क्यों पॉलिटिक्स में फेल हो गए पटेल के बच्चेबेटी सड़कों पर पैदल चलती दिखती थीं
क्यों पॉलिटिक्स में फेल हो गए पटेल के बच्चेबेटी सड़कों पर पैदल चलती दिखती थीं
Sardar VallabhBhai Patel Birthday: सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक बेटा था और एक बेटी..दोनों ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. लेकिन नेशनल पॉलिटिक्स में दोनों फेल हो गए. क्या थी इसकी वजह
हाइलाइट्स पटेल के बड़े बेटे दहया पटेल मुंबई के बड़े नेताओं में थे. वहां से सांसद भी बने थे बेटी भी सांसद बनी थीं. बाद में दोनों का मोहभंग कांग्रेस से हो गया और छोड़ दी पार्टी बेटी की आंख कमजोर हो गई थी, बाद में वह पिता से जुड़े ट्रस्ट के कामों को देखती थीं
15 दिसंबर 1950 को सुबह 09.37 बजे मुंबई के बिरला हाउस में सरदार वल्लभभाई पटेल को लंबी बीमारी के बाद दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा, जिससे उनका निधन हो गया. अक्सर कहा जाता है कि पटेल ने अपने बच्चों को उस तरह आगे नहीं बढ़ाया जिस तरह नेहरू परिवार में पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को. तो जानते हैं कि क्या वास्तव में पटेल ने अपने बच्चों को नेशनल पॉलिटिक्स में नहीं बढ़ाया लेकिन वो इसमें आए लेकिन फेल हो गए. और अगर ऐसा हुआ तो उसकी वजह क्या थी.
आज से सरदार वल्लभभाई पटेल का 150वां जन्मसाल शुरू हो रहा है. वह गुजरात के नाडियाड में 31 अक्टूबर 1875 के दिन पैदा हुए थे.
सरदार पटेल के निधन के बाद उनके बेटा और बेटी दोनों ने नेशनल पॉलिटिक्स में एंट्री की. वो राजनीति में आए. उनकी बेटी तो लंबे समय तक कांग्रेस की सांसद रहीं. बाद में वह मोरारजी देसाई के साथ स्वतंत्र पार्टी में शामिल हुईं. फिर जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता.
पटेल का परिवार राजनीति में खासा सक्रिय था. उनके बड़े बेटे दहया मुंबई में कांग्रेस के बड़े नेताओं में थे. बेटी मनिबेन पटेल अच्छे संपर्कों वाली सक्षम राजनीतिज्ञ थीं.
पटेल की संतानों ने की थी पिता के नाम को भुनाने की कोशिश
ये कहना भी सही नहीं होगा कि उन्होंने अपने पिता के नाम को भुनाने की कोशिश नहीं की. दोनों जब तक राजनीति में रहे, उनकी पहचान सरदार पटेल के ही नाम पर थी. 70 के दशक में पटेल के बेटा और बेटी दोनों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया. पटेल की बेटी मनिबेन पटेल ज्यादा प्रखर और सक्रिय थीं. वह बेहद ईमानदार थीं.आजीवन अविवाहित रहीं. वर्ष 1988 में उनका निधन हुआ. आचार्य जेबी कृपलानी के साथ सरदार पटेल और उनकी बेटी मनिबेन (फाइल फोटो)
जब मनिबेग पिता के निधन के बाद नेहरू से मिलने गईं
मनिबेन के बारे में अमूल के संस्थापक कूरियन वर्गीज ने अपनी किताब में विस्तार से जिक्र किया है, वो पढ़ने लायक है. दरअसल कूरियन जब आणंद में थे, तब मणिबेन से उनकी अक्सर मुलाकातें होती थीं, वह सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहती थीं.
वह किताब में लिखते हैं,” मनिबेन ने उनसे बताया कि जब सरदार पटेल का निधन हुआ तो उन्होंने एक किताब और एक बैग लिया. दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू से मिलने चली गईं. उन्होंने नेहरू को इसे सौंपा. पिता ने निर्देश दिए थे कि उनके निधन के बाद इसे केवल नेहरू को सौंपा जाए. इस बैग में पार्टी फंड के 35 लाख रुपए थे. बुक दरअसल पार्टी की खाताबुक थी.”
मनिबेन को लगा कि नेहरू हालचाल पूछेंगे
नेहरू ने इसे लिया. मनिबेन को धन्यवाद कहा. इसके बाद वह इंतजार करती रहीं कि शायद नेहरू कुछ बोलें. जब ऐसा नहीं हुआ तो वह उठीं और चली आईं.
कूरियन ने उनसे पूछा, आप नेहरू से क्या सुनने की उम्मीद कर रही थीं, जवाब था- मैंने सोचा शायद वह ये पूछेंगे कि मैं अब कैसे काम चला रही हूं या मुझको किसी मदद की जरूरत तो नहीं, लेकिन ये उन्होंने कभी पूछा ही नहीं. मनिबेन सांसद रहीं लेकिन बाद में 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा (फाइल फोटो)
अहमदाबाद में सड़कों पर दिख जाती थीं
आखिरी सालों में मनिबेन की आंख काफी कमजोर हो गई. अहमदाबाद की सड़कों पर वह पैदल अकेले चलती हुई दिख जाती थीं. आंखें कमजोर होने की वजह से एक दो बार उनके लड़खड़ाकर गिरने की भी खबरें आईं.
मनिबेन ने युवावय से ही खुद को कांग्रेस और महात्मा गांधी के प्रति समर्पित कर दिया था. वह लंबे समय तक उनके अहमदाबाद स्थित आश्रम में भी रहीं. बाद के बरसों में वह पटेल के साथ दिल्ली में रहने लगीं. वह पिता के रोजमर्रा के कामों को देखती और सचिव के रूप में उनकी मदद करती थीं. लिहाजा कांग्रेस के तकरीबन सभी नेता उन्हें अच्छी तरह जानते थे.
सांसद बनीं और असरदार पदों पर रहीं
पटेल के निधन के बाद बिरला ने उनसे बिरला हाउस में रहने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. तब उनके पास ज्यादा धन भी नहीं था. वह अहमदाबाद में रिश्तेदारों के यहां चली गईं. वह बस या ट्रेन में तीसरे दर्जे में सफर करती थीं. बाद में कांग्रेसी नेता त्रिभुवनदास की मदद से सांसद बनीं. गुजरात कांग्रेस में असरदार पदों पर रहीं. कई संस्थाओं में आखिरी समय तक ट्रस्टी या पदाधिकारी भी रहीं.
जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता
मनिबेन पहली लोकसभा के लिए गुजरात के दक्षिणी कैरा से सांसद चुनी गईं. फिर दूसरी लोकसभा के लिए आणंद से सांसद बनीं. वर्ष 1964 से लेकर 1970 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं. बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर मोरारजी देसाई के साथ स्वतंत्र पार्टी ग्रहण की. फिर कांग्रेस में आईं. आपातकाल के दौरान वह विरोधस्वरूप फिर इंदिरा गाधी की कांग्रेस आई छोड़कर कांग्रेस ओ में चली गईं. सरदार पटेल के बेटे दहयाभाई पटेल एक बार लोकसभा के लिए जीते और अगली बार राज्यसभा सदस्य बने (फाइल फोटो)
1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से लोकसभा चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुईं. उन्हें मोरारजी देसाई से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उन्होंने उनके साथ न जाने क्यों अजीबोगरीब व्यवहार किया. जब भी वह मिलने जाती थीं तो वह उन्हें बहुत इंतजार कराते थे.
बेटे दहया भी दो बार रहे सांसद
पटेल के बेटे दहयाभाई पटेल का निधन 1973 में हुआ. वह पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई की एक इंश्योरेंस कंपनी में अच्छे पद पर काम करने लगे थे. उनके दो बेटे थे- बिपिन और गौतम. बिपिन पहली पत्नी से और गौतम दूसरी पत्नी से. दरअसल उन्होंने पहली पत्नी यसोदा के निधन के बाद उन्होंने दूसरी शादी की थी.
दहयाभाई आजादी की लड़ाई में भी कूदे. जेल गए. आजादी के बाद उन्होंने 1957 का लोकसभा चुनाव लड़ा. 1962 में राज्यसभा सदस्य चुने गए.
पटेल क्यों बच्चों से कहते थे कि राजनीति से दूर रहें
सरदार पटेल अक्सर अपने बच्चों से राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे. उन्हें लगता था कि लोग उनकी पोजिशन का बच्चों के जरिए गलत फायदा उठा सकते हैं. दहया के बड़े बेटे बिपिन का वर्ष 2004 में निधन हो गया. उनकी कोई संतान नहीं थी. दूसरे बेटे गौतम जिंदा हैं. कुछ साल वह अमेरिका में यूनिवर्सिटी में पढ़ाते रहे फिर भारत लौट आए. अब वडोदरा में रह रहे हैं. गौतम के बेटे केदार अमेरिका में ही बस गए हैं.
गौतम अपने पितामह वल्लभ भाई के बारे में कोई विचार या दृष्टिकोण सार्वजनिक तौर पर रखना नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि इसे हर सियासी दल अपने अपने तरीके से भुनाने लगेगा. पटेल के नाम पर इन दिनों हो रही सियासत पर भी उन्हें आपत्ति है. पटेल के परिवार से जुड़े कुछ और लोग आणंद में रहते हैं, वो बिजनेस में हैं.
Tags: Gujarat, Sardar patel, Sardar Vallabhbhai Patel, Statue of unityFIRST PUBLISHED : October 31, 2024, 12:56 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed