रिजर्वेशन 400 पार क्यों अब विधानसभा चुनावों के लिए बढ़ा रहे टेंशन
रिजर्वेशन 400 पार क्यों अब विधानसभा चुनावों के लिए बढ़ा रहे टेंशन
लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. परिणाम आ गए. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार भी बन गई. लेकिन अब रिजर्वेशन और 400 पार जैसे नारे टेंशन बढ़ाए हुए हैं. विधानसभा चुनावों के लिए क्यों इनसे लग रहा डर
हाइलाइट्स महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री शिंदे इस नारे को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं झारखंड में बीजेपी की सहयोगी आजसू नाराज है, 05 रिजर्व सीटें हार गई इस बार 126 रिजर्व सीटों पर बीजेपी को लगा है तगड़ा झटका
लोकसभा में हार के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी समर्थित शिव सेना (शिंदे) सरकार के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि 400 पार के नारे ने डर पैदा कर दिया कि इसके बाद संविधान बदल दिया जाएगा और आरक्षण खत्म हो जाएगा. जब लोकसभा के चुनाव परिणाम आए और बीजेपी को 63 सीटें घटकर कुल 240 सीटें ही मिलीं तो ये कहा जाने लगा था कि 400 पार के नारे ने फायदा की बजाए नुकसान पहुंचाया. इसने चुनावों के सारे समीकरणों को बदलकर रख दिया. सबसे बड़ी चिंता अब यही है कि कुछ महीने बाद जब 04 राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे तो क्या ये नारा फिर नुकसान पहुंचाएगा.
आगे चलने से पहले ये जान लेते हैं कि लोकसभा में कुल कितनी सीटें हैं, जिसमें कितनी रिजर्व हैं. लोकसभा में कुल 543 सीटें हैं. जिसमें इस बार 79 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित थीं तो 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व. पिछले चुनावों में बीजेपी को 33 फीसदी दलितों और 42 फीसदी ओबीसी के वोट मिले थे, जिसमें इस बार काफी गिरावट आई है.
यूपी में 17 एससी सीटें हैं, जिसमें बीजेपी को इस बार 08 सीटें ही मिलीं जबकि 09 विपक्ष के पास चली गईं. जबकि पांच साल पहले चुनावों में इसमें 14 सीटें बीजेपी के पास थीं और दो बीएसपी के खाते में.
इस बार देश में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो अनुसूचित जनजाति की सीटों को बढ़ाकर 41 से 47 कर दिया गया था. ये सीटें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, तेलंगाना, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव, आंध्र प्रदेश राज्यों में हैं.
इन सीटों से कुल 10 पार्टियों के उम्मीदवार जीते. हालांकि इसमें सबसे ज्यादा 25 सीटें बीजेपी को ही मिलीं. कांग्रेस 12 सीटों के साथ दूसरे नंबर रही. इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (3) और अन्य पार्टियों का नंबर रहा.
किन राज्यों में विधानसभा चुनाव और वहां क्या टेंशन
बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के खराब प्रदर्शन के बाद अब उन्हें डर ये है कि 400 पार वाला नारा क्या उन्हें और नुकसान तो नहीं पहुंचाएगा. क्योंकि साल के आखिर में हरियाणा, महाराष्ट्र औऱ झारखंड में विधानसभा चुनाव हैं. महाराष्ट्र और झारखंड में काफी सीटें रिजर्व हैं. जिस तरह से दोनों राज्यों के लोकसभा चुनाव परिणाम रहे हैं, वो बीजेपी और गठजोड़ दलों को डरा रहे हैं. यही वजह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को बोलना पड़ा है कि इस नारे ने उन्हें कितना नुकसान पहुंचाया,
महाराष्ट्र में क्यों लग रहा डर
महाराष्ट्र में भाजपा की सीटें 2019 में जीती गई 23 सीटों से घटकर मात्र 09 रह गईं. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना ने 07 सीटें जीतीं, जबकि अजित पवार की एनसीपी केवल एक सीट मिली. इससे राज्य की 48 सीटों में से एनडीए की कुल सीटें घटकर 17 रह गईं. इसके विपरीत, 2014 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने 43 सीटें हासिल की थीं.
भारी पड़ गया 400 पार का नारा
दरअसल जैसे ही अप्रैल में चुनाव शुरू हुए, उसी समय कांग्रेस और विपक्षी दलों ने बीजेपी के उन नेताओं के बयानों को उछालना शुरू किया कि जैसे ही हमें 400 मिलेंगी, तो संविधान भी बदलेंगे. कांग्रेस ने भी इसे लपकते हुए आरोप लगाया कि 400 से अधिक सीटें मांगने के पीछे भाजपा का असली इरादा संविधान बदलना और आरक्षण समाप्त करना है.
नुकसान तो हो गया
पार्टी सांसद अनंत कुमार हेगड़े सहित कई भाजपा नेताओं ने सार्वजनिक रूप से संविधान की “पुनर्विचार” की वकालत की थी, जिसमें अयोध्या से लोकसभा चुनाव हारे ललन सिंह भी थे. उनका कहना थआ कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भाजपा को लोकसभा में 543 में से 400 सीटें हासिल करनी होंगी. हालांकि, भाजपा नेतृत्व ने बाद में अपने इन नेताओं की टिप्पणियों से खुद को अलग कर लिया था. लेकिन नुकसान तो हो चुका था. जमीनी स्तर पर भी कई लोगों का कहना है कि भाजपा के ‘400 पार’ वाले बयान से दलित डरे.
पिछड़ों और दलितों के लिए संविधान और रिजर्वेशन सबसे ऊपर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीनियर जर्नलिस्ट शाहिद ए चौधरी, ओबीसी, एससी और एसटी तबके के लिए संविधान सबसे ऊपर है, क्योंकि इसकी वजह से उन्हें ना केवल सुरक्षा मिली बल्कि विकास करने के अवसर भी. जब बीजेपी के नेताओं के नेताओं ने 400 पार के नारे के साथ संविधान बदलने की बात की तो तुरंत ये तबका लामबंद हो गया, क्योंकि उसे डर था कि ऐसा हो सकता है. बीजेपी ने भी इसका दृढ़ता से खंडन नहीं किया.
झारखंड में अच्छा संकेत नहीं
झारखंड में विधानसभा चुनाव होने से 06 महीने पहले, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सभी 05 लोकसभा सीटों का नुकसान भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है, जिसे 2019 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, जब उसका नेतृत्व एक गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री ने किया था.
झारखंड में क्यों आजसू है नाराज
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में भाजपा केवल 8 सीटें ही जीत पाई, जिसमें पलामू की आरक्षित (अनुसूचित जाति) सीट भी शामिल है. सबसे बड़ा झटका तो बीजेपी की सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) को लगा, जो किसी भी रिजर्व सीट पर जीत नहीं पा सकी. हालांकि उसने एक सीटे जीती लेकिन गैर-आरक्षित गिरिडीह में, जहां त्रिकोणीय मुकाबला था. बीजेपी की सहयोगी आजसू नाराज है कि इस नारे की वजह से उसे बहुत झटका लगा है, जिससे उबरना आने वाले समय में भी आसान नहीं
हालांकि ये बात सही है कि रिजर्व सीटों पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है. वहीं आंध्र में सुरक्षित सीटों पर भी बीजेपी और तेलगूदेशम ने मिलकर बढ़िया रिजल्ट निकाला.
क्यों झारखंड मुश्किल बन सकता है
झारखंड में 81 विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनावों में 47सीटों पर कब्जा करने वाले जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में उसकी बढ़ी हुई सीटें उसे इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन दोहराने में मदद करेंगी. हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी ने आदिवासी समूहों- संथाल, उरांव, मुंडा, खारिया, हो और पहाड़िया- को जेएमएम के समर्थन में एकजुट कर दिया है, जो विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
क्यों ऐसा माहौल बना और बना हुआ है
इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में तर्क दिया गया, “भारतीय जनता पार्टी के इस दावे ने लोगों को झकझोर दिया है कि भाजपा की भारी बहुमत वाली सरकार संविधान के लिए खतरा है. दलित बस्तियों से डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा बनाए गए कानून में बदलाव और उनके लिए इसमें दी गई सुरक्षा के खतरे के बारे में आवाजें उठ रही हैं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेता पीएल पूनिया का कहना है, इससे मतदाता सचेत हो गए कि वे किसी भी हालत में संविधान को बदलने नहीं देंगे. ये यह एक बड़ा कारक था. ये सबको लग रहा था कि बहुजन समाज पार्टी ने भाजपा से हाथ मिला लिया है. इसलिए दलितों ने बड़ी संख्या में इंडिया ब्लॉक को वोट दिया. पुनिया का दावा है कि इस बार एक भी वोट बीजेपी को नहीं गया. केवल सीमित संख्या में बीएसपी को गया.
राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी ये मुद्दा रहेगा कि राज्यों में भी बीजेपी को कमजोर करो ताकि वो राज्यसभा में भी कमजोर हो पाएं. जिससे किसी भी संविधान संशोधन और बदलाव की स्थिति ही नहीं रह जाए. यही वजह भी है कि लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद पहली बार प्रधानमंत्री मोदी संविधान पर सिर नवाते नजर आए. उन्होंने ये कहा कि वह संविधान को नहीं बदलेंगे.
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने भी नागपुर में बगैर नाम लिए विपक्षी दलों पर निशाना साधा कि कुछ लोगों ने झूठ बोलकर भ्रम फैलाया. उन्होंने अपने भाषण में डॉक्टर अंबेडकर से लेकर संविधान के महत्व को जाहिर किया लेकिन असल सवाल यही है कि क्या बीजेपी का 400 पार का नारा क्या अब खुद उसको और विरोधी दलों को लोकसभा चुनावों के बाद भी डरा रहा है.
Tags: Assembly elections, Jharkhand Government, Jharkhand New, Maharashtra Government, Scheduled TribeFIRST PUBLISHED : June 12, 2024, 13:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed