआ करते थे. लिहाजा सरकार को लगातार मजदूर संगठनों से जूझना होता था. जब बाल ठाकरे ने शिव सेना की स्थापना की, तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक हुआ करते थे. जो बाल ठाकरे से काफी नजदीकी रिश्ता रखते थे. वसंत राव नाइक ने शिव सेना को खाद-पानी देते हुए बाल ठाकरे का भरपूर इस्तेमाल किया. इसी वजह से उस दौर में शिव सेना को कई लोग मजाक़ में ‘वसंत सेना’ भी कहा करते थे. (Courtesy shiv sena portal) कहा जाता है कि मुंबई के कामगार वर्ग में जॉर्ज के दबदबे को तोड़ने के लिए वसंत राव नाइक ने शिव सेना को खाद-पानी देते हुए बाल ठाकरे का भरपूर इस्तेमाल किया. इसी वजह से उस दौर में शिव सेना को कई लोग मजाक़ में ‘वसंत सेना’ भी कहा करते थे. फिर मुंबई में दत्ता सामंत का उदय हुआ बिजनेसमैन शिवसेना को बुलाने लगे अपनी फैक्ट्री में स्ट्राइक रोकने के लिए. लार्सेन एंड टुब्रो, पार्ले बॉटलिंग प्लांट, मानेकलाल में शिवसेना ने कामगारों को तोड़ लिया. इस हद तक ये आगे बढ़े कि 1974 में जॉर्ज फर्नान्डीज़ की रेलवे स्ट्राइक को भी नकार दिया. आपातकाल के बाद जॉर्ज जब पूरी तरह राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए तो उन्होंने मुंबई में समय देना कम कर दिया. उसी दौर में मुंबई में मजदूर नेता के तौर दत्ता सामंत का उदय हुआ. तब महाराष्ट्र के कांग्रेस मुख्यमंत्री भी उनकी मदद लेते थे शुरुआती दौर में तो जॉर्ज के नेतृत्व वाली यूनियनों के दबदबे को कम करने के लिए कांग्रेस ने भी दत्ता सामंत को खूब बढ़ावा दिया, लेकिन जब वह भी टेक्सटाइल मिलों में हड़ताल और मजदूरों के प्रदर्शन के जरिए जब महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार के लिए सिरदर्द बनने लगे तो कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने उनका भी ‘इलाज’ बाल ठाकरे की मदद से ही किया. केवल वसंतराव ही नहीं, बल्कि उनके बाद भी कई कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने समय-समय पर महाराष्ट्र और मुंबई की राजनीति में बाल ठाकरे का भरपूर इस्तेमाल किया. शरद पवार से तो उनकी दोस्ती जगजाहिर थी ही.लेकिन बाल ठाकरे जितना इस्तेमाल होते थे, उसकी उतनी ही राजनीतिक कीमत भी वसूल करते थे. (courtesy – shiv sena portal) जितना इस्तेमाल उतनी कीमत शरद पवार से तो उनकी दोस्ती जगजाहिर थी ही.लेकिन बाल ठाकरे जितना इस्तेमाल होते थे, उसकी उतनी ही राजनीतिक कीमत भी वसूल करते थे. शिव सेना को मजबूत करने और अपने उम्मीदवारों के फायदे और अन्य फायदों के लिए भी. तब वो पहली और आखिरी बार गिरफ्तार हुए 1967 में ठाकरे ने अखबार ‘नवकाल’ से कहा: इंडिया में हिटलर की जरूरत है. इससे संतोष नहीं हुआ तो 1969 में शिवसेना ने दबे हुए महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर को मुद्दा उठा लिया. महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने पहली और आखिरी बार ठाकरे को गिरफ्तार कर लिया. पहले से प्लान था. गिरफ्तार होते ही दंगे हो गए. सबसे भयानक हुआ कि राज्य सरकार ने जेल में बंद ठाकरे से गुजारिश की कि अपने लोगों को रोको. एक सप्ताह तक चले दंगों के बाद ठाकरे ने अपने लोगों को रोका. ये आखिरी बार था जब ठाकरे के लोगों ने बॉर्डर को लेकर दंगे किए. केवल वसंतराव ही नहीं, बल्कि उनके बाद भी कई कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने समय-समय पर महाराष्ट्र और मुंबई की राजनीति में बाल ठाकरे का भरपूर इस्तेमाल किया. (courtesy -shiv sena portal) कांग्रेस और शिव सेना ने स्थानीय चुनावों में तालमेल किया 70 और 80 के दशक में ही महाराष्ट्र में कई शहरों में कांग्रेस और शिवसेना ने तालमेल करते हुए ज़िला परिषद, नगर पालिका और नगर निगमों में बोर्ड का गठन किया. इसके बाद शाखा प्रमुख और विभाग प्रमुख पद बनाए गए. इसी स्ट्रक्चर पर शिवसेना अबतक कार्य कर रही है. ‘मैक्सिमम सिटी’ में सुकेतु मेहता लिखते हैं, शिव सेना बन चुकी थी. बाल ठाकरे बम्बई में अपनी पहुंच बढ़ाने लगे थे. आरएसएस की तरह शिव सेना ने हर मोहल्ले में शाखाएं खोलनी शुरू कर दीं. फिर शुरू हुई गली की राजनीति, गली के आंदोलन, इनफॉर्मल तरीके से नेटवर्किंग, गली-मोहल्ले की पंचायती, भाषणों में बम्बईया बोली. पानी-बिजली की लड़ाई, किरायेदार-मकान मालिक के झंझट , बाबुओं का करप्शन, घर-परिवार की लड़ाइयां सब कुछ निपटाए जाने लगे. इससे शिव सेना की एक फौज खड़ी हो गई. ये लोग बाल ठाकरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. बाल ठाकरे के भाषण आम लोगों पर गजब का असर करते थे. अपने भाषणों में वह फिल्मी डायलॉग्स का भरपूर इस्तेमाल करते थे. (courtesy – shiv sena portal) ठाकरे के जादू कर देने वाले भाषण ठाकरे की जिस बात ने लोगों और उनके समर्थकों को कायल बना दिया, वो था उनका आमजनों की भाषा में असरदार भाषण, जिसमें फिल्मों के डायलाग का इस्तेमाल खूब होता था. एक ओर 70 के दशक में एंग्री यंगमैन के तौर पर अमिताभ बच्चन रूपहले पर्दे पर सबको अपना दीवाना बना रहे थे. उसी राजनीति और व्यवस्था में सबको एक सुर से गाली देकर ठाकरे मराठी लोगों पर जादू कर रहे थे. बाल ठाकरे पर मुकदमे तो कई दर्ज हुए लेकिन… तब बाल ठाकरे पर भड़काऊ बयानों और भाषणों को लेकर कई मुक़दमे भी दर्ज हुए, लेकिन पुलिस ने उन्हें कभी नहीं छुआ, शायद ये हुआ होगा, कांग्रेस के साथ उनके दोस्ताना रिश्तों के चलते. 80 के दशक के आखिर में आखिर शिव सेना को बीजेपी के तौर पर एक दोस्त मिला. तब बीजेपी को भी राजनीति में अछूत जैसा समझा जाता है, तब शिव सेना का उसके साथ आना एक बड़ी बात थी, जो किसी हद तक दोनों के लिए फायदेमंद रही. तब मराठी पहचान को हिंदूत्व से जोड़ा शिवसेना ने आक्रामकता पर यकीन किया. उनके नेताओं के विचार में जोश के साथ कई बार उग्रता देखी गई. शायद उन्हें लगा हो कि ऐसा करके वो मराठी जनमानस की भावनाओं को ज्यादा उभार दे पाएंगे और अपने साथ ला पाएंगे. बाल ठाकरे ने खास तेवर जोशीले भाषणों, प्रभावी शाखाओं और सक्षम सगंठन खड़ा करके लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश की. पहले शिवसेना ने दक्षिण भारतीय लोगों के खिलाफ अभियान चलाया. फिर निशाने पर उत्तर भारतीय भी आए. लंबे समय में दक्षिण औऱ उत्तर भारतीय निशाना बने. लेकिन शिवसेना को समझ में आने लगा कि उनका ये दांव उन्हें बहुत आगे तक ले जाने वाला नहीं है साथ ही नुकसानदेह भी हो सकता है तो उन्होंने इसे मराठी पहचान के साथ हिंदुत्व अवधारणा से जोड़ दिया, जिस पर उत्तर भारतीय भी उनके साथ आ गए. (जारी है) ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Maharashtra, Shiv sena, Shiv Sena MLA, Uddhav Thackeray governmentFIRST PUBLISHED : June 28, 2022, 11:09 IST