पुजारी और पटना की मशहूर तवायफ का प्यारफिर क्यों उजड़ गई तन्नो बाई की दुनिया

Patna Love Story: लंबे चौड़े और सुदर्शन पंडित जी एक बार पटना की मशहूर तवायफ की महफिल में ना जाने कैसे चले गए. उसके बाद तो दोनों में एक रिश्ता ही बंध गया. ये एक ऐसी लव स्टोरी है, जो कम सुनने को मिलती है.

पुजारी और पटना की मशहूर तवायफ का प्यारफिर क्यों उजड़ गई तन्नो बाई की दुनिया
हाइलाइट्स तिवारी जी को कैसा तवायफ तन्नो से प्यार हो गया इस प्यार में वो दोनों केवल एक दूसरे को देखते थे तवायफ की हर महफिल में तिवारीजी जरूर जाते थे ये 20वीं सदी के दूसरे दशक की बात है. तब तवायफें महफिलों में अपनी गायकी और नाजोअदा से ना जाने कितनों का दिल लूट लेती थीं. इसी महफिल से एक ऐसी लवस्टोरी निकली जो आज भी पटना में मिसाल के तौर पर कही जाती है. बात करीब 100 साल पुरानी है. ये लव स्टोरी पटना की खूबसूरत और मशूहर तवायफ तन्नो बाई और वैष्णव मंदिर के पुजारी की है. तब पटना में भी तवायफों की महफिलें आम थीं. पटना में एक तवायफ तन्नो बाई को एक पुजारी से प्यार हो गया. वह आलीशान जिंदगी गुजारती थीं. बड़ी सी बिल्डिंग में रहती थीं. आवाज में जादू था. ये वैष्णव मंदिर के एक पुजारी पर ऐसा चला कि प्यार का अफसाना बन गया. आउटलुक पत्रिका में पटना के इतिहासकार और लेखक अरुण सिंह ने इस पर विस्तार से लिखा है. इसमें बताया गया कि तब किस तरह तवायफें जब किसी से प्यार करती थीं तो अपना सबकुछ उस पर कुर्बान कर देती थीं. मसलन, एक तवायफ साबरा ने प्रेमी के व्यवसाय को बचाने के लिए सारी संपत्ति बेचकर मदद की. बी छुट्टन ने युवा प्रेमी को पढ़ाया लिखाया और जाना-माना वकील बना दिया. फिर उसकी शादी भी कराई. तन्नो बाई और पुजारी  जानते हैं तवायफ तन्नो बाई और पुजारी धरीक्षण तिवारी की प्यार की कहानी. 1920 के आसपास पटना के चौक के आसपास सड़कों के दोनों किनारों पर तवायफों के कोठे होते थे. एक पुजारी और एक तवायफ की लव स्टोरी (sketch – Anand news18) एक थी मुजरे की रानी इसी इलाके की एक तवायफ तन्नो बाई को मुजरे की रानी कहा जाता था. असाधारण रूप से सुंदर. अमीरों और रईसों की महफ़िलों की जान. बुद्धिमान, सौम्य स्वभाव वाली और नृत्य में जादू करने वाली.  गायन की कच्ची और पक्की दोनों विधाओं में महारत. इतनी फेमस कि लोग दूर दूर से उसके कोठे पर आते थे. कोठा अंदर से गजब की सजावट वाला. झूमरों और फ़ारसी कालीनों से सजा हुआ. पुजारी जी बहुत कर्मकांडी थे चौक की कचौड़ी गली में एक छोटा सा वैष्णव मंदिर था जिसके पुजारी धरीक्षण तिवारी इलाके में बहुत  प्रतिष्ठित थे.  शहर के अमीर और शक्तिशाली लोग उन्हें पूजापाठ के लिए घर बुलाते थे. गोरे और सुगठित काया वाले. भागलपुरी टसर कुर्ता और सादी सफेद धोती में रहने वाले. कंधे पर चमकीले रंग का तौलिया. बहुत कर्मकांडी. छुआछूत मानने वाले. संगीत के जबरदस्त प्रेमी. आवाज़ बहुत अच्छी थी. राग के जानकार. तब तन्नो पर मंत्रमुग्ध हो गए धरीक्षण तिवारी दीवान मोहल्ले में एक रईस की शादी में शामिल हुए. वहीं पहली बार तन्नो बाई को गाते देखा. एकदम मंत्रमुग्ध हो गए. सुधबुध खो बैठे. गानों के जादू में खो गए. वैसे उन्हें मालूम था कि वह पुजारी हैं, ब्राह्मण हैं. सामने एक तवायफ़ गा रही है. तिवारी जी लाख चाहने के बाद भी सिर हिलाकर तारीफ करने से नहीं रोक पा रहे थे. तब तन्नो ने अपने इस मुरीद को देखा तन्नो बाई ने अपने इस मुरीद को देखा. उसकी ओर मुखातिब हुईं. रातभर गाती रहीं. तिवारीजी मंत्रमुग्ध होते रहे. सिर हिलाते रहे. मुंह से एक शब्द नहीं बोला. बस फिर बदल गई उनकी जिंदगी इस दिन के बाद धरीक्षण तिवारी की जिंदगी में सब कुछ बदल गया. उसे हर उस मुजरे के बारे में पता होता, जहां तन्नो बाई गानेवाली होतीं.  बिना चूके वह वहां पहुंचते. तन्नो उन्हें पहचानने लगीं. तिवारीजी को देखकर उसका उत्साह बढ़ जाता. शालीनता से पुजारीजी को सलाम करतीं. सबसे आगे बैठाती.  तिवारीजी को तब ऐसा लगता कि मानो वह उन्हीं के लिए गा रही हों. आंखों ही आंखों में एक दूसरे को पढ़ते रहे. दाद देते रहते. तन्नो ने पान दिया और… बस दोनों तरफ से में सलाम, अभिवादन और तारीफ में सिर हिलाने से ज्यादा कुछ नहीं होता. दोनों इज्जत की खास दायरे में रहते थे. करीब 20-25 मुजरे के बाद तन्नो ने पुजारी को पान देने की हिम्मत की. तिवारीजी ने पान को माथे से लगाया. रूमाल में लपेटा. जेब में रख लिया. तन्नो मुस्कुरा दी. उन्हें अहसास हुआ कि धरीक्षण तिवारी उसका दिया हुआ पान नहीं खा सकते. उन्होंने इसे सम्मान की निशानी के तौर पर अपने पास रख लिया था. उस दिन के बाद पुजारीजी नहीं दिखे उस दिन के बाद से पुजारी जी नहीं दिखे. कई दिन गुजर गए. एक धनी जमींदार ने तन्नो को महफ़िल के लिए बुलाया. एक हजार चांदी के सिक्के एडवांस. तन्नो पहुंची. नजरें तिवारीजी को देख रहीं थीं. वह कहीं नहीं मिले. कुछ उदासी से अपने तबलची से उनके बारे में पूछा. तब उसने कहा, “बाई साहिबा, पिछली पूर्णिमा की रात तिवारी जी का इंतकाल हो गया. तन्नो स्तब्ध  तन्नो स्तब्ध रह गईं. मानो जड़. उनकी आंखें फटी रह गईं. जमींदार के पास गईं. बोली, “ मुआफ़ करियेगा, ज़मींदार साहब!” आज मैं नहीं गा सकूंगी.” उन्होंने चांदी के सिक्कों की थैली वापस दे दी. निराशा में डूब गईं इस घटना के बाद कई दिनों तक तन्नो बाई सदमे में रहीं. उनका हमेशा जीवंत रहने वाला कोठा थका और वीरान दिखने लगा. तन्नो बाई के वंशज तबलची मातादीन लोगों को बताते थे, कैसे वह अपना पूरा दिन अपनी निजी कोठरी में निराशा की स्थिति में रहती थीं. उन्हें अच्छी-खासी रकम वाले निमंत्रण पर निमंत्रण मिल रहे थे. हर एक को ठुकरा देती थीं. स्टाफ हैरान और चिंतित. फिर रोशन होने लगी महफिल लेकिन… स्टाफ के लोगों को लगा कि ऐसे में जीवन कैसे चलेगा. अपने इन्हीं लोगों के लिए और इन्हीं लोगों की फरियाद पर गाना शुरू किया. महफ़िल फिर रोशन होने लगी. पर तन्नो का चेहरा एक अजीब सी वीरानी से भर चुका था. आंखों में दुख. आवाज़ में दर्द. फिर तन्नो भी पुजारन बन गई तन्नो बाई कुछ सालों तक गाती रही. फिर सब बंद कर दिया. सारा समय पूजा में गुजारने लगी. 50 की उम्र के आसपास निधन हो गया. उन्हें पटना सिटी में कच्ची दरगाह में दफनाया गया था. कोई संतान नहीं थी, लिहाजा उनकी सारी संपत्ति  अनाथालय और मदरसे को दे दी. तिवारीजी की पत्नी के लिए वह रहस्य धरीक्षण तिवारी की मृत्यु के कुछ महीनों बाद, उनकी पत्नी को उनके रूमाल में एक सूखा हुआ पान अच्छी तरह से मोड़कर रखा हुआ मिला. वह हैरान रह गईं, क्योंकि तिवारीजी तो कभी पान नहीं खाते थे. ये सूखा हुआ पान उनकी विधवा के लिए हमेशा रहस्य बना रहा. Tags: Love, Love Story, Patna CityFIRST PUBLISHED : August 12, 2024, 13:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed